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Friday, April 27, 2018

खजुराहो–एक अलग परम्परा (चौथा भाग)

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कल दिन भर मैंने खजुराहो की सड़कों पर डांडी मार्च किया था। दिन भर बिना कहीं बैठे लगातार खड़े रहने व चलते रहने की वजह से थक गया था। खजुराहो के पश्चिमी मंदिर समूह तो कस्बे के बिलकुल पास में ही हैं,इसलिए इन तक पहुँचने के लिए ग्यारह नम्बर की जोड़ी ही पर्याप्त है। लेकिन पूर्वी मंदिर समूह तथा दक्षिणी मंदिर समूह तक पहुँचने के लिए कोई न कोई छोटा–मोटा साधन जरूरी है। हालाँकि दूरी इनकी भी बहुत अधिक नहीं है लेकिन व्यस्त जिंदगी में से किसी तरह बचा कर निकाला हुआ समय बहुत ज्यादा खर्च हो जायेगा। आज मैं इसी थ्योरी पर सोच रहा था। थोड़ा–बहुत घूमना शेष रह गया है। ऑटो वाले 'ऑटोमैटिकली' पूरा किराया वसूलेंगे। कल वाला युवक जो मोटरसाइकिल दे रहा था उसे भी मैंने फोन पर ही मना कर दिया था। फोन काटते समय उसने एक बहुत अजीब सा कमेंट किया जिस पर मैं काफी देर तक सोचता रहा– 'सिंगल परसन।'

Friday, April 20, 2018

खजुराहो–एक अलग परम्परा (तीसरा भाग)

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पश्चिमी मंदिर समूह के पास से लगभग 15 मिनट चलने के बाद मैं चौंसठ योगिनी मंदिर पहुँचा तो रास्ते में और मंदिर के आस–पास मुझे कोई भी आदमी नहीं दिखा। केवल मंदिर के पास एक सुरक्षा गार्ड धूप से बचने के लिए बनाये गये टीन शेड के नीचे बैठा पेपर पढ़ रहा था। अास–पास चर रही बकरियां उसे परेशान किये हुए थीं। बिचारा मंदिर में अनधिकृत रूप से प्रवेश कर रही बकरियों को जब तक भगाने गया तब तक उसका पेपर हवा उड़ा ले गयी। दोहरी मारǃ

Friday, April 13, 2018

खजुराहो–एक अलग परम्परा (दूसरा भाग)

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टिकट और बैग चेकिंग की सारी औपचारिकताएं पूरी करने और बैग चेक करने वाले सुरक्षाकर्मी से बैग में रखा खाने–पीने का सामान मंदिर परिसर के अंदर प्रयोग न करने का वादा करने के बाद मैं पश्चिमी मंदिर समूह के मंदिरों का बारीक निरीक्षण करने में लग गया। परिसर के अंदर बहुत अधिक भीड़ नहीं थी लेकिन जो भी थी आश्चर्यजनक थी। क्योंकि अधिकांश दर्शनार्थी,जो कि पूजार्थी न होकर केवल पर्यटक थे,विदेशी थे। अब हिन्दू मंदिरों के अधिकांश दर्शक विदेशी हों तो थोड़ा सा आश्चर्य तो पैदा होगा ही।

Friday, April 6, 2018

खजुराहो–एक अलग परम्परा (पहला भाग)

खजुराहो का नाम सामने आते ही एक अजीब सी धारणा मन में उत्पन्न होती है। जो हमने इसके बारे में पहले से ही मन में बना रखी है। एक ऐसी जगह जहाँ उन्मुक्त कामकला की मूर्तियाँ बनी हुई हैं। एक ऐसी क्रिया और भावना को व्यक्त करती सजीव मूर्तियाँ जो हमारे भारत में सदा से ही वर्जित फल रही है। लेकिन खजुराहो के बारे में सिर्फ यही सत्य नहीं है वरन खजुराहो के सम्पूर्ण सत्य का एक छोटा सा अंश मात्र ही है।और इससे बड़ा सत्य यह है कि खजुराहो,मंदिर निर्माण की दृष्टि से भारतीय इतिहास की वास्तुकला की सर्वाेत्कृष्ट कृतियों का पालना है।