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26 मई को जानकी चट्टी से दिन में 1 बजे हम वापस पुराने रास्ते पर ही चल दिये और बड़कोट पहुंचे। बड़कोट से हमने गंगोत्री के लिए रास्ता बदला और धरासू की ओर चल दिये। बड़कोट से धरासू के रास्ते में कोई बड़ी नदी नहीं है पर पहाड़ों से घिरा घुमावदार रास्ता और घने जंगल बहुत अच्छे लगे। रास्ते में कई जगह सीढ़ीदार खेतों का मनमोहक दृश्य मिला जहां रूककर फोटो खींचे गये। इसी साल की गर्मियों में,उत्तराखण्ड के जंगलों में लगी आग से बरबाद हुए जंगलों का दृश्य भी मिला। देखकर मन बहुत खिन्न हुआ। फिर ध्ररासू से उत्तरकाशी। यमुनोत्री से गंगोत्री की कुल दूरी लगभग 228 किमी है।
उत्तरकाशी गंगोत्री से 100 किमी पहले स्थित है एवं यमुनोत्री से गंगोत्री तक की यात्रा का मुख्य पड़ाव है।हमारे ड्राइवर ने उत्तरकाशी से 4–5 किमी और आगे नेताला में हमें कमरा दिलवाया। नेताला हम शाम 5.30 बजे पहुंचे। नेताला एक छोटी सी और बहुत ही सुन्दर जगह है। उत्तरकाशी शहर की भीड़ और कोलाहल से दूर यह एक छोटा सा कस्बा है और भागीरथी किनारे घूमने–टहलने के लिए एक आदर्श स्थान है। हमारा होटल मुख्य मार्ग और भागीरथी नदी के बीच में स्थित था और हमारा कमरा ठीक नदी के सामने और इस वजह से नदी का बहुत ही मनमाेहक दृश्य कमरे की खिड़कियों से ही दिख रहा था। खिड़कियां–दरवाजे बन्द कर लेने के बाद भी नदी का शोर जबरदस्ती कमरे में आ रहा था और यह हमारे लिए बहुत ही रोमांचक क्षण था।
उत्तरकाशी गंगोत्री से 100 किमी पहले स्थित है एवं यमुनोत्री से गंगोत्री तक की यात्रा का मुख्य पड़ाव है।हमारे ड्राइवर ने उत्तरकाशी से 4–5 किमी और आगे नेताला में हमें कमरा दिलवाया। नेताला हम शाम 5.30 बजे पहुंचे। नेताला एक छोटी सी और बहुत ही सुन्दर जगह है। उत्तरकाशी शहर की भीड़ और कोलाहल से दूर यह एक छोटा सा कस्बा है और भागीरथी किनारे घूमने–टहलने के लिए एक आदर्श स्थान है। हमारा होटल मुख्य मार्ग और भागीरथी नदी के बीच में स्थित था और हमारा कमरा ठीक नदी के सामने और इस वजह से नदी का बहुत ही मनमाेहक दृश्य कमरे की खिड़कियों से ही दिख रहा था। खिड़कियां–दरवाजे बन्द कर लेने के बाद भी नदी का शोर जबरदस्ती कमरे में आ रहा था और यह हमारे लिए बहुत ही रोमांचक क्षण था।
कमरा लेने के बाद यहां पर एक डाक्टर से हमने परामर्श लिया और दवा ली, तब जाकर बच्चियों की तबियत कुछ ठीक हुई। यहां हमारा तीन बेड का कमरा 1000 रूपये में था। लगा कि उत्तराखण्ड में महंगाई का ऊंचाई के साथ समानुपातिक सम्बन्ध है। अर्थात ऊंचाई बढ़ने के साथ–साथ महंगाई भी बढ़ती जाती है और ऊंचाई कम होने पर महंगाई भी कम हो जाती है। हरिद्वार में इसी तरह का कमरा 650 में,यहां 1000 में तथा जानकी चट्टी में 1200 में। कमरे के रेट को लेकर थोड़ी सी किच–किच हो गयी। होटल मैनेजर एक भी रूपया कम करने को तैयार नहीं था। मैंने धीरे से आरोप लगाया कि कहीं ड्राइवर का कमीशन भी तो नहीं जोड़ लिया। ये बात उसने ड्राइवर को बता दी और ड्राइवर से हल्की सी कहा–सुनी हो गयी। वैसे मैं विवाद बढ़ाकर यात्रा का मजा किरकिरा नहीं करना चाहता था सो जल्दी से बात खत्म की।
यहां रूकने पर एक और तथ्य का भी ज्ञान हुआ। हम शाम 5.30 बजे तक पहुंच गये थे। ड्राइवर ने एक होटल के सामने गाड़ी ले जाकर लगा दी थी और हमने आसानी से कमरा बुक कर लिया था। लेकिन काफी लोग ऐसे भी थे जो देर रात तक आते रहे और कमरा खाेजते रहे। कमरे उनको भी मिल गये लेकिन काफी जद्दोजहद करनी पड़ी,ऐसा देर रात तक आ रही आवाजों से पता लग रहा था। सुबह उठकर जब मैंने होटल के बाहर देखा तो अगल–बगल के सारे होटलों के सामने कतार से गाड़ियां लगी हुईं थीं। ये देर रात पहुंचने वाले लोगों की गाड़ियां थीं। अजीब सा दृश्य था। यह सब देखकर समझ में आया कि उत्तराखण्ड या फिर कहीं के पहाड़ी क्षेत्रों की यात्रा में,कहीं भी सुबह जल्दी निकलें और शाम को जल्दी पहुंचें तो बेहतर है।
यहां भी बिजली की स्थिति बिल्कुल जानकी चट्टी वाली ही थी अर्थात रात में 6–12 और सुबह 6 बजे से 1 घण्टे जेनरेटर चलेगा,बाकी राम भरोसे। यहां हमने रात में उसी होटल में खाना खाया जहां ठहरे हुए थे क्योंकि काफी थके हुए थे और बाहर जाने की इच्छा नहीं हुई। 80 रूपये थाली का खाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं था। सुबह हमें गंगोत्री के लिए निकलना था लेकिन रात में दवा लेने व खाना खाने में देर हो जाने के कारण सुबह उठने में कुछ देर हुई और 7 बज गये।
27 मई को सुबह 8.30 बजे हम नेताला से चले और मनेरी,भटवाड़ी,गंगनानी,हरसिल,भैरोघाटी होते हुए 12 बजे तक गंगोत्री पहुंच गये। रास्ता बहुत ही सुहावना है जिसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। मेरी बच्चियों के लिए ये अलौकिक पल थे। रास्ते में हर्सिल मनोहारी सुन्दरता वाला स्थान है जो गंगोत्री से लगभग 25 किमी पहले पड़ता है। ड्राइवर ने जानकारी दी कि फिल्म "राम तेरी गंगा मैली" की शूटिंग यहीं हुई थी और फिल्म की हीरोइन को दाउद उठा ले गया था। मैंने मन ही मन सोचा कि इसका जेनरल नालेज तो बहुत तगड़ा है,ये यहां ड्राइवरी क्यों कर रहा है। मनेरी व गंगनानी भी सुन्दर स्थान हैं। मनेरी में एक छोटी जल विद्युत परियोजना भी है।
हर्सिल की सुन्दरता और इसके सेब के बागानों के बारे में मुझे जानकारी पहले से भी थी और मैं यहां एक दिन रूकना भी चाह रहा था लेकिन समस्या यह थी कि हमने इस बारे में ड्राइवर से पहले से ही बात नहीं की थी।
वास्तव में यमुनोत्री–गंगोत्री की यात्रा में एक दिन हर्सिल में रूकना बहुत अच्छा कार्यक्रम होता। पांच दिन के कार्यक्रम में पहले दिन हरिद्वार से जानकी चट्टी और वहीं रात्रि विश्राम,दूसरे दिन जानकी चट्टी पैदल ट्रेक और जानकी चट्टी में ही रात्रि विश्राम,तीसरे दिन जानकी चट्टी से हर्सिल और हर्सिल में रात्रि विश्राम,चौथे दिन गंगोत्री दर्शन और वापसी तथा उत्तरकाशी में रात्रि विश्राम तथा पांचवें दिन उत्तरकाशी से वापस हरिद्वार। यह मेरी समझ से सर्वोत्तम कार्यक्रम होता लेकिन ट्रैवल एजेन्सी वाले अपने मन से इस तरह का कार्यक्रम नहीं रखते,अपने फायदे के लिए।
27 मई को दोपहर 12 बजे हम गंगोत्री पहुंचे। मंदिर से लगभग 500 मीटर पहले ही पुलिस वालों ने गाड़ी पार्क करा दी। वस्तुतः पार्किंग वही स्थान नियत है। वहां से पैदल ही जाना है। धूप इतनी चमकीली थी कि आँख उठा कर देखना मुश्किल था। सड़क किनारे देवदार और चीड़ के फूलों को इकट्ठे कर बेचने के लिए कुछ लड़के पीछे पड़ रहे थे। देखने में भीड़ कोई खास नहीं लग रही थी क्योंकि सड़क काफी चौड़ी है। लेकिन मंदिर के पास लम्बी लाइन लगी थी और लग रहा था कि बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। बगल में एक पण्डे बाबा शीघ्र दर्शन के लिए रसीद दे रहे थे। 500 और 700 रूपये कीमत वाली यह रसीद लेकर लोग मां गंगा के मन्दिर के मुख्य द्वार के सामने स्थित बरामदे में विशेष पूजा–अर्चना करा रहे थे। हमने कुछ देर इंतजार किया और दिमाग लगाया। मन्दिर के बाहर पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के जवान सुरक्षा में लगे थे। हमने उन्हीं से निवेदन किया और उन लोगों ने स्वीकृति दे दी। फिर क्या था,हम भी बिना रसीद लिये डाइरेक्ट घुसे गये और बड़े शान से दर्शन किया और गंगा मइया तथा पुलिसवालों को धन्यवाद देते हुए मन्दिर से बाहर निकल गये। मंदिर के पास हमने प्रसाद लिया,जल भरा,फोटोग्राफी की,दर्शन किया,थोड़ा बहुत टहले और लगभग दो घण्टे में वापस हो गये।
गंगोत्री में भागीरथी का विशाल मंदिर है। इसमें गंगाजी,यमुनाजी,सरस्वतीजी,लक्ष्मीजी,पार्वतीजी एवं अन्नपूर्णाजी की मूर्तियां हैं। महाराज भागीरथ इनके सन्मुख हाथ जोड़े खड़े हैं। पूजा का समस्त सामान सोने का है। मंदिर के आस–पास देवदार के जंगल फैले हुए हैं।
गंगोत्री में भागीरथी का विशाल मंदिर है। इसमें गंगाजी,यमुनाजी,सरस्वतीजी,लक्ष्मीजी,पार्वतीजी एवं अन्नपूर्णाजी की मूर्तियां हैं। महाराज भागीरथ इनके सन्मुख हाथ जोड़े खड़े हैं। पूजा का समस्त सामान सोने का है। मंदिर के आस–पास देवदार के जंगल फैले हुए हैं।
मां गंगा की मूर्ति के दर्शन के बाद अब प्रत्यक्ष दर्शन का कार्यक्रम था। लेकिन यहां तो बर्फीले पानी की वजह से नदी में हाथ डालना मुश्किल हो रहा था। फिर भी दाे गैलन में गंगाजल भरा गया। इसके बाद मन्दिर के अगल–बगल घूमकर हमने दृश्यावलोकन किया,फोटो खींचे गये और वापस हो लिए।
मन्दिर और आस–पास का दृश्य ऐसा है कि वहीं हमेशा के लिए बस जाने का मन करता है। लेकिन यह संभव नहीं है। गंगोत्री में हमने टोस्ट का नाश्ता किया जो बहुत ही महंगा था,4 पीस वाले प्लेट की कीमत 60 रूपये थी। वैसे भी गंगोत्री में होटल कुछ महंगे हैं। वैसे यह महँगाई पीक सीजन का नतीजा थी।
गंगोत्री में भागीरथी का पानी अत्यधिक ठण्डा है। कमजोर चट्टानों के कारण वे आसानी से टूट कर पानी में घुलती रहती हैं और उसे मटमैला कर देती हैं। चीड़ एवं देवदार के घने जंगल व बर्फ से ढकी चोटियां,नयनाभिराम दृश्य उपस्थित करते हैं।
दोपहर बाद 2.20 बजे हम वापस चल दिये और 6 बजे शाम को नेताला पहुंच गये,जहां एक दिन पहले रूके थे। रास्ते में जाते और आते समय भी कई झरने व हरियाली व जंगलों से भरे पहाड़ मन को मोह रहे थे। 26 तारीख के अनुभव से सीख लेते हुए हमने आज खाना खाने के लिए बाहर होटलों की खोज की। रेस्टोरेन्ट तो अधिक संख्या में नहीं मिले,पर एक जगह 80 रूपये थाली में ही ठीक–ठाक खाना मिल गया।। बिजली की स्थिति अभी भी वही थी।
28 मई को सुबह 7 बजे ही हम नेताला से हरिद्वार के लिए चल पड़े तथा 2 बजे उसी पुराने होटल में पहुंच गये जहां 24 मई को ठहरे थे और संयोग से कमरा भी खाली मिल गया।
वापस लौटते हुए अजीब सा महसूस हो रहा था मानो ये पहाड़ बिछड़े साथी जैसे हो गये हों जिनसे शायद फिर कभी मुलाकात नहीं हो पायेगी । रास्ते में टिहरी होकर लौटते समय टिहरी झील भी दिखी जिसे दूर से ही देख पाये क्योंकि नजदीक जाने के लिए पहले से ड्राइवर से कार्यक्रम तय नहीं था। झील दूर से ही बहुत सुन्दर दिख रही थी।
वापस लौटते हुए अजीब सा महसूस हो रहा था मानो ये पहाड़ बिछड़े साथी जैसे हो गये हों जिनसे शायद फिर कभी मुलाकात नहीं हो पायेगी । रास्ते में टिहरी होकर लौटते समय टिहरी झील भी दिखी जिसे दूर से ही देख पाये क्योंकि नजदीक जाने के लिए पहले से ड्राइवर से कार्यक्रम तय नहीं था। झील दूर से ही बहुत सुन्दर दिख रही थी।
दो बजे होटल पहुंचने के बाद हमने आराम किया तथा शाम को टीवी से मालूम हुआ कि टिहरी में बादल फटा है। एक दिन पहले 27 मई को गंगोत्री से नेताला लौटते समय भी नेताला से कुछ किमी पहले बारिश से हमारी मुलाकात हुई थी। फिर भी हम सकुशल लौट आये थे।
धरासू से बड़कोट के रास्ते में सीढ़ीदार खेत |
उत्तरकाशी से पहले एक सुरंग को पार किया |
होटल के कमरे से भागीरथी का दृश्य |
हमारा कमरा |
मनेरी जलविद्युत परियोजना |
रास्ते में एक झरने की रखवाली में |
संकरी घाटी और दाेनों तरफ पहाड़ |
गंगोत्री मन्दिर के सामने तेज धूप में |
गंगोत्री से दिखता बर्फ से ढका पहाड़ |
भागीरथी किनारे |
हरसिल में |
हरसिल में |
टिहरी से थोड़ा पहले |
टिहरी झीन |
टिहरी झील और सीढ़ीदार खेत |
अच्छा लिखते हो सर। इस संस्मरण से भावी यात्रियों को मदद मिलेगी। पढ़ कर लग रहा है हम भी यात्रा कर रहे हैं
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद,प्रोत्साहन के लिए
DeleteKedarenath aur badrinath to hum bhi ja chuke hai par samay ke abhav ka karan yamunotri aur gangotri nahi ja sakt hai, dekhiye kab icha puri hoti hai
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