Friday, October 21, 2016

हरिद्वार–यात्रा का आरम्भ

हरिद्वार कहिए या हरद्वार या और कुछ भी। हरिद्वार तो इसलिए कहा जाता है कि श्री बद्रीनारायण की यात्रा या चार धाम यात्रा का शुभारम्भ इसी स्थान से होता है और उनके हरि नाम के कारण इसको हरिद्वार कहा जाता है। शिवजी के परमधाम केदारनाथ की यात्रा भी यहीं से आरम्भ होती है।
हर की पैड़ी हरिद्वार का सबसे प्रसिद्ध स्थान है। इसके अतिरिक्त हरिद्वार में पर्यटन की दृष्टि से दक्ष प्रजापति का मन्दिर,मनसा देवी,चण्डी देवी व माया देवी के मन्दिर,भीमगोडा मन्दिर व कुण्ड,सप्तर्षि आश्रम,परमार्थ आश्रम,भारत माता मन्दिर तथा शान्ति कुंज आदि प्रमुख स्थल हैं। लेकिन हम तो इनमें से किसी को भी लक्ष्‍य बनाकर नहीं चले थे। हमारा लक्ष्‍य तो कहीं और था और वह था सुरम्य प्रकृति की गोद में,पहाड़ों की शीतल घाटियों में बसे यमुनोत्री व गंगोत्री मन्दिर। ये वे स्थान हैं जहां देवदार के जंगलों से ढके तथा बर्फीली चोटियों वाले पहाड़ उत्साही दर्शनार्थियों को मूक भाव से,इशारों ही इशारों में बुलाते रहते हैं।

मेरा यह कार्यक्रम बड़े भारी चिन्तन के बाद बना था। क्योंकि यह पारिवारिक यात्रा थी। साथ में पत्नी संगीता व दोनेा बच्चियां सौम्या व स्नेहा थीं। परिवार और बच्चों के साथ यात्रा करना कितने झमेले वाला काम है, यह इस यात्रा में तो समझ में आ ही गया। पूरी यात्रा 23 मई 2016 से 2 जून 2016 तक कुल 11 दिन की थी। हरिद्वार जाने के लिए हमने हरिहरनाथ एक्सप्रेस में बलिया से लक्सर के लिए रिजर्वेशन कराया था।
23 मई को ट्रेन 12 बजे दिन में बलिया से रवाना हुई। लक्सर के थोड़ा पहले मैंने यह सोचा कि कहीं लक्सर से हरिद्वार जाने के लिए साधन मिले न मिले क्योंकि पहले एक बार लक्सर में यह समस्या झेल चुका हूं। तो उसी ट्रेन से रूड़की तक चले गये और 24 मई की सुबह 6.30 बजे ट्रेन से उतर गये। लेकिन यहां भी वही हाल था। विक्रम आटो व कार वाले 500 से 900 तक मांग रहे थे। विकट समस्या खड़ी हुई। सारा बजट गड़बड़ा जाता।
एक दुकानदार ने बहुत अच्छी सलाह दी। उसी की सलाह पर हमने ई रिक्शा किराया पर लिया और बस स्टैण्ड चले गये और वहां से लोकल बस से हरिद्वार। मन में सोचा कि क्या कमाल का आइडिया रहा। सपरिवार यात्रा करते समय ट्रैवेल एजेण्टों,होटल वालों और ड्राइवरों से निपटना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य होता है।

हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर सबको राेककर मैं कमरा खोजने निकला कोलम्बस की तरह,और शिवमूर्ति चौक के पास एक गली में 650 रूपये में एक अच्छा कमरा खोज लिया। कमरा तीन बेड का था और फ्रन्ट पर था जहां से पहाड़ियां दिखायी दे रही थीं,बच्चों के लिए यह दृश्य बहुत मजेदार था। दोनों बच्चियों ने कभी पहाड़ नहीं देखा था सो होटल की खिड़की से पहाड़ देखकर बहुत खुश हुईं।
होटल में रूककर नहाने–खाने के बाद हमने कुछ देर आराम किया और शाम को टहलने निकलने। टहलते हुए मंसा देवी मंदिर तक पहुंच गये। मंसा देवी रोपवे के टिकट काउण्टर पर बहुत भीड़ थी तो हमने पैदल ही ऊपर चलना शुरू कर दिया और फोटो खींचते हुए मन्दिर तक पहुंच गये। ऊपर कुछ भीड़ थी अतः हमने दर्शन का कार्यक्रम टाल दिया। मंसा देवी ट्रेक से नीचे का दृश्य बहुत सुन्दर दिखायी दे रहा था। शाम को लौटते समय सुबास घाट एवं हर की पैड़ी भी गये।

शाम को कमरे पर पहुंचने के बाद हमें अगले दिन की यात्रा का कार्यक्रम भी बनाना था। हम जिस होटल में रूके थे उसमें ट्रैवल एजेण्ट भी था। उसी से हमने यमुनोत्री एवं गंगोत्री यात्रा के लिए बात की। वैसे तो बस से जाना सस्ता पड़ता लेकिन बच्चियों की कम उम्र को देखते हुए और महँगाई की मार सहते हुए मैंने प्राइवेट गाड़ी बुक करने का फैसला किया। ट्रैवल एजेण्ट ने दो धाम की यात्रा के लिए टाटा इण्डिका या इण्डिगो का रेट 14000 रूपये बताया (2800 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से पांच दिनों के लिए)। बाहर के एजेण्टों से भी मैंने बात की तो उन्होंने 13500 बताया। अतः मैंने मोलभाव किया और बात 13000 रूपये में पक्की हो गयी। इतनी महँगी यात्रा करना मुझे तो बिल्कुल भी पसंद नहीं लेकिन मजबूरी थी। ट्रैवल एजेन्ट ने 5 दिन का प्लान भी बता दिया। अगले दिन 25 मई को सुबह 7 बजे निकलने की बात तय हुई।
हम सुबह 7 बजे तक तैयार हो गये और ड्राइवर भी इण्डिगो कार लेकर समय से आ गया। निकलते समय मैंने होटल वाले से पांच दिन बाद वापस लौटने पर कमरा सुरक्षित रखने के लिए कहा। इस पर ट्रैवल एजेन्ट का कहना था कि अभी से कमरा बुक करना ठीक नहीं था क्योंकि हम 4 दिन में भी वापस आ सकते थे। ड्राइवर ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलायी।

खैर, बात दोनों की सही थी लेकिन मैं मतलब समझ नहीं सका। जब गाड़ी पांच दिन के लिए प्रतिदिन के हिसाब से तय हो रही है तो 4 दिन में लौटने का क्या तुक हैǃ इस तरह के मामले में बहुत सावधानी से बातचीत करने की आवश्यकता होती है। ड्राइवर से अगर दो धाम यात्रा की बात कर ली गयी तो उसका काम हो गया आपको जल्दी से जल्दी दो धाम की यात्रा करा कर वापस पहुंचाना। इसलिए ये तय करना ठीक रहेगा कि भाई गाड़ी किस हिसाब से दे रहे हो,पांच दिन के लिए अथवा दो धाम के लिए। क्योंकि उत्तराखण्ड में यमुनोत्री,गंगोत्री,बद्रीनाथ एवं केदारनाथ में से कहीं की यात्रा का मतलब होता है धाम की यात्रा। इस मामले में मुझसे चूक हो गयी। क्योंकि ड्राइवर हमें 4 दिन में ही वापस लेकर आ गया। वैसे वास्तविक दो धाम की यात्रा है तो केवल चार दिन की ही लेकिन एक दिन का अतिरिक्त समय मिले तो थोड़ा इधर–उधर भी घूमा जा सकता है। उत्तराखण्ड में समय बिताने की कोई सीमा नहीं हो सकती। सारा जीवन इन पहाड़ों की गोद में बिताया जा सकता है।



मंसा देवी ट्रेक से नीचे का विहंगम दृश्य 
गंगा नदी और हरिद्वार शहर

गंगा किनारे


गंगा आरती देखने के लिए जुटी भीड़

हमारा कमरा

2 comments:

  1. बढ़िया शुरुआत, हरिद्वार गया तो कई बार हूँ लेकिन रुका नहीं हूँ, कई जगहें है जो देखनी है मुझे भी हरिद्वार में !

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    1. हाँ जी,उत्तराखण्ड की यात्रा की शुरूआत तो हरिद्वार से ही होती है। वैसे हरिद्वार में रूकना और हर की पैड़ी पर घूमना आध्यात्मिक आनन्द देता है।

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