Pages

Friday, October 28, 2016

यमुनोत्री

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें–

25 मई को सुबह 7.10 बजे हमारी इण्डिगो कार हरिद्वार से यमुनोत्री के लिये रवाना हो गयी। लगभग पूरा रास्ता पहाड़ी है और साथ ही चढ़ाई वाला भी। हम देहरादून–मसूरी–बड़कोट के रास्ते होकर गये। मई का महीना था लेकिन सफर बहुत ही आनन्ददायक रहा। ऊंचे पहाड़, नदी, झरने इत्यादि ने मन मोह लिया।
हरिद्वार या ऋषिकेश से यमुनाेत्री जाने के दो रास्ते हैं– पहला ऋषिकेश से देहरादून,मसूरी,बड़कोट होते हुए जानकी चट्टी तथा दूसरा ऋषिकेश से नरेन्द्रनगर,चम्बा,टिहरी,धरासू,बड़कोट होते हुए जानकी चट्टी। हम पहले रास्ते से गये तथा दूसरे रास्ते से वापस आये। इस रूटीन का यह फायदा है कि देहरादून–मसूरी भी घूम लेते हैं तथा वापसी में टिहरी झील भी देख लेते हैं।

Friday, October 21, 2016

हरिद्वार–यात्रा का आरम्भ

हरिद्वार कहिए या हरद्वार या और कुछ भी। हरिद्वार तो इसलिए कहा जाता है कि श्री बद्रीनारायण की यात्रा या चार धाम यात्रा का शुभारम्भ इसी स्थान से होता है और उनके हरि नाम के कारण इसको हरिद्वार कहा जाता है। शिवजी के परमधाम केदारनाथ की यात्रा भी यहीं से आरम्भ होती है।
हर की पैड़ी हरिद्वार का सबसे प्रसिद्ध स्थान है। इसके अतिरिक्त हरिद्वार में पर्यटन की दृष्टि से दक्ष प्रजापति का मन्दिर,मनसा देवी,चण्डी देवी व माया देवी के मन्दिर,भीमगोडा मन्दिर व कुण्ड,सप्तर्षि आश्रम,परमार्थ आश्रम,भारत माता मन्दिर तथा शान्ति कुंज आदि प्रमुख स्थल हैं। लेकिन हम तो इनमें से किसी को भी लक्ष्‍य बनाकर नहीं चले थे। हमारा लक्ष्‍य तो कहीं और था और वह था सुरम्य प्रकृति की गोद में,पहाड़ों की शीतल घाटियों में बसे यमुनोत्री व गंगोत्री मन्दिर। ये वे स्थान हैं जहां देवदार के जंगलों से ढके तथा बर्फीली चोटियों वाले पहाड़ उत्साही दर्शनार्थियों को मूक भाव से,इशारों ही इशारों में बुलाते रहते हैं।

Friday, October 14, 2016

चन्दे वाले पैराकमाण्डो

पंचों,
त्योहारों का मौसम आ गया है।
आजकल बड़ी गहमागहमी है। अपने मनबढ़ पड़ोसी ससुर पाकिस्तान को लेकर देश की सारी जनता गुस्से में है। हर कोई अपने–अपने तरीके से मन की भड़ास निकाल रहा है। कोई देशभक्ति की राजनीति कर रहा है तो कोई देशद्रोह की राजनीति कर रहा है। कोई सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रहा है तो कोई सबूत मांगने वालों की खिंचाई कर रहा है। सबका अपना–अपना मतलब है। कोई बार्डर पर तार लगवाने की बात कर रहा है तो कोई पहरा बढ़ाने की बात कर रहा है। और पंचों आप तो  जानते ही हैं कि हम हिन्दुस्तानी एक दूसरे की टांग खींचने में माहिर हैं। सो टंगखिंचउवल तो होनी ही है। पर भाइयों हम तो कुछ दूसरी ही बात कहेंगे।

Friday, October 7, 2016

गुलमर्ग

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें–


23 जून को हमें गुलमर्ग की तरफ जाना था। दरअसल ड्राइवर ने श्रीनगर से बाहर जाने के लिए हमारे सामने दो प्रस्ताव रखे थे– सोनमर्ग या गुलमर्ग। बर्फ पर उछलने–कूदने के लिए ये दोनों ही विकल्प ठीक थे। हमने गुलमर्ग को चुना। क्योंकि हम भी अपने तरीके से पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि अधिक बर्फ कहाँ मिलेगी। हमारे झुण्ड के 18 लोगों में से 2 की तबीयत कुछ नासाज हो गयी थी। कश्मीर आ कर किसी के साथ ऐसा कुछ हो तो बुरा तो लगता ही है। इस वजह वे से होटल में ही रूक गये। जिससे बस में जो एडजस्ट करने वाली समस्या थी,वह समाप्त हो गयी। श्रीनगर से तंगमर्ग होते हुए गुलमर्ग की दूरी 50 किमी है।