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Friday, February 28, 2020

भारत का अपवाह तंत्र-2

उत्तर भारत की नदियाँ

शिवालिक पहाड़ियों के उत्थान के फलस्वरूप उत्तर भारत का अपवाह तंत्र तीन प्रमुख भागों में विभक्त हो गया–
1. सिन्धु नदी तंत्र
2. गंगा नदी तंत्र
3. ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र

1. सिन्धु नदी तंत्र–

सिन्धु नदी तंत्र विश्व के सबसे बड़े अपवाह तंत्रों में से एक है। सिन्धु,झेलम,चिनाब,रावी,व्यास,सतलज इत्यादि इसकी प्रमुख नदियाँ हैं।
सिन्धु नदी– भारतीय उपमहाद्वीप में सिन्धु नदी तंत्र सबसे पश्चिमी नदी तंत्र है। लद्दाख श्रेणी के उत्तरी भाग में,कैलाश चोटी के दूसरी ओर 5000 मीटर की ऊँचाई से,बोखर चू हिमनद से इस नदी का उद्गम होता है।

Friday, February 21, 2020

भारत का अपवाह तंत्र-1

 
किसी भू–भाग का जल–प्रवाह,उस भू–भाग की वर्षा की प्रकृति एवं मात्रा,उच्चावच्च के स्वरूप एवं व्यवस्था का परिचायक होता है। जल–प्रवाह के वैसे तो कई स्रोत हो सकते हैं लेकिन नदियाँ जल–प्रवाह का प्रमुख स्रोत होती हैं। नदियों का जल प्रवाह न केवल सम्बन्धित क्षेत्र के प्राकृतिक स्वरूप को गढ़ता है वरन मानव के जीवन यापन एवं उसके क्षेत्रीय प्रतिरूप को भी प्रभावित करता है। नदियों का बहता हुआ जल सम्पूर्ण विश्व में प्रारम्भिक प्राकृतिक स्वरूप को परिवर्तित करने का सबसे बड़ा कारक है। अपने अपरदन,परिवहन और निक्षेपण सम्बन्धी कार्याें के द्वारा नदियाँ विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण करती हैं। जीव जगत को अपने जल के द्वारा जीवन प्रदान करती हैं और साथ ही मैदानों का निर्माण कर मनुष्य के आवास और कृषि के लिए साधन भी प्रदान करती हैं।

Friday, February 14, 2020

भारत की भूगर्भिक संरचना (4)

क्वाटर्नरी समूह की शैलें– इसके अन्तर्गत प्लीस्टोसीन तथा वर्तमान काल (होलोसीन) में निर्मित शैलों को सम्मिलित किया जाता है। इन दोनों कालों के आधार पर इस समूह की शैलों को दो भागों में बाँटा जाता है–

(i) प्लीस्टोसीन क्रम की शैलें– क्वाटर्नरी युग का आरम्भ व्यापक हिमावरण के साथ हुआ। इस कारण मौसम अत्यन्त ठण्डा हो गया। पृथ्वी के कई भागों में हिमनदों का विस्तार हो गया। तापमान में अधिक गिरावट के कारण बहुत से प्राणियों का अन्त हो गया और बहुत सारे अपेक्षाकृत गर्म क्षेत्रों में प्रवास कर गए। हिमालय के निचले प्रदेशों में भी हिमानियों का विस्तार हो गया। इसके निशान हिमालय में मिलते हैं। हिमानियों द्वारा किये गए निक्षेपों,जिन्हें हिमोढ़ कहते हैं,के कारण झीलों का निर्माण हो गया।

Friday, February 7, 2020

भारत की भूगर्भिक संरचना (3)

आर्यन कल्प की शैलें

इस समूह में ऊपरी कार्बोनिफेरस काल से लेकर प्लीस्टोसीन काल की शैलों को सम्मिलित किया जाता है। इस काल में भारत के भूगर्भिक स्वरूप में भारी उथल–पुथल हुई। भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत श्रेणी और उत्तर के विशाल मैदान का निर्माण इसी अवधि में हुआ। इस समूह की चट्टानों को चार प्रमुख भागों में बाँटा जाता है–
1. गोण्डवाना समूह की शैलें
2. क्रीटैशियस समूह की शैलें या दकन ट्रैप्स
3. टर्शियरी समूह की शैलें
4. क्वाटर्नरी समूह की शैलें