उत्तर भारत की नदियाँ
शिवालिक पहाड़ियों के उत्थान के फलस्वरूप उत्तर भारत का अपवाह तंत्र तीन प्रमुख भागों में विभक्त हो गया–
1. सिन्धु नदी तंत्र2. गंगा नदी तंत्र3. ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
1. सिन्धु नदी तंत्र–
सिन्धु नदी तंत्र विश्व के सबसे बड़े अपवाह तंत्रों में से एक है। सिन्धु,झेलम,चिनाब,रावी,व्यास,सतलज इत्यादि इसकी प्रमुख नदियाँ हैं।
सिन्धु नदी– भारतीय उपमहाद्वीप में सिन्धु नदी तंत्र सबसे पश्चिमी नदी तंत्र है। लद्दाख श्रेणी के उत्तरी भाग में,कैलाश चोटी के दूसरी ओर 5000 मीटर की ऊँचाई से,बोखर चू हिमनद से इस नदी का उद्गम होता है। कैलाश शिखर के उत्तरी भाग से एक छोटी धारा के रूप में प्रवाहित होते हुए इसे सिंगी खम्बाब या शेर का मुँह के नाम से जाना जाता है। यहाँ दक्षिणी भाग से गरतंग चू नदी आकर इससे मिलती हैं। झेलम,चिनाब,रावी,व्यास,सतलज इसकी मुख्य सहायक नदियाँ हैं। सिन्धु को अलिंग कांगड़ी,तिरिचमिर,गशेर ब्रम,मशेर ब्रम,राकापोशी,नगा पर्वत आदि शिखरों से हिमनदियों का जल प्राप्त होता है। सिन्धु नदी लद्दाख श्रेणी के उत्तरी भाग में लगभग 300 किलोमीटर प्रवाहित होने के बाद इस श्रेणी को छाँगड़ा नामक स्थान पर पार करती है। पुनः इस श्रेणी के दक्षिणी भाग में लगभग 400 किमी प्रवाहित होने के बाद स्कार्दू के निकट इसे पुनः काटती है। फिर नंगा पर्वत के निकट तीव्र मोड़ बनाती हुई हजारा प्रदेश को पार कर पंजाब (पाकिस्तान) के मैदानों में प्रवेश करती है। सिन्धु नदी तंत्र की नदियाँ ब्रह्मपुत्र नदी की उल्टी दिशा में प्रवाहित होती हैं। लेह के पास जास्कर श्रेणी सेे निकलने वाली जास्कर नदी इसमें मिलती है। जोजीला दर्रे और देवसाई मैदान के उत्तरी भाग से निकलकर ट्रांस नदी सिन्धु में मिलती है। काराकोरम के उत्तरी भाग से निकलने वाली श्योक,के–2 के दक्षिणी भाग से निकलने वाली शिगार और काराकोरम के पिछले भाग से निकलने वाली गिलगित इसकी अन्य सहायक नदियाँ हैं। कारगिल के पास बायें किनारे से सुरू और द्रास नदियाँ सिन्धु में मिलती हैं। अटक के समीप काबुल नदी इसमें मिलती है। स्कार्दू के निकट सिन्धु घाटी की चौड़ाई 150 मीटर और गहराई 3 मीटर तक होती है। अटक के निकट सिन्धु नदी समुद्रतल से 600 मीटर की ऊँचाई पर बहती है और यहाँ इसकी घाटी लगभग 250 मीटर चौड़ी है। पंजाब की नदियों से मिलने के बद पठानकोट के निकट इसकी घाटी की चौड़ाई लगभग 550 मीटर हो जाती है।ग्रीष्म ऋतु में बर्फ पिघलने से इस नदी का जलस्तर अत्यधिक बढ़ जाता है। यह नदी सिन्धु के शुष्क प्रदेश में प्रवाहित होती हुई अरब सागर में मिल जाती है। सिन्धु नदी सर्वाधिक हिमनदों तथा पर्वतमालाओं (काराकोरम,लद्दाख व जास्कर) के ढाल को अपवाहित करती है। नदी की कुल लम्बाई 2880 किलोमीटर और अपवाह क्षेत्र 9.6 लाख वर्ग किलोमीटर है। भारत में इसकी लम्बाई 1270 किलोमीटर और जल अपवाह क्षेत्र 3.2 लाख वर्ग किलोमीटर है। इसके डेल्टा का विस्तार 7800 वर्ग किेलोमीटर में है जहाँ ज्वार के समय 6 से 9 मीटर की ऊँचाई तक जल चढ़ जाता है। सिन्धु जल समझौते के अनुसार इस नदी का 60 प्रतिशत जल भारत द्वारा प्रयोग में लाया जा सकता है।
झेलम नदी– इसका प्राचीन नाम वितस्ता है। इस नदी का उद्गम जम्मू और कश्मीर के वेरीनाग के पास शेषनाग नामक झील से होता है। अपने उद्गम से उत्तर–पश्चिम दिशा में 115 किलोमीटर प्रवाहित होने के बादयह वूलर झील में मिल जाती है। पुनः इस झील से आगे निकल कर यह महा हिमालय और पीर पंजाल श्रेणियों के मध्य प्रवाहित होती है। बारामूला के आगे यह तीव्र ढाल वाली 2130 मीटर गहरी घाटी बनाती है और मुजफ्फराबाद (पाकिस्तान) की ओर मुड़ जाती है। ट्रीम्मू में यह चिनाब नदी से मिल जाती है। इस नदी की लम्बाई 400 किलोमीटर और अपवाह क्षेत्र 28490 वर्ग किलोमीटर है। परिवहन और व्यापार की दृष्टि से यह कश्मीर की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी है। इसे कश्मीर की हरी–भरी सुखद घाटी भी कहते हैं। इस नदी पर अनेक सिंचाई और विद्युत परियोजनाएं विकसित की गयी हैं।
चिनाब नदी– इसका प्राचीन नाम अस्किनी है। यह सिन्धु की सबसे बड़ी सहायक नदी है। ऊपरी भाग में चन्द्रा और भागा नामक दो नदियों के मिलने से इस नदी की उत्पत्ति होती है। लाहुल में बारालाचा दर्रे (4883 मीटर) के दोनों ओर इनका उद्गम होता है और टाँडी नामक स्थान पर ये दोनों धाराएं मिल जाती हैं। इनमें चन्द्रा का उद्गम हिमनद से होता है जबकि भागा प्रपाती नदी है। दोनों के संगम के बाद चिनाब महान हिमालय और पीर पंजाल श्रेणियों के मध्य हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में उत्तर–पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है। किश्तवाड़ के पास एक विकट मोड़ बनाते हुए,एक संकीर्ण घाटी के रूप में यह नदी पीरपंजाल श्रेणी को रियासी में पार कर पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है। भारत में इस नदी की लम्बाई 1180 किलोमीटर और अपवाह क्षेत्र 26755 वर्ग किलोमीटर है। चिनाब नदी पर सलाल तथा दुलहस्ती नामक महत्वपूर्ण जल–विद्युत परियोजनाएं बनायी गयी हैं। डोडा जिले की बगलीहार परियोजना भी चिनाब नदी पर ही बनी है।
रावी नदी– यह पंजाब की सबसे छोटी नदी है। इसका प्राचीन नाम परूष्णी अथवा इरावती है। कुल्लू की पहाड़ियों में रोहतांग दर्रे के निकट इसका उद्गम होता है। व्यास नदी का स्रोत भी इसके निकट ही है। यह नदी पीरपंजाल के दक्षिणी तथा धौलाधर श्रेणी के उत्तरी ढाल को अपवाहित करती है। चम्बा शहर के नीचे यह दक्षिण–पश्चिम दिशा में मुड़ जाती है। धौलाधर श्रेणी को पार करते समय एक गार्ज बनाते हुए पठानकोट के निकट यह पंजाब के मैदान में प्रवेश करती है। पंजाब के मैदान में यह भारत–पाक सीमा के साथ साथ प्रवाहित होती है और गुरदासपुर और अमृतसर जिले के बाद पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है। आगे चलकर यह मुल्तान के निकट झेलम और चिनाब की सम्मिलित धारा से मिल जाती है। इस नदी की लम्बाई 725 किलोमीटर है तथा भारत में यह 5957 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के जल को अपवाहित करती है।
व्यास नदी– व्यास नदी का प्राचीन नाम विपाशा है। इसका उद्गम व्यास कुण्ड से होता है जो रोहतांग दर्रे (4000 मीटर) के दक्षिण की ओर स्थित है। यहाँ से निकलने के बाद यह धौलाधार श्रेणी को काटती है और कोटी एवं लार्जी के निकट गहरे गार्ज का निर्माण करती है। इसके पश्चात यह उत्तर से दक्षिण की ओर मनाली और कुल्लू शहर के साथ साथ प्रवाहित होती है। यहाँ नदी की घाटी एक अनुप्रस्थ घाटी के रूप में है जो कुल्लू घाटी के नाम से जानी जाती है। नीचे की ओर यह कांगड़ा घाटी से होकर बहती है तथा पश्चिम की ओर मुड़कर पंजाब के मैदान में प्रवेश करती है। अन्त में कपूरथला और अमृतसर जिलों से गुजरती हुई हरिके के निकट सतलज नदी से मिल जाती है। यह नदी 470 किलाेमीटर लम्बी है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 25900 वर्ग किलाेमीटर है।
सतलज नदी– इस नदी का प्राचीन नाम शतुद्रि है। इसका उदगम कैलाश श्रेणी के दक्षिणी ढाल पर 4570 मीटर की ऊँचाई पर स्थित मानसरोवर झील के निकट राक्षस ताल से होता है। यह एक पूर्ववर्ती नदी है जिसे तिब्बत में लांगचेन खम्बाब कहते हैं। यह हिमालय की उत्पत्ति के पूर्व से ही प्रवाहित हो रही है और इस कारण इसने जास्कर और महान हिमालय श्रेणियों में लगभग 900 मीटर गहरे गार्ज का निर्माण किया है। भारत में यह नदी जास्कर श्रेणी को शिपकी ला दर्रे (4300 मीटर) के पास काटकर प्रवेश करती है जहाँ यह जास्कर श्रेणी से होकर बहती है। हिमाचल प्रदेश में खाब नामक स्थान पर शिपकी नदी से इसका संगम होता है। यहाँ से यह पश्चिम की ओर मुड़कर कल्पा को पार करती है तथा रामपुर के निकट धौलाधार श्रेणी को एक सँकरे गार्ज के द्वारा पार करती है। शिवालिक श्रेणी से गुजरते समय इस नदी पर भाखड़ा गाँव के पास एक गार्ज पर भाखड़ा बाँध का निर्माण किया गया है। भाखड़ा बाँध के नीचे यह नदी रोपड़ में पंजाब के मैदान में प्रवेश करती है। कपूरथला के दक्षिण–पश्चिम में हरिके जलाशय के पास व्यास नदी इसमें आकर मिलती है। इस संगम के बाद यह पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है। पाकिस्तान में यह रावी,चिनाब और झेलम नदियों के जल का संग्रह करने के बाद सिन्ध में मिल जाती है। भारत में इस नदी की लम्बाई 1050 किलोमीटर है तथा अपवाह क्षेत्र 25900 वर्ग किलाेमीटर है। इसके जल का अधिकतम प्रयोग भाखड़ा बाँध,सरहिन्द और हरिके जलाशयों द्वारा किया जाता है।
सिन्धु जल समझौता– सिन्धु नदी तंत्र के जल का प्रयोग भारत और पाकिस्तान द्वारा 1960 में दोनों देशों के बीच हुए भारत–पाकिस्तान सिंन्धु जल समझौते के अनुसार किया जाता है। सिन्धु और इसकी सहायक नदियों के जल के बँटवारे के लिए भारत और पाकिस्तान के मध्य 16 सितम्बर 1960 में एक समझौता हुआ। अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (विश्व बैंक) ने इस समझौते में मध्यस्थता की और एक स्थायी सिन्धु जल आयोग की स्थापना की गयी। इस आयोग को भारत और पाकिस्तान के मतभेदों की जाँच करने का अधिकार दिया गया। इस समझौते के अनुसार भारत रावी,व्यास और सतलज नदियों के जल का बिना किसी रूकावट के उपयोग कर सकता है जबकि सिन्धु,झेलम और चिनाब के जल के उपयोग का अधिकार पाकिस्तान को दिया गया जो भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर के जल की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखता है। इसी क्रम में कश्मीर में चिनाब नदी पर सलाल और दुलहस्ती परियोजनाओं के निर्माण के लिए भारत और पाकिस्तान के मध्य समझौता हुआ।
नोट– ब्लॉग में प्रस्तुत सामग्री एवं मानचित्र भूगोल के प्रख्यात विद्वानों की पुस्तकों,विभिन्न वेबसाइटों और एटलस से लिये गये हैं।
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