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Friday, December 30, 2022

आठवाँ दिन– मुढ से काजा

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आज सुबह मैं जल्दी काजा के लिए निकलना चाहता था। काजा के आस–पास भ्रमण करना था और बाइक में कुछ रिपेयर भी कराना था। रात में बारिश नहीं हुई थी। सुबह तक मौसम साफ हो चुका था। छ्टिपुट बादल थे। आसमान काफी कुछ नीला दिखायी पड़ रहा था। रात में बरफ भी पड़ी थी। सामने दिख रही पहाड़ी चोटियों पर बरफ जम गयी थी। नीले आसमान की पृष्ठभूमि में नजारा अत्यन्त मनमोहक था। वैसे तो पूरी तरह धूप खिलने के बाद ही घाटी का सौन्दर्य दिखायी पड़ता लेकिन मेरे पास समय कम था। मैं जल्दी से नीचे उतरा और बाइक की तरफ भागा। मेरी इस यात्रा में यह रोज का रूटीन था। पर आज मेरी बाइक ने भी अपना रूप बदल लिया था।

Friday, December 23, 2022

पिन वैली

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मुड या मुढǃ मेरे मोबाइल के अनुसार 3836 मीटर की ऊँचाई पर बसा एक छोटा सा गाँव। मोबाइल नेटवर्क की पहुँच से दूर। जीने–खाने की जुगत में मशगूल। बाकी दुनिया में क्या हो रहा है,इससे कोई मतलब नहीं। आज मैं भी,एक दिन के लिए ही सही,इस गाँव का हिस्सा बनकर आश्चर्यचकित था। अतीत में मैंने शायद ही इस तरह की दुनिया की कल्पना कभी की होगी।
मुढ के पास गाँव के अलावा पोस्ट ऑफिस का भी दर्जा है। अब तक की यात्रा में मुझे एक बात हर जगह कॉमन दिखी थी और वो ये कि इस छोटी सी दुनिया में सब अपने काम में व्यस्त हैं,मस्त हैं।

Friday, December 16, 2022

सातवाँ दिन– ढंखर से मुढ

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आज मुझे ढंखर से चल कर मुढ तक जाना था और उसके बाद काजा तक या फिर जैसा मूड करेǃ टिप–टिप बारिश आज भी पिण्ड नहीं छोड़ने वाली थी। स्पीति वाले भी इस बारिश के चलते हैरान थे। स्पीति में इतनी बारिशǃ गया निवासी होटल मैनेजर भी हैरान था– 
ʺस्पीति में इतनी बारिश मैंने पहले नहीं देखी।ʺ 
8.30 बजे मैं मुढ के लिए रवाना हो गया। आधी–अधूरी तैयारी के साथ,मतलब कम कपड़ों में। अगले एक घण्टे के अंदर ही मुझे समझ आ गया कि मुझे पूरी तैयारी के साथ एक घण्टे पहले निकलना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो मुढ में नाश्ता करने के बाद मैं शाम तक काजा पहुँच सकता था। लेकिन ऐसी भी क्या जल्दीǃ

Friday, December 9, 2022

छठां दिन– नाको से ढंखर

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नाको का मौसम अच्छा था तो मैं सुबह जल्दी निकलने के प्रयास में था। तैयार होकर बाहर निकलने की कोशिश की तो होटल का मुख्य दरवाजा बाहर से बन्द मिला। होटल वाले का कहीं अता–पता नहीं था। एक दो बार इधर–उधर की युक्ति लगाने और सोच–विचार करने में 10 मिनट गुजर गये। ऐसी परिस्थिति में कैसी मनोदशा होती है,यह वही समझ सकता है जो ऐसी दशा से गुजरा हो। आप कमरे से बाहर निकलना चाहते हों और दरवाजा बाहर से बंद हो। मुझे घबराहट सी होने लगी। अचानक होटल वाले का नम्बर दीवार पर लिखा दिख गया। मैं नम्बर डायल करने वाला ही था कि बिचारा खुद कहीं से प्रकट हो गया।

Friday, December 2, 2022

पाँचवां दिन– सांगला से नाको

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अगले दिन सुबह के समय सांगला में भी रिमझिम बारिश होती रही। मु्झे इस बारिश और अपनी किस्मत पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन कोई चारा नहीं था। सुबह के आठ बजकर 10 मिनट पर बारिश बन्द होते ही मैं सांगला से रवाना हो गया। बारिश की वजह से रास्ता और भी खराब हो गया था।
करचम में बास्पा अपने अंतिम पड़ाव में,अपना स्वत्व सतलज को सौंप देती है। वैसे तो अपने अंतिम स्थल पर नदी बिल्कुल धीमी हो जाती है लेकिन करचम में बने बाँध ने बास्पा को और भी धीमा कर दिया है। तो मैंने भी कराहती हुई बास्पा से विदा ली और एक बार फिर सतलज के साथ हो लिया।