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Friday, December 27, 2019

उत्तरी मैदानी प्रदेश (2)

मैदानी प्रदेश का प्रादेशिक विभाजन–
भारत का मैदानी प्रदेश एक विशाल भूभाग है। इसकी क्षेत्रीय विशेषताओं को ठीक से समझने के लिए इसे छोटे भागों में विभाजित किया जाता है। ये भाग निम्नवत हैं–
1. राजस्थान का मैदान
2. पंजाब–हरियाणा का मैदान
3. गंगा का मैदान
4. ब्रह्मपुत्र का मैदान

राजस्थान का मैदान– इसे भारतीय मरूस्थल के नाम से भी जाना जाता है।

Friday, December 20, 2019

उत्तरी मैदानी भाग (1)

उत्तरी मैदानी प्रदेश

हिमालय के दक्षिण में उसी के समानान्तर विशाल मैदानी प्रदेश फैला हुआ है। यह मैदानी प्रदेश हिमालय और दक्षिण के पठारी प्रदेश को एक दूसरे से अलग करता है। इस विशाल मैदान की उत्पत्ति हिमालय की उत्पत्ति के बाद हुई है। इस तरह भूगर्भिक दृष्टिकोण से यह नवीनतम भू–भाग है। इस मैदान का निर्माण करने वाली मुख्य नदियाँ सिन्धु,गंगा और ब्रह्मपुत्र हैं। इन मुख्य नदियों और इनकी सहायक नदियों ने एक लम्बे समयान्तराल में अवसादों का निक्षेप करके इस मैदान का निर्माण किया है और यह प्रक्रिया आज भी जारी है। प्रशासनिक दृष्टि से इस मैदान का एक बड़ा भाग पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी पाया जाता है।

Friday, December 13, 2019

प्रायद्वीपीय पठारी भाग (2)

अरावली पहाड़ियाँ– यह भारत की प्राचीनतम वास्तविक (वलित) पर्वत श्रेणी है। यह श्रेणी थार मरूस्थल की पूर्वी सीमा पर अहमदाबाद के निकट,नर्मदा नदी के तट से प्रारम्भ होकर उत्तर–पूर्व दिशा में दिल्ली के दक्षिण–पश्चिम तक,लगभग 800 किलोमीटर की लम्बाई में फैली हुई हैं। उत्तर–पूर्व की ओर इस श्रेणी की ऊँचाई और चौड़ाई क्रमशः घटती जाती है और दिल्ली के पास यह छोटे–छोटे टीलों के रूप में रह जाती है। इसकी औसत ऊँचाई 300 से 900 मीटर के बीच है। दक्षिण की ओर गुजरात में यह विदीर्ण पठार के सदृश दिखती है परन्तु उत्तर की ओर राजस्थान में यह स्पष्ट पर्वत श्रेणियों की तरह से दिखती है।

Friday, December 6, 2019

प्रायद्वीपीय पठारी भाग (1)

भारत भूमि का सर्वाधिक प्राचीन खण्ड प्रायद्वीपीय पठारी भाग है जो लगभग 16 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस तरह यह पठारी भाग भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग आधे भाग में दक्षिणी–पूर्वी राजस्थान,मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़,झारखण्ड,ओडिशा,महाराष्ट्र,गुजरात,कर्नाटक,आन्ध्र प्रदेश,तेलंगाना,केरल,तमिलनाडु इत्यादि राज्यों में विस्तृत है। भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्र के समरूप यह पठारी भाग भी त्रिभुजाकार रूप में फैला है जिसका शीर्ष दक्षिण की ओर और आधार उत्तर की ओर है। प्राकृतिक दृष्टि से इसकी उत्तरी सीमा पर अरावली,कैमूर और राजमहल की पहाड़ियाँ स्थित हैं।

Friday, November 29, 2019

हिमालय की उत्पत्ति

हिमालय जैसी विशाल पर्वत श्रृंखला का निर्माण एक अत्यधिक जटिल प्रक्रिया के फलस्वरूप हुआ है। इसे समझने के पूर्व कुछ मूलभूत तथ्यों और सिद्धान्तों के बारे में जानना आवश्यक है। भूगोल और भूगर्भविज्ञान का अध्ययन करने वाले तो इसके बारे में जानकारी रखते हैं लेकिन दूसरे लोगों के लिए इसे समझना थोड़ा कठिन है। आइए इसे आसानी से समझने की कोशिश करते हैं।
लम्बे भूगर्भिक अध्ययनों और आधुनिक शोधों से पता चलता है कि महाद्वीपों और महासागरों का जो स्वरूप वर्तमान में दिखाई पड़ता है वह हमेशा से ऐसा ही नहीं रहा है। इनकी स्थिति और आकार हमेशा बदलते रहे हैं। प्लेट टेक्टानिक्स सिद्धान्त  इसकी सरल व्याख्या प्रस्तुत करता है। इसके अनुसार पृथ्वी की ऊपरी परत कई छोटे–छोटे टुकड़ों के मिलने से बनी है। इन टुकड़ों को प्लेट कहते हैं।

Friday, November 22, 2019

उत्तरी पर्वतीय भाग (3)

हिमालय के मोड़– पश्चिम में सिन्धु नदी और पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी,हिमालय को आर–पार काट कर प्रवाहित होती हैं। इन्हीं स्थानों के पास पश्चिम में नंगा पर्वत और पूर्व में नामचा बरवा शिखर स्थित हैं। इन्हें ही हिमालय की सीमा माना जाता है। इन दोनों ही स्थलों पर हिमालय पर्वत श्रृंखला में तीव्र मोड़ पाये जाते हैं। पश्चिम में हिमालय की सामान्य दिशा उत्तर–पश्चिम है जो एकाएक मुड़ कर दक्षिण–पश्चिम हो जाती है। यहाँ ये सुलेमान व किरथर श्रेणी के रूप में जाने जाते हैं। पूर्व में हिमालय की दिशा उत्तर–पूर्व है जो एकाएक मुड़कर दक्षिण हो जाती है जिसे अराकानयोमा के नाम से जाना जाता है। नामचा बरवा के आगे इन्हें कई नामों यथा पटकोई,नागा,मणिपुर,लुशाई,अराकान इत्यादि नामों से जाना जाता है।

Friday, November 15, 2019

उत्तरी पर्वतीय भाग (2)

ट्रांस हिमालय या तिब्बत हिमालय– महान हिमालय के उत्तर में,इसी के समानान्तर कई श्रेणियाँ पायी जाती हैं। इन्हें सम्मिलित रूप से ट्रांस हिमालय  या तिब्बत हिमालय कहा जाता है। यह श्रेणी पश्चिम से पूर्व तक 960 किलोमीटर की लम्बाई में विस्तृत है। पूर्वी तथा पश्चिमी किनारों पर इसकी चौड़ाई 40 किलोमीटर है जबकि मध्य भाग में यह 225 किलोमीटर चौड़ी है। इस श्रेणी की औसत ऊँचाई 3100 से 3700 मीटर है। इस श्रेणी के अन्तर्गत जास्कर,लद्दाख,कैलाश और काराकोरम श्रेणियाँ आती हैं। सिन्धु,सतलज और ब्रह्मपुत्र नदियों का उद्गम ट्रांस हिमालय श्रेणियों में ही होता है।

Friday, November 8, 2019

उत्तरी पर्वतीय भाग (1)

भारत में बड़े पैमाने पर धरातलीय विविधताएं पायी जाती हैं। पर्वत,पठार,मैदान,द्वीप इत्यादि सभी भूस्वरूपों के दर्शन भारत भूमि पर व्यापक रूप से होते हैं। भारत के सम्पूर्ण भू–क्षेत्र का लगभग 29 प्रतिशत भाग पर्वतीय है जबकि 28 प्रतिशत भाग पठारी और शेष 43 प्रतिशत भाग मैदानी है। विश्व औसत की तुलना में भारत में मैदानों का प्रतिशत अधिक है। भूगोल के अनेक विद्वानों ने भारत के सम्पूर्ण भू–क्षेत्र को अध्ययन की सुविधानुसार 4 भागों में बाँटा है। इन चार भू–भागों में प्रायद्वीपीय पठारी भाग सबसे प्राचीन भूखण्ड है। भौगोलिक इतिहास के अनुसार पठारी भाग के निर्माण के एक लम्बे अन्तराल के पश्चात हिमालय का निर्माण हुआ।

Friday, November 1, 2019

भारत–एक परिचय

विष्णु पुराण के अनुसार–
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद्भारतं नाम,भारती यत्र सन्ततिः।।
अर्थात जो समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित है,वह देश भारतवर्ष कहलाता है। उसमें भरत की सन्तानें बसी हुई हैं।
भारत संभवतः उतना ही प्राचीन देश है जितनी कि स्वयं मानव सभ्यता। इसकी सभ्यता और संस्कृति 5000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। जहाँ तक नामकरण का प्रश्न है,आर्याें द्वारा सर्वप्रथम पंजाब के क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित कर इसका नाम "सप्त सैन्धव" रखा गया। इसके पश्चात पूरब की ओर अपना प्रभुत्व विस्तार करके,गंगा–यमुना के मध्य भाग को उन्होंने "ब्रह्मर्षि देश" कहा।

Friday, October 25, 2019

देवप्रयाग–देवताओं का संगम

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देवप्रयाग भागीरथी और अलकनन्दा के संगम पर बसा पवित्र स्थान है। देवप्रयाग की प्रसिद्धि यहाँ बने रघुनाथ मंदिर के कारण भी है। रघुनाथ मंदिर के अन्दर काले पत्थर की बनी,6 फुट ऊँची रघुनाथ जी की मूर्ति विराजमान है। कहते हैं देवप्रयाग के इस प्राचीन मंदिर का निर्माण शंकराचार्य ने कराया था। बाद में गढ़वाल राजवंश ने इस मंदिर का जीर्णाेद्धार कराया। इस स्थान का नाम देवप्रयाग होने के पीछे भी एक कहानी है। कहते हैं कि देवशर्मा नाम ऋषि ने यहाँ भगवान विष्णु की तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिया और तबसे उस ऋषि के नाम पर ही इस स्थान को देवप्रयाग के नाम से जाना जाता है।

Friday, October 18, 2019

घांघरिया से वापसी

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शाम को फूलों की घाटी से लौटकर जब मैं घांघरिया पहुँचा तो घांघरिया और भी सूना हो चुका था। पहले तो मैं गुरूद्वारे में घुसा। क्योंकि बिना पैसे की चाय वहीं मिलनी थी। वो भी जितनी चाहिए उतनी। यहाँ इक्का–दुक्का लोग ही दिखायी पड़ रहे थे। इस समय तक घांघरिया की भीड़–भाड़ काफी कम हो गयी थी। हेमकुण्ड बहुत कम ही लोग गये थे। जो भी थे फूलों की घाटी गये थे। इनमें से भी जो लोग जल्दी लौट आये वे तुरन्त घोड़ों पर सवार होकर गोविन्दघाट की ओर चल पड़े थे। इसी कारण घोड़ेवाले भी कम ही दिख रहे थे।

Friday, October 11, 2019

फूलों की घाटी

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पाँचवां दिन–
कल शाम को हेमकुण्ड साहिब से घांघरिया लौटा तो मेरी किस्मत के सितारे जगमगा रहे थे। मौसम साफ हो चुका था। मैं मौसम साफ होने के लिए वाहे गुरू से अरदास करता रहा। क्योंकि फूलों की घाटी जाने का असली मजा तभी आता जब मौसम साफ हो। शाम तक आसमान अधिकांशतः नीला हो चुका था। छ्टिपुट बादल ही दिखायी पड़ रहे थे। आसमान साफ होने से ठण्ड भी हल्की सी बढ़ गयी थी। घांघरिया के नीले आसमान में चमकते सितारों को देखना काफी रोमांचक था।

Friday, October 4, 2019

घांघरिया से हेमकुण्ड साहिब

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चौथा दिन–
कल मैं दोपहर बाद घांघरिया पहुँचा था। कुछ खास चहल–पहल नहीं दिखी। यह समय या तो नीचे गोविन्दघाट से घांघरिया आकर कमरे खोजने का था या फिर नीचे गोविन्दघाट जाने का या फिर घांघरिया की गलियाें में टहलने का। लेकिन आज सुबह के समय लोग हेमकुण्ड साहिब या फिर फूलों की घाटी के लिए निकल रहे थे। रिमझिम बारिश हो रही थी। ऐसे में फूलों की घाटी जाना ठीक नहीं था। मौसम साफ होता तो फूलों की घाटी जाना अच्छा रहता। तो अधिकांश लोग हेमकुण्ड साहिब ही जा रहे थे। मैं भी इनमें से एक था।

Friday, September 27, 2019

गोविन्दघाट से घांघरिया

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तीसरा दिन–
सुबह सोकर उठा तो रिमझिम बारिश अपने पूरे शबाब पर थी। सामने लक्ष्‍मणगंगा बादलों से निकलकर नीचे हरे जंगलों में कहीं खो जा रही थी। गोविंदघाट की रोमानी सुबह अपने आप में बहुत कुछ कह रही थी। वास्तव में यह स्थान रास्ता नहीं वरन मंजिल होनी चाहिए। बारिश प्रकृति का उत्सव है। प्रकृति आज पूरे श्रृंगार में उत्सव मना रही थी। पहाड़ों की बरसात जितनी डरावनी होती है उतनी ही सुंदर भी। इस मौसम में पहाड़ हरी चादर तो वैसे भी ओढ़ लेते हैं। इस हरी चादर के ऊपर सफेद बादलों का दुशाला ओढ़ प्रकृति सुंदरी अपने अप्रतिम स्वरूप में निखर आती है।

Friday, September 20, 2019

गोविन्दघाट की ओर

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दूसरा दिन–
मुझे रात में पता चल गया था कि हरिद्वार से बद्रीनाथ के लिए पहली बस 3.15 पर है। मैंने पहले ही तय कर लिया कि इतनी सुबह बस पकड़ना मेरे बस की बात नहीं। वैसे इस पहली बस के बाद भी इस मार्ग पर निजी बस ऑपरेटरों की कई बसें हैं। अन्तिम बस सम्भवतः 8 बजे है। उत्तराखण्ड परिवहन निगम की एकमात्र बस 5.30 बजे है। उत्तराखण्ड परिवहन निगम को पहाड़ सम्भवतः अच्छा नहीं लगता और शायद इसी कारण वह अपनी अधिकांश बसें मैदानी इलाकों में चलाता है। कोई दिल्ली तो कोई चण्डीगढ़।  उत्तराखण्ड के अन्दरूनी भागों का जिम्मा निजी बस संचालकों के ही ऊपर है।

Friday, September 13, 2019

सावन की ट्रेन

बारिश में पहाड़ खतरनाक हो जाते हैं। मानसून के दौरान पहाड़ों पर नहीं जाना चाहिए। बादल फटते हैं,बाढ़ आती है,रास्ते बन्द हो जाते हैं। बहुत रिस्क होता है। ऐसा सुनते–सुनते अजीर्ण हो गया था। तो जुमलों की सच्चाई जानने का दूसरा कोई उपाय नहीं सिवाय इसके कि मौके पर पहुँच कर इनकी परीक्षा ली जाय। संयोग कुछ ऐसा रहा कि इस साल अर्थात् 2019 के मानसून में न्यूज चैनलों पर लगभग रोज ही आधा हिन्दुस्तान नदियों की बाढ़ में बहता रहा। राजस्थान के रेगिस्तान में भी बाढ़ आती रही। फिर पहाड़ों का तो पूछना ही क्याǃ

Friday, September 6, 2019

कल्पेश्वर– पंचम केदार

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अब मेरा कार्यक्रम पाँचवें केदार अर्थात कल्पेश्वर जाने का था। पंचकेदार में से प्रथम केदार,केदारनाथ के दर्शन तो पहले ही कर चुका हूँ। इस बार की यात्रा में चतुर्थ व पंचम केदार की यात्रा के लिए निकला था। चतुर्थ केदार अर्थात् रूद्रनाथ का दर्शन  कठिन चढ़ाई के पश्चात् एक दिन पूर्व सम्पन्न हुआ और अब पंचम केदार कल्पेश्वर। क्रम की बाध्यताओं का अनुकरण करना आज के व्यस्त जीवन में काफी मुश्किल है। तो मुझे जहाँ भी पहुँचना संभव था पहुँचता रहा।

Friday, August 30, 2019

काण्डई बुग्याल से नीचे

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काण्डई बुग्याल से थोड़ी ही दूर चलने के बाद जंगल फिर से शुरू हो गया। साथ चल रहे साधु महाराज ने बताया कि ये जंगल अब अंत तक साथ चलेगा। मतलब ये कि सगर वाले रास्ते की तुलना में इस रास्ते के अधिकांश भाग पर जंगल है और यह जंगल काफी घना भी है। वैसे जंगल का डर अब तक मन से निकल चुका था। अब जंगल में चलने में मजा भी आ रहा था। हाँ,रास्ते का तेज ढाल उतराई में भी दिक्कतें पैदा कर रहा था। वैसे जंगल का मौसम काफी सम रहता है। साधु महाराज को जंगल से डर लग रहा था जबकि मुझे मजा आ रहा था।

Friday, August 23, 2019

रूद्रनाथ से वापसी

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26 मई
रात में वास्तविक ठण्ड की बजाय ठण्ड का डर अधिक था। मैं दो रजाई ओढ़ कर सोया था लेकिन सोने के एक घण्टे बाद ही मुझे एक रजाई हटानी पड़ी। क्योंकि शरीर पर कपड़े काफी थे और कमरा भी गर्म हो गया था। थकान की वजह से भी कुछ अधिक ठण्ड महसूस हो रही थी। संभवतः थकान की वजह से ही,नींद भी ठीक से नहीं आ रही थी। मेरी बगल में सोये दो लड़के भी इस समस्या से परेशान थे। एक लड़का तो रात भर उठता–बैठता रहा और मुझे भी डिस्टर्ब करता रहा। इस सबके बावजूद भोर में 4.15 पर ही वह उठ गया और मुझे भी जगा दिया।

Friday, August 16, 2019

पनार बुग्याल से रूद्रनाथ

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मुझे पहले से ही पता है कि पित्रधार इस ट्रेक का सबसे ऊँचा स्थान है। पनार में मैं 3400 मीटर की ऊँचाई पर था और अभी इससे भी कुछ सौ मीटर ऊपर जाना है। मैं अपने जीवन में पहली बार इतनी ऊँचाई चढ़ने जा रहा हूॅं। मन में रोमांच भी है और कुछ–कुछ डर भी। इसके अलावा डर इस बात का भी है कि मैंने लगभग 1750 मीटर की ऊँचाई से चढ़ाई शुरू की थी और एक ही दिन में इतनी ऊँचाई तय करने जा रहा हूँ। मेरा शरीर एक्लाइमेटाइज हो पायेगा या नहीं– मन में शंका है। लेकिन जुनून अपने चरम पर है।

Friday, August 9, 2019

सगर से पनार बुग्याल

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तारीख 25 मई। सुबह के लगभग 5.30 बजे मैं रूद्रनाथ के ट्रेक पर चल पड़ता हूँ। ट्रेक की ऊँचाई धीरे–धीरे बढ़ रही है। बहुत तेज गति से चलकर एकाएक शरीर को थका डालने में बुद्धिमानी नहीं है। मैदानी इलाके तो सूरज की तपन से जल रहे हैं। लेकिन यहाँ का मौसम खुशगवार है। नीचे की घाटियों में बसे गाँव के छ्तिराये हुए घर बहुत ही सुंदर लग रहे हैं। सूरज अभी पहाड़ों की ओट में है। चोटियों के ऊपरी कोने पर थोड़ी–थोड़ी धूप अभी फैल रही है। कुछ ही ऊँचाई पर घने जंगल दिखायी पड़ रहे हैं। लगभग दो किलोमीटर की दूरी चलने के बाद जंगल का कोना शुरू हो गया है। मैं अपने झबरीले गाइड के साथ जंगल में प्रवेश कर रहा हूँ।

Friday, August 2, 2019

रूद्रनाथ के द्वार पर

जय रूद्रनाथǃ
यह ऐसा नाम है जिससे थोड़ा सा डर तो लगता ही है। रूद्र से भला कौन न डरे। और शायद इसी बात को समझते हुए बाबा रूद्रनाथ ऐसी जगह बसे हैं जहाँ हर कोई न पहुँच सके। मेरे मन में भी इच्छा थी बाबा रूद्रनाथ के दर पर जाने की लेकिन मन में संशय भी था कि पहुँच पाऊँगा कि नहीं। ऐसे में संस्कृत की एक उक्ति याद आई– "संशयात्मा विनश्यति।" तो मन से सारे संशय त्यागकर व दृढ़ निश्चय कर 23 मई को हरिद्वार के लिए ट्रेन पकड़ ली– "हरिहर एक्सप्रेस।" मेरे दृढ़ निश्चय को देखते हुए ट्रेन की टिकट भी,जो आर.ए.सी मिली थी,कन्फर्म हो चुकी थी।

Friday, July 26, 2019

बोधगया से सासाराम


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बराबर से गया की ओर जाने के लिए मुझे हाइवे पकड़ना था। पतली सड़कों से रास्ता पूछते हुए चलने में कोई बुद्धिमानी नहीं है। तो फिर से फल्गू नदी में उड़ती धूल को पार कर खिज्रसराय पहुँचा और वहाँ से फल्गू नदी के किनारे–किनारे गया की ओर। जेब के पैसे खत्म हो चुके थे तो मैंने खिज्रसराय में ही ए.टी.एम. की मदद ली। धूप ने पेट की भूख को भी समाप्त कर दिया था। तो खाने की कोई जरूरत नहीं थी। केवल पीते हुए ही चलना था। शाम के 4 बजे मैं गया रेलवे स्टेशन के पास पहुॅंच गया।

Friday, July 19, 2019

बराबर की गुफाएँ

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बिहार का जहानाबाद जिला। दिन के 10 बजे जब मैं बराबर पहुँचा तो धूप मेरे बराबर हो गयी थी। और अब मुझसे आगे निकलने की होड़ में थी। मुझे बराबर की पहाड़ियों पर इसी तपती धूप में ऊपर चढ़ना था तो मैं सामने आने वाली परिस्थिति का अनुमान भी लगा रहा था। सुबह का समय इन पहाड़ियों पर घूमने के लिए बहुत मुफीद रहा होता लेकिन मेरे लिए वह समय निकल चुका था। मैंने बराबर के चौराहे पर एक कोने में थोड़ी छाया देखकर बाइक खड़ी की और सामने वाले दुकानदार से उसकी निगरानी करने के लिए निवेदन किया।

Friday, July 12, 2019

पावापुरी से गहलौर

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नालंदा से 3 बजे पावापुरी के लिए चला तो आधे घण्टे में पावापुरी के जलमंदिर पहुँच गया। नालंदा के खण्डहरों से इसकी दूरी 15 किमी है। दोनों स्थानों के बीच सीधा रास्ता नहीं है। कई सम्पर्क मार्गाें से होते हुए जाना है। काफी पूछताछ करनी पड़ी। पावापुरी कस्बा पार करने के बाद दूर से ही पावापुरी का जलमंदिर दिखायी पड़ने लगता है। कमल के पत्तों से भरे एक बड़े तालाब में सफेद रंग में चमकता जलमंदिर दूर से ही अपनी भव्यता की कहानी कह रहा था। पावापुरी कस्बा जलमंदिर के पश्चिम की तरफ है जबकि जलमंदिर के उत्तर तरफ पावापुरी गाँव बसा हुआ है।

Friday, July 5, 2019

नालंदा–इतिहास का प्रज्ञा केन्द्र

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दिन के 11 बज चुके थे। राजगीर के बस स्टैण्ड चौराहे पर 30 रूपये वाला ʺमेवाड़ प्रेम मिल्क शेकʺ पीकर मैं नालन्दा की ओर चल पड़ा। लगभग 12 किमी की दूरी है। लेकिन नालन्दा पहुँचने से पहले राजगीर से लगभग 7 किमी की दूरी पर एक कस्बा पड़ता है– सिलाव। और अगर आप राजगीर से नालन्दा जा रहे हों तो सिलाव में 5 मिनट देना आवश्यक है। वो इसलिए नहीं कि सिलाव कोई ऐतिहासिक स्थल है वरन इसलिए कि सिलाव में ʺखाजाʺ (एक प्रकार की मिठाई) मिलता है। बिना इसे खाये सिलाव से आगे बढ़ना ठीक नहीं।

Friday, June 28, 2019

राजगीर–इतिहास जहाँ ज़िंदा हैǃ (तीसरा भाग)

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अब मेरी अगली मंजिल थी– विश्व शांति स्तूप। ब्रह्म कुण्ड से लगभग 2-2.5 किमी आगे चलने पर मुख्य सड़क छोड़कर बायें हाथ एक सड़क निकलती है जहाँ विश्व शांति स्तूप के बारे सूचना दी गयी है। मैं इसी सड़क पर मुड़ गया। लगभग 200 मीटर की दूरी पर सड़क के बायें किनारे जीवक आम्रवन के अवशेष हैं। यह वह स्थान है जहाँ राजवैद्य जीवक ने,चचेरे भाई देवदत्त द्वारा भगवान बुद्ध को आहत किये जाने पर उनके घावों पर पटि्टयां बाँध कर उनका इलाज किया था। जीवक ने यहाँ पर बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए एक विहार का निर्माण भी करवाया था।

Friday, June 21, 2019

राजगीर–इतिहास जहाँ ज़िंदा हैǃ (दूसरा भाग)

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मेरा अगला पड़ाव था– मनियार मठ। इसके लिए मुझे ब्रह्मकुण्ड से लगभग 1 किमी की दूरी तय करनी थी। ब्रह्मकुण्ड के पास की बस्ती के बाद मानव आवास लगभग समाप्त हो जाते हैं और राजगीर पीछे छूटने लगता है। मुख्य मार्ग पर लगभग 1 किमी चलने के बाद दाहिनी तरफ एक पतली सड़क निकलती है। दायें मुड़ते ही बायीं तरफ एक स्मारक परिसर दिखायी पड़ता है। परिसर की चारदीवारी से सटकर बाइक खड़ी करते ही एक चारपहिया गाड़ी से कुछ लोग उतरे और मुझसे पहले ही अन्दर पहुँच गये। अन्दर बैठे एक दुबले पतले शख्स ने उन्हें लपक लिया। मैं समझा कोई कर्मचारी होगा।

Friday, June 14, 2019

राजगीर–इतिहास जहाँ ज़िंदा हैǃ (पहला भाग)

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दिन के 2 बजे जब राजगीर पहुँचा तो सुबह के 7 बजे देवघर से निकलने के बाद 290 किमी बाइक चला चुका था। यह दूरी बहुत अधिक नहीं थी लेकिन तेज धूप में यह दूरी दुगुनी महसूस हो रही थी। शरीर की सारी ताकत को धूप ने सोख लिया था। पानी का बोझ सँभालते–सँभालते पेट थक गया था। फिर भी पहले राजगीर में रहने का ठिकाना ढूँढ़ना था। क्योंकि दिन भर की यात्रा के बाद आराम की जरूरत महसूस हो रही थी। मेरी समझ से यह ऑफ सीजन था फिर भी एक सस्ता कमरा ढूँढ़ने में पसीने छूट गये। पर्यटकों के लिए यह भले ही ऑफ सीजन था लेकिन शादी–विवाह के लिए यह पीक सीजन था।

Friday, June 7, 2019

देवघर

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15 अप्रैल
सुबह के 5.15 बजे मैं लालगंज से अपने मित्र के घर से रवाना हो गया। मेरी अगली मंजिल थी–बाबा वैद्यनाथ का घर यानी देवघर। लेकिन मंजिल तक पहुँचने से पहले लम्बी यात्रा करनी थी। प्राथमिकता थी कि सुबह के ठण्डे मौसम में जितनी भी अधिक दूरी तय करनी संभव हो,तय हो जाय। उसके बाद तो धूप में जलना ही था। मुझे हाजीपुर व पटना के अलावा दोनों शहरों के बीच गंगा नदी पर बने गाँधी सेतु को भी पार करना था। सुबह के समय भी सड़कों पर काफी ट्रैफिक था जिस कारण स्पीड नहीं बन पा रही थी। गाँधी सेतु पर तो जाम ही लगा था क्योंकि एक तरफ की लेन की मरम्मत चल रही थी।

Friday, May 31, 2019

वैशाली–इतिहास का गौरव (दूसरा भाग)

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धूप में यहाँ काफी देर तक चक्कर लगाने के बाद मैं कोल्हुआ के स्तूप परिसर से बाहर निकला– वैशाली के दूसरे स्मारकों की ओर। गूगल मैप तो मदद कर ही रहा था फिर भी मैं स्थानीय लोगों से रास्ता पूछ ले रहा था। इसके अलावा यहाँं रास्ते की खोज में एक और बात मदद करती है। और वो है पतली सी सड़क के दोनों ओर बनी सफेद पट्टी। सीधी सी बात है कि इस पट्टी का अनुसरण करते चले जाइये,किसी न किसी स्मारक तक पहुँच जायेंगे। तो 3-4 किमी चलने के बाद अब मैं एक पुराने स्तूप परिसर में था।

Friday, May 24, 2019

वैशाली–इतिहास का गौरव (पहला भाग)

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वैशालीǃ
वैशाली भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित कई घटनाओं का साक्षी रहा है। सर्वप्रमुख रूप से माना जाता है कि एक स्थानीय ʺवानर–प्रमुखʺ ने कोल्हुआ में बुद्ध को मधु अर्पण किया था। कोल्हुआ वैशाली का अभिन्न अंग रहा है। मधु अर्पण की यह घटना भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित आठ प्रमुख घटनाओं में से एक मानी जाती है। बुद्ध ने अपने जीवन के कई वर्षावास यहाँ व्यतीत किये। यहीं पर पहली बार संघ में भिक्षुणियों को प्रवेश करने की अनुमति प्रदान की गयी और साथ ही बुद्ध ने अपने शीघ्र संभावित परिनिर्वाण की घोषणा भी की।

Friday, May 17, 2019

बिहार की धरती पर

14 अप्रैल 2019
गर्मी की शुरूआत हो चुकी है। सूखे मौसम में सूरज तपन फैला रहा है। इधर मन में मरोड़ उठी है और घोड़ा तैयार होने लगा है– पूरब की यात्रा के लिए। मेरे लिए पूरब अर्थात बिहार। बिहार– जहाँ के लोग कभी पूरब की ओर जाते थे– ʺरोजी–रोटी की तलाश में।ʺ उनके लिए पूरब अर्थात् बंगाल। वो पूरब बड़ा ही भयावना था। वहाँ की औरतें पश्चिम वालों को ʺतोताʺ बना कर पिंजरे में कैद कर लेती थीं। उस अनजाने पूरब की कहानियों ने ʺविदेशियाʺ को जन्म दिया–
ʺपिया मोरे मति जा,हो पूरुबवा।ʺ

Friday, May 10, 2019

महाबलिपुरम

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दोपहर के 12 बजे हम कन्याकुमारी के लिए रवाना हो गये। कन्याकुमारी से महाबलिपुरम की दूरी 663 किमी है। गूगल मैप पर जब दूरी चेक की गयी तो इतना तो समझ में आ ही गया कि आज भी रात भर बस में यात्रा ही करनी पड़ेगी। आराम करने का मौका तो बस चाय पीने के दौरान ही आएगा। अन्यथा बस में पैर लटकाए–लटकाए सूजन तो होनी ही है। तो हम रास्ते भर,हर ढाई–तीन घण्टे पर चाय या काॅफी पीते रहे। शाम तक ड्राइवर ने जब हमारा यह रवैया देखा तो एक ढाबे पर गाड़ी रोककर खाना खा लिया। और उसके बाद गाड़ी चलती रही।

Friday, May 3, 2019

कन्याकुमारी

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रामेश्वरम से कन्याकुमारी के लिए दिन के 11.30 बजे रवाना हुए तो भरपेट खाना खाकर। लगभग 310 किलोमीटर की दूरी तय करनी थी। तो अब अगला भोजन रात में कन्याकुमारी में नियत था। सारी चिन्ताएं कपूर के धुएं की माफिक उड़ गयी थीं। चाय–काफी तो बिन माँगे मिलते रहेंगे। अधिकांश दूरी समंदर के किनारे–किनारे ही तय करनी थी। हम नारियल के देश में थे। नारियल के झुण्ड के झुण्ड पेड़ों को देखकर मन गदगद हुआ जा रहा था। शाम के 5.30 बजे कन्याकुमारी पहुँच गये। तमिलनाडु का जिला कन्याकुमारी। शहर कन्याकुमारी। सागरों के संगम वाला शहर कन्याकुमारी।

Friday, April 26, 2019

रामेश्वरम

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सुबह के 10 बजे मदुरई से चलने के बाद हम चलते ही रहे। 2 बजे तक हम 165 किमी की दूरी तय कर भारत की मुख्य भूमि को छोड़कर,पंबन ब्रिज पर पहुँच चुके थे। चारों तरफ पानी ही पानी देखकर गाड़ी रोकी गयी। समु्द्र को हनुमान की तरह लांघता पुल रोमांच पैदा कर रहा था। वैसे पुल से गुजरते हुए यह कतई महसूस नहीं हो रहा था कि हम समुद्र के ऊपर से गुजर रहे हैं। खट्टे–मीठे अनन्नास की फांके खाते हुए इस पुल पर टहलना और फोटो खींचना कितना आनन्ददायक है,यह यहाँ पहुॅंच कर ही जाना जा सकता है। गाड़ी का ड्राइवर लाख शोर मचाये,हम तो अपनी वाली ही करेंगे।

Friday, April 19, 2019

मदुरई

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वेल्लोर से शाम के 7.30 बजे हम मदुरई के लिए रवाना हो गये। अब रात भर चलना था। सोच कर ही चक्कर आ रहे थे। ड्राइवर भी जुनूनी था। चल पड़े तो चल पड़े। सुबह के समय ही तिरूमला से सीधे मदुरई के लिए निकल लिए होते तो शाम तक या 8-9 बजे तक मदुरई में होते। दिनभर बस की खिड़की से तमिलनाडु का जनजीवन देखने को मिला होता और रात मदुरई के किसी होटल में बीतती। लेकिन ऐसा होना किस्मत में नहीं था। प्लान ड्राइवर का था। छोटी सी ट्रैवलर गाड़ी। पैर फैलाने की भी जगह नहीं थी तो पैरों को सूजन झेलनी ही थी।

Friday, April 12, 2019

तिरूमला टु मदुरई

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आज यात्रा का तीसरा दिन था। कल शाम के समय जब हम भगवान वेंकटेश के दर्शन कर कमरे लौटे तो एक और घटना हुई। और वो ये कि आगे की ʺयात्राʺ करने वाले ʺयात्रियोंʺ के लिए "ट्रैवलर" गाड़ी की बुकिंग की गयी। तिरूमला के सीमित दायरे में ट्रैवेल एजेंट भी संभवतः सीमित ही हैं। हमारे सामने तिरूपति पहुँचकर भी गाड़ी बुक करने का विकल्प था लेकिन हमें यहीं से बेहतर लगा सो कर लिया।

Friday, April 5, 2019

जय वेंकटेश्वर

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बालाजी या तिरूपति श्री वेंकटेश्वर भगवान का मन्दिर आन्ध्र प्रदेश के सुदूर दक्षिणी छोर पर बसे चित्तूर जिले के उत्तरी छोर पर अवस्थित है। तिरूपति कस्बे से सटे हुए,इसके ठीक उत्तर में पूरब से पश्चिम को फैली हुई पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ नजर आती हैं। ये श्रृंखलाएं यहाँ से उत्तर की ओर बढ़ती जाती हैं। तिरूपति के उत्तर में सर्पाकार रूप में फैली इन पहाड़ियों के भाग को शेषाचल कहा जाता है जो आदिशेष या शेषनाग को प्रदर्शित करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार आदिशेष ने संसार को अपने हजारों फनों वाले शीर्ष पर धारण कर रखा है।

Friday, March 29, 2019

बालाजी दर्शन

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हमारी यात्रा का अगला चरण था रात के 11.55 बजे चेन्नई सेंट्रल से मुम्बई मेल द्वारा तिरूपति के पास रेनीगुंटा पहुँचना। लेकिन उसके पहले एयरपोर्ट से चेन्नई सेंट्रल स्टेशन पहुँचकर पेट–पूजा करनी थी। क्योंकि जितनी देर प्लेन चलता रहा,हर समय मुँह चलाने वाली भेड़–बकरियों का मुँह बन्द ही रहा। तो अब हमने मेट्रो की सहायता ली और 70 रूपये का किराया चुकाकर चेन्नई एयरपोर्ट से चेन्नई सेंट्रल पहुँच गये। मेट्रो 7.50 पर हवाई अड्डे से चलकर 8.30 पर चेन्नई सेन्ट्रल पहुँची। मेट्रो ट्रेन भी हमारे स्वागत के लिए खुले दिल से तैयार बैठी थी क्योंकि इसकी दो तिहाई से भी अधिक सीटें खाली थीं।

Friday, March 22, 2019

जब मैं उड़ चला

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घूमने की चाहत तो बचपन से ही खून में समायी हुई है लेकिन हवा में परवाज़ की ख़्वाहिश भी मन में कहीं न कहीं जरूर दबी हुई थी। सो मौका पाते ही किसी आज़ाद परिंदे की भाँति,एक दिन पंख फड़फड़ाते हुए खुले आसमान में निकल पड़ा। मौका था फरवरी के महीने में दक्षिण भारत के कुछ प्रसिद्ध स्थानों की यात्रा का। प्लानिंग तो बहुत पहले ही हो चुकी थी क्योंकि कुछ मित्रों ने काफी दबाव बना रखा था। तय हुआ था कि तिरूमला के बालाजी के दर्शन किये जाएंगे। दूरी काफी बैठ रही थी। जाँच पड़ताल की गयी तो पता चला कि कम से कम चार दिन तो केवल ट्रेन को ही समर्पित करने पड़ेंगे।

Friday, March 15, 2019

विश्व विरासत शहर–अहमदाबाद (दूसरा भाग)

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भद्र किले से 10 मिनट से कुछ कम की ही पैदल दूरी पर सीदी सैयद मस्जिद बनी हुई है। मैं रास्ता पूछता हुआ वहाँ पहुँच गया। सीदी सैयद की मस्जिद में बनी जालियां काफी प्रसिद्ध हैं। सीदी सैयद की मस्जिद एक छोटी सी इमारत है। लेकिन इसके खम्भे और इसकी दीवारों में बनी जालियाँ सर्वाधिक दर्शनीय हैं। मैं जब यहाँ पहुँचा तो इन जालियों का कद्रदान कोई नहीं था। एक मौलवी साहब मस्जिद में सफाई कर रहे थे।
सीदी सैयद की मस्जिद का निर्माण 1572 में सीदी सैयद नामक एक अबीसिनियन (वर्तमान इथियोपिया) मूल के एक व्यक्ति द्वारा कराया गया था।

Friday, March 8, 2019

विश्व विरासत शहर–अहमदाबाद (पहला भाग)

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अहमदाबाद या फिर पूरे गुजरात का इतिहास सामान्यतः 10वीं सदी के पूर्वार्द्ध तक कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार शासकों से जुड़ा हुआ रहा है। 10वीं सदी में राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय ने गुर्जर प्रतिहार शासक महिपाल को पराजित कर दिया। केन्द्रीय शासन कमजोर पड़ गया और इस समय गुजरात क्षेत्र अराजकता का शिकार हो गया। ऐसी परिस्थितियों में गुजरात में मूलराज प्रथम (941-995 ई.) ने चालुक्य वंश की गुजरात शाखा की स्थापना की। उसने तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए सरस्वती घाटी में एक राज्य की स्थापना की।

Friday, March 1, 2019

लोथल–खण्डहर गवाह हैंǃ

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नलसरोवर के चौराहे पर भटकते हुए पता चला कि लोथल जाने के लिए मुझे सबसे पहले बगोदरा जाना पड़ेगा और बगोदरा जाने के लिए कोई गाड़ी नहीं थी। किसी ने कहा कि छकड़े जाते हैं। नलसरोवर आने के बाद मैं सुबह से ही छकड़ों को देख रहा था लेकिन अब समय था तो एक छकड़े के पास जाकर खड़ा हो गया। ऐसी जुगाड़ वाली गाड़ियों को देखा तो बहुत है लेकिन "छकड़ा" नाम पहली बार सुन रहा था। बुलेट या फिर राजदूत बाइक के इंजन को रूपान्तरित कर,भारत में बहुतायत से उपयोग में लायी जाने वाली "जुगाड़ तकनीक" के प्रयाेग से,सामान ढोने की गाड़ी के रूप में बदल दिया गया था। अब इस गाड़ी पर सामान ढोइये या आदमी– क्या फर्क पड़ता है।

Friday, February 22, 2019

नलसरोवर–परदेशियों का ठिकाना

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कल नलसरोवर की बस खोजते–खोजते पाटन और मोढेरा जाना पड़ा। तो आज मैं सतर्क था। कल रात वापस आकर खाना खाने और सोने में भले ही बहुत देर हो गयी लेकिन आज मैं सुबह बहुत जल्दी उठ गया। वजह यह थी कि नलसरोवर की पहली बस सुबह 7.15 पर ही थी और गुजरात में दिसम्बर के महीने में सुबह के साढ़े छः बजे के बाद ही अँधेरा छँट रहा था। तो पौने सात बजे मैं होटल से निकल कर गीता मंदिर बस स्टेशन की ओर चल पड़ा।

Friday, February 15, 2019

मोढेरा का सूर्य मंदिर–समृद्ध अतीत की निशानी

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जैन मंदिर के पास से मुझे पता लगा कि बस स्टैण्ड पास में ही या लगभग एक किमी की दूरी पर है। लेकिन यह जूना बस स्टैण्ड है। नये बस स्टैण्ड जाने के लिए मुझे 50 का पहाड़ा पढ़ने वाले ऑटो वालों की ही सुनना था। 2.30 बजे तक मैं पाटन के नये बस स्टैण्ड में था। ऑटो वाले ने बताया कि बेचराजी रूट की कोई बस पकड़ लेंगे तो वह मोढेरा होकर ही जायेगी। मैं बस का इंतजार करने लगा। साथ ही दिमाग में यह भी बिठाने की कोशिश करने लगा कि बस के शीशे के पीछे गुजराती लिपि में बेचराजी किस तरह से लिखा होगा। बस सामने खड़ी हो तो इंतजार कुछ आसान लगता है।

Friday, February 8, 2019

रानी की वाव

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अहमदाबाद और इसके आस–पास की यात्रा में मेरे सामने कई लक्ष्‍य थे। सबसे नजदीकी था अहमदाबाद शहर के अन्दर की ऐतिहासिक इमारतों का दर्शन। दूसरा था अहमदाबाद के उत्तर–पूर्व में लगभग 138 किमी की दूरी पर पाटन शहर में स्थित विश्व विरासत स्थल रानी की वाव और इससे कुछ दूरी पर मोढेरा का सूर्य मंदिर। तीसरा लक्ष्‍य था अहमदाबाद के दक्षिण–पश्चिम में नलसरोवर पक्षी अभयारण्य और सिंधु घाटी सभ्यता के बन्दरगाह शहर लोथल का भ्रमण।

Friday, February 1, 2019

एक्सप्रेस ऑफ साबरमती

हिमालय घुमक्कड़ों के लिए स्वर्ग है। लेकिन दिसम्बर के महीने में जमा देने वाली ठण्ड में हिमालय की यात्रा तो अवश्य हो जायेगी पर घुमक्कड़ी का आनन्द तो शायद ही आये। हाँ,समन्दर के किनारे अवश्य ही आनन्ददायक होंगे। तो इस बार भारत के पश्चिमी हिस्से की ओर। घुमक्कड़ के लिए मौसम थोड़ा सा सहायता करता है तो घुमक्कड़ी कुछ आसान हो जाती है। अब दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में उत्तर भारत ठण्ड से सिहर रहा है तो गुजरात में ठण्ड का रंग गुलाबी है। ऐसे ही मौसम में थर्मल इनर,स्वेटर,जैकेट,मफलर और कम्बल से लदे–फदे,भारी–भरकम शरीर को ढोते हुए मैं गुजरात के अहमदाबाद की ओर चल पड़ा।

Friday, January 25, 2019

पिथौरागढ़

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12 नवम्बर
5 बजे ही सोकर उठ गया। आज मुझे पिथौरागढ़ के लिए निकलना था। कल दिन भर की गयी खलिया टॉप और थमरी कुण्ड की ट्रेकिंग जेहन में बिल्कुल ताजा थी। कल रात में ही होटल संचालक से गाड़ियों के बारे में बात की थी। उसने अपने कई परिचितों से बात की तो पता चला कि सारी गाड़ियाँ हल्द्वानी के लिए बुक हैं। एक और विकल्प था। पता चला कि थल से जिस गाड़ी से मैं आया था वह भी सुबह में ही निकलती है। जल्दी–जल्दी नित्यकर्म से निवृत हुआ। नहाने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी।

Friday, January 18, 2019

थमरी कुण्ड

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खलिया टॉप ट्रेक से वापस आकर जब मैं मुख्य सड़क पर पहुँचा तो चाय की तलब लगी थी। पास ही में सड़क किनारे एक छोटा सा रेस्टोरेण्ट है। नाम है–इग्लू। यह बिल्कुल इग्लू के आकार में ही बना है। चाय पीने में 1 बज गया। अब मेरा अगल लक्ष्‍य था थमरी कुण्ड ट्रेक। मैंने ट्रेक के बारे में पूछताछ की। इस ट्रेक की जड़ तक पहुँचने के लिए मुख्य सड़क पर ही 2 किमी चलना था। सो चला। ये सीधी सड़क भी चढ़ती–उतरती हुई चलती है। शरीर की सारी ऊर्जा सोखती हुई। अभीष्ट जगह पर जब पहुँचा तो वहाँ रास्ता बताने के लिए कोई प्राणिमात्र मौजूद नहीं था।