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Friday, December 27, 2019

उत्तरी मैदानी प्रदेश (2)

मैदानी प्रदेश का प्रादेशिक विभाजन–
भारत का मैदानी प्रदेश एक विशाल भूभाग है। इसकी क्षेत्रीय विशेषताओं को ठीक से समझने के लिए इसे छोटे भागों में विभाजित किया जाता है। ये भाग निम्नवत हैं–
1. राजस्थान का मैदान
2. पंजाब–हरियाणा का मैदान
3. गंगा का मैदान
4. ब्रह्मपुत्र का मैदान

राजस्थान का मैदान– इसे भारतीय मरूस्थल के नाम से भी जाना जाता है।
ये मैदान अरावली पहाड़ियों से लेकर पश्चिम में पाकिस्तान सीमा तक फैले हुए हैं। इसके अन्तर्गत राजस्थान के मरूस्थलीय और बांगड़ क्षेत्र सम्मिलित हैं। इनका क्षेत्रफल 2 लाख वर्ग किलोमीटर है। इस मैदानी भाग के उत्तर में पंजाब का मैदान,पश्चिम में पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा,पूर्व में अरावली की पहाड़ियाँ तथा दक्षिण में कच्छ की रण स्थित हैं। इस मैदान के लगभग दो–तिहाई भाग में मरूस्थल पाया जाता है। मरूस्थलीय भाग में बालू की परतें पायी जाती हैं। कहीं–कहीं नंगी चट्टानी सतह भी दिखायी पड़ती है जो इस बात का प्रमाण है कि यह क्षेत्र प्रायद्वीपीय पठार का एक अंग रहा है। सम्पूर्ण क्षेत्र बालुका स्तूपों से भरा दिखायी पड़ता है। इन बालुका स्तूपों की ऊँचाई 25 मीटर तक होती है जबकि इनकी लम्बाई 3 किलोमीटर तक हो सकती है। ये बालुका स्तूप दक्षिण–पश्चिम से उत्तर–पूर्व दिशा की ओर हवाओं के अनुदिश फैले पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में बहुत सारी प्लाया झीलें भी पायी जाती हैं। दक्षिणी–पश्चिमी भाग में जलोढ़ मैदान मिलते हैं जिन्हें "रोही" कहा जाता है। ये रोही उपजाऊ मैदान होते हैं। उत्तरी–पूर्वी भाग में घग्घर नदी का शुष्क मैदान है। सम्पूर्ण मैदान का ढाल उत्तर–पूर्व से दक्षिण–पश्चिम की ओर है। उत्तर–पूर्व में इस मैदान की ऊँचाई 300 मीटर तक है जो दक्षिण की तरफ घटकर 150 मीटर रह जाती है। यहाँ प्रवाहित होने वाली लूनी नदी एकमात्र नदी है जो अजमेर के दक्षिण–पश्चिम में स्थित पहाड़ियों से निकलती है और दक्षिण–पश्चिम में प्रवाहित होती हुई रेत में लुप्त हो जाती है। मानसून के महीनों में यह कच्छ के रण तक पहुँच जाती है। यह एक बरसाती नदी है। इस नदी के ऊपरी भागों का पानी सामान्य होता है लेकिन निचले भागों में यह खारा हो जाता है। लूनी नदी की घाटी समुद्रतल से 150 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। जवाई और सिकरी इसकी दो प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। लूनी नदी के निचले हिस्से अर्थात गुजरात में ये मैदान समुद्रतल से मात्र 20 मीटर की ऊँचाई पर पाए जाते हैं। इस मैदान के एक बड़े भाग की उत्पत्ति समुद्र के पीछे हटने से हुई मानी जाती है। यहाँ पायी जाने वाली खारे पानी की झीलें इस तथ्य की पुष्टि करती हैं। साँभर,लूनकरनसर,डिडवाना,देगाना,कुचामन,पचप्रदा यहाँ की प्रमुख झीलें हैं। साँभर यहाँ की सबसे बड़ी झील है जो जयपुर के 65 किलोमीटर उत्तर–पश्चिम में स्थित है। वर्षाकाल में इसका आकार 300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तक विस्तृत हो जाता है। अरावली पहाड़ियों के पूर्व में,बांगड़ भूमि उत्तर–पूर्व से दक्षिण–पश्चिम दिशा में फैली हुई मिलती है।

पंजाब–हरियाणा का मैदान– यह मैदान पंजाब,हरियाणा और दिल्ली प्रदेशों में विस्तृत है। यह उत्तर से दक्षिण 650 किलाेमीटर तथा पूरब से पश्चिम 300 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस मैदान का कुल क्षेत्रफल 96171 वर्ग किलोमीटर है। इस मैदान का निर्माण सतलुज,व्यास तथा रावी नदियों द्वारा लाए गए निक्षेपों से हुआ है। माना जाता है कि प्राचीन सरस्वती नदी भी इसी मैदानी भाग में प्रवाहित होती थी। इस मैदान को सतलुज–यमुना जल–विभाजक भी कहा जाता है। यमुना नदी इसकी पूर्वी सीमा बनाती है जबकि दक्षिण में राजस्थान राज्य की सीमा तक इसका विस्तार माना जाता है। दक्षिणी–पूर्वी भाग में अरावली पहाड़ियाँ इस मैदान में लुप्त होती हुई मिल जाती हैं। पश्चिमी में यह मैदान पाकिस्तान की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा तक फैला हुआ है। उत्तर में शिवालिक पहाड़ियाँ इसकी सीमा बनाती हैं। भारत के विभाजन से पूर्व पाकिस्तान का पंजाब मैदान तथा भारत का पंजाब मैदान इसी मैदान के अंग थे। सिन्धु घाटी सभ्यता का जन्म इसी मैदान में हुआ। महाभारत का युद्ध इसी मैदान में लड़ा गया। इस मैदान का सामान्य ढाल उत्तर–पूर्व से दक्षिण–पश्चिम की ओर है। इस मैदान की समुद्रतल से औसत ऊँचाई 250 मीटर है। जम्मू और कठुआ के पास इसकी अधिकतम ऊँचाई 300 मीटर है जबकि दक्षिण–पश्चिम में इसकी ऊँचाई 200 मीटर है। यहाँ प्रवाहित होने वाली नदियों के किनारे कगार पाए जाते हैं जिन्हें ढाया कहते हैं। इनकी ऊँचाई 3 मीटर तक पायी जाती है। साथ ही नदियों के किनारे खादर जैसे बाढ़ग्रस्त क्षेत्र भी पाये जाते हैं जिन्हें बेट कहा जाता है। इन बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों की चौड़ाई  10 से 12 किलोमीटर तक पायी जाती है। सतलुज,व्यास और रावी इस मैदान से होकर प्रवाहित होने वाली सदावाहिनी नदियाँ हैं। इस मैदान में बरसाती नदियाँ भी प्रवाहित होती हैं। सतलुज और यमुना नदियों के मध्य घग्घर नदी प्रवाहित होती है जो कि एक मौसमी नदी है जो अंबाला के पास से होकर प्रवाहित होती है। इस नदी का प्रवाह लगभग 10 किलोमीटर लम्बा है जो वर्षाकाल में कई सौ किलोमीटर तक लम्बा हाे जाता है। माना जाता है कि प्राचीन काल में सरस्वती नदी,घग्घर के ही मार्ग पर प्रवाहित होती थी। नदियों ने इस पूरे मैदान को चार छोटे–छोटे भागों में बाँट दिया है जिनके विभिन्न् नाम पड़ गये हैं। रावी और व्यास नदियों के मध्य के क्षेत्र को बारी दाेआब,व्यास और सतलुज नदियों के मध्य के क्षेत्र को बिस्त दोआब तथा सतलुज नदी के दक्षिण के क्षेत्र को घग्घर मैदान के नाम से जाना जाता है।

गंगा का मैदान– यह मैदान पश्चिम में यमुना से लेकर पूरब में बांग्लादेश की सीमा तक,उत्तर प्रदेश,बिहार और बंगाल राज्यों में लगभग 3.75 लाख वर्ग किलोमीटर भू–भाग में फैला हुआ है। इस मैदान की पूर्व–पश्चिम की लम्बाई 1400 किलोमीटर और उत्तर–दक्षिण की चौड़ाई 300 किलोमीटर है। मैदान का सामान्य ढाल उत्तर–पश्चिम से दक्षिण–पूर्व की ओर है। गंगा इस मैदान में प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदी है। मैदान का ढाल 15 सेण्टीमीटर प्रति किलोमीटर पाया जाता है। समुद्रतल से मैदान की सर्वाधिक ऊँचाई सहारनपुर में (276 मीटर) है जो रूड़की (274),आगरा (169),कानपुर (125),इलाहाबाद (98),पटना (53),कोलकाता (6) तक घटती हुई सागर द्वीप में 3 मीटर तक पहुँच जाती है। भाबर,तराई,भांगर,खादर,नदी तटबंध,रेह,भूड़,छाड़न झील,खोल,चार तथा बिल इस मैदानी भाग के प्रमुख स्थलाकृतिक लक्षण हैं।

इस बड़े मैदान को तीन उपविभागों में बाँटा जाता है–
a. ऊपरी गंगा मैदान
b. मध्य गंगा मैदान
c. निचला गंगा मैदान

यद्यपि गंगा के मैदान को अध्ययन की सरलता के लिए इन तीन भागों में विभाजित किया जाता है लेकिन इन तीनों भागों में कोई खास अन्तर नहीं पाया जाता जिसे इस विभाजन का आधार माना जा सके। संभवतः इसकी विशालता ही इसके विभाजन का कारण बनती है। पूरा मैदान बिल्कुल समतल और नीरस एकरूपता लिए हुए है।

a. ऊपरी गंगा मैदान– इस मैदान की उत्तरी सीमा शिवालिक पहाड़ियाँ बनाती हैं जबकि दक्षिण सीमा विंध्याचल का पठार बनाता है। यमुना नदी इसकी पश्चिमी सीमा बनाती है। पूर्व में समुद्रतल से 100 मीटर ऊँचाई वाली समोच्च रेखा इसकी सीमा बनाती है। इसके अन्तर्गत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गंगा–यमुना दोआब,रोहिलखण्ड मण्डल तथा आगरा मण्डल के कुछ हिस्से आते हैं। यह मैदान समुद्रतल से 100 से 300 मीटर तक ऊँचा है। गंगा के मैदान का यह हिस्सा उत्तर–दक्षिण में 380 किलोमीटर की चौड़ाई और पूर्व–पश्चिम में 550 किेलोमीटर की लम्बाई में फैला हुआ है। यह मैदान भाबर और तराई को छोड़कर प्रायः समतल है। इस मैदान के ऊपरी भाग में दक्षिणी और पूर्वी भाग की अपेक्षा तीव्र ढाल पाया जाता है। गंगा,यमुना,काली,शारदा,रामगंगा,घाघरा,राप्ती इस मैदान की प्रमुख नदियाँ हैं। इस मैदान में रेत के टीले पाये जाते हैं जिन्हें भूड़ कहते हैं। कृषि की दृष्टि से यह मैदान भारत का उपजाऊ प्रदेश है।

b. मध्य गंगा मैदान– इसके अन्तर्गत पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मैदान सम्मिलित किये जाते हैं। इस भाग की पूर्व–पश्चिम लम्बाई 600 किलोमीटर और उत्तर–दक्षिण की चौड़ाई 320 किलोमीटर है। इस मैदान में जलोढ़ का मोटा निक्षेप पाया जाता है जिसमें कंकड़ की मात्रा कम पायी जाती है। इस मैदान में खादर भूमि की प्रमुखता है। इस मैदान का ढाल काफी कम है इस कारण यह नदियों में आने वाली बाढ़ों और उनके मार्ग परिवर्तन के लिए प्रसिद्ध रहा है। गण्डक और कोसी,गंगा की बायीं तरफ से आकर मिलती हैं जबकि सोन दायीं तरफ से गंगा में मिलती है। बाढ़ों के कारण यह मैदान अत्यधिक उपजाऊ  है। नदियों के लहरदार प्रवाह के कारण यत्र–तत्र छाड़न झीलें पायी जाती हैं। अन्यथा यह पूरी तरह से एकरसता वाला मैदान है। 

c. निचला गंगा मैदान– इस मैदान के अन्तर्गत उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों और पुरूलिया जिले को छोड़कर सम्पूर्ण पश्चिमी बंगाल को सम्मिलित किया जाता है। बिहार का किशनगंज जिला भी इसके अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। इस तरह यह हिमालय की तलहटी से लेकर गंगा के डेल्टा तक फैला हआ है। वस्तुतः यह पूरा मैदान एक डेल्टाई मैदान के रूप में है क्योंकि इसका दो–तिहाई भाग राजमहल पहाड़ियों और मेघालय की गारो पहाड़ियों के मिलन स्थल के दक्षिण में अवस्थित है। इस तरह से यह विश्व का सबसे बड़ा डेल्टाई मैदान माना जा सकता है। यह मैदान 80970 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह मैदान समुद्रतल से केवल 50 मीटर ऊँचा है। इस मैदान के पूर्वी भाग में तिस्ता,जलढाका और सनकोशी नदियाँ ब्रह्मपुत्र से मिलती हैं तथा पश्चिम में महानंदा,अजय और दामोदर नदियाँ प्रवाहित होती हैं। दक्षिणी–पश्चिमी भाग में कसाई और सुवर्णरेखा नदिया प्रवाहित होती हैं। ये नदियाँ अपने मार्ग परिवर्तन के लिए जानी जाती रही हैं। जिसकी वजह से यहाँ अत्यधिक बाढ़ें आती हैं। इस मैदान का सामान्य ढाल दक्षिण और दक्षिण–पूर्व दिशा की ओर है। मैदान की सबसे दक्षिण की ओर गंगा नदी डेल्टा बनाती है जो अधिकांश समय जल से ढके रहने के कारण दलदल बन जाता है। इस डेल्टाई भाग में कुछ ऊँची भूमि भी पायी जाती है जाे मानव बसाव के लिए उपयोग की जाती है। ऐसे ऊँचे भागोें को चर  कहा जाता है। नीची भूमि को बिल  कहा जाता है।
इस मैदान के छोटा नागपुर पठार के पूर्व में स्थित भाग को राढ़ मैदान  के नाम से भी जाना जाता है। इस भाग में जलोढ़ और लैटराइट मिट्टियाँ पायी जाती हैं। डेल्टाई भाग में सुंदरी  या गरान  नामक वृक्षों के वनों के कारण इसे सुंदरवन भी कहा जाता है। यह विश्व का सबसे बड़ा दलदली गरान वन क्षेत्र है। रॉयल बंगाल टाइगर और मगरमच्छ यहाँ के प्रमुख जीव हैं।









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