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Friday, January 6, 2023

हिक्किम और कोमिक

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शहर के बाशिंदे गाँव देखने के लिए गाँवों की ओर जायें तो स्वाभाविक सा लगता है। लेकिन मेरे जैसा आदमी,जिसका जन्म ही गाँव में हुआ है और जो गाँव का निवासी है,वह भी लाहौल और स्पीति के गाँवों की खाक छान रहा था। कारण साफ है। हिमालय के गाँवों और शेष भारत के गाँवों में जमीन–आसमान का फर्क है। मैदानी भागों के गाँव जहाँ भोजन और पानी के मामले में काफी कुछ समृद्ध हैं,हिमालयी गाँव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते दिखायी पड़ते हैं। और लाहौल–स्पीति के गाँव तो दुर्धर्ष परिस्थितियों में भी अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं। यह मनुष्य की अपराजेय जिजीविषा का शानदार उदाहरण है। जहाँ वनस्पतियाँ भी परिस्थितियों से हार मान लेती हैं,मनुष्य अपनी विजय का उद्घोष करता है। वास्तव में यह मनुष्य प्रकृति का सहचर है,उसका प्रतिद्वंद्वी नहीं। प्रकृति से उसका मेल ही ऐसी दुर्गम भूमि पर उसके जीवन को संभव बनाता है। प्रकृति उसके सम्मुख चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है तो अपने असीम सौन्दर्य के रूप में अपना प्रेम भी बरसाती है। भूरे शरीर वाले पहाड़,हिम से ढकी उजली चोटियों पर जब आकाश की नीली चादर को चारों ओर से तान लेते हैं,भगवान भास्कर इस चादर के एक कोने में अपनी तीव्रतम किरणों के साथ विराजमान हो जाते हैं और क्षितिज का दूर–दूर तक कहीं अता–पता नहीं चलता तो एक अलौकिक दृश्य का सृजन होता है। इस दृश्य का साक्षी स्पीति का मनुष्य होता है। और कभी–कभी अव्यक्त के दर्शन का प्यासा,मेरे जैसा प्राणी भी इस अमृतवर्षा की कुछ बूँदें हासिल कर लेता है।

लांग्जा की ʺट्रैवेल हास्पिटैलिटीʺ वाली मैगी को निपटाने में 1.30 बज चुके थे। अब मुझे हिक्किम जाना था। काजा की कुछ मिनटों की मुलाकात में दोस्त बने तीनों लड़के भी साथ थे। काजा से लांग्जा होते हुए कोमिक जाने के लिए शानदार सिंगल सड़क बनी हुई है। लांग्जा और कोमिक के बीच बसे हिक्किम को यह सड़क बायीं तरफ से बाई–पास कर जाती है। हिक्किम जाने के लिए लांग्जा से कुछ किलोमीटर आगे इस मुख्य सड़क से दाहिनी तरफ एक और पतली सड़क निकलती है जो हिक्किम होते हुए फिर से इसी पक्की सड़क में आकर मिल जाती है। हिक्किम वाली यह सड़क पूरी तरह से ऑफरोड है। हिक्किम गाँव की दूरी लांग्जा से लगभग 7 किलोमीटर है। गाँव सड़क से हटकर थोड़ा सा नीचे बसा हुआ है जबकि इस गाँव का सबसे बड़ा आकर्षण विश्व का सर्वाधिक ऊँचाई पर बना पोस्ट ऑफिस बिल्कुल सड़क किनारे ही बना हुआ है।
यह पोस्ट ऑफिस समुद्र तल से 4440 मीटर की ऊँचाई पर बना है। अर्थात मैं एक के बाद एक ऊँचाइयाँ चढ़ता जा रहा था। पोस्ट ऑफिस के आस–पास सेल्फी लेने के लिए भीड़ लगी थी। पास ही सड़क किनारे एक व्यक्ति ने छोटी–छोटी चीजों मसलन की–रिंग,पोस्ट–कार्ड वगैरह की दुकान लगा रखी थी। यह स्थानीय व्यक्ति था। उसके बगल में एक लड़का चाय बेच रहा था। उसकी शक्ल–ओ–सूरत देखकर मैं उसकी तरफ बढ़ा। यह अवश्य गया का रहने वाला ही होगा। मेरा अनुमान सही था। मैंने उससे बातचीत की और चाय भी पी। उसने बताया कि वह पत्नी के साथ यहीं रहता है। शायद पर्यटकों को गर्मागर्म चाय पिलाने वाला भी यहाँ कोई नहीं है। ये जिम्मेदारी भी बिहार ने सम्भाल रखी है। पोस्ट–ऑफिस की फोटो खींचने के लिए प्रतियोगिता चल रही थी– कौन उसके आगे कब्जा जमाता हैǃ जो पोस्ट–ऑफिस के सामने खड़ा हो जा रहा था,हटने का नाम ही नहीं ले रहा था। खैर,मेरा भी नंबर आया और मैं भी फोटो खींचने में सफल हुआ। पास की दुकान से स्पीति के नाम की एक की–रिंग खरीदने के बाद अब मेरा अगला लक्ष्‍य विश्व का सर्वाधिक ऊँचाई पर बसा गाँव कोमिक था। जिस कच्ची सड़क के किनारे हिक्किम बसा हुआ है वह सड़क भी आगे बढ़कर कोमिक चली जाती है लेकिन सही जानकारी न मिलने की वजह से मैं और वे तीनों लड़के पुनः लांग्जा वाली पक्की सड़क की ओर चल पड़े। गया का चायवाला लड़का भी मुझसे रिक्वेस्ट करके मेरी बाइक पर पीछे बैठ गया। उसे भी कोमिक जाना था।

हिक्किम से कोमिक तक कच्ची सड़क की दूरी लगभग 3 किलोमीटर है लेकिन मैं घूमकर पक्की सड़क से होकर गया जिससे यह दूरी 8 किलोमीटर हो गयी। यह सड़क कोमिक से आगे लगभग 26-27 किलोमीटर दूर देमुल गाँव तक चली जाती है और फिर देमुल से लगभग 18 किलोमीटर नीचे उतर कर नाको–ताबो–काजा मुख्य सड़क से,काजा से 12-13 किलोमीटर पहले या पूरब की ओर मिल जाती है।
शाम के 3 बजे के आस–पास मैं कोमिक पहुँचा तो वहाँ बड़ी चहल–पहल थी। पता चला कि कोमिक के ʺलामा जीʺ का जन्म दिन है। इस अवसर पर वहाँ नाच–गाने का जबरदस्त आयोजन था। यह कार्यक्रम कोमिक मोनेस्ट्री के प्रांगण में हो रहा था। मैं भी गले में कैमरा टाँग इस उत्सव में शामिल हो गया। कोमिक की इस मोनेस्ट्री की इमारत दो मंजिली थी। इमारत के बीच के खाली प्रांगण में हो रहे आयोजन को देखने के लिए अधिकांश लोग ऊपरवाली मंजिल के बरामदे में जम गये थे। ऊपरवाली मंजिल की छत पर भी ढेर सारे लोग बैठे हुए थे। मिट्टी की बनी इमारत के ऊपर इतनी भीड़ देखकर मुझे डर लग रहा था। फिर भी काफी देर तक मैं भी मोबाइल से वीडियाे बनाता रहा। वास्तव में यह किस्मत की बात थी कि मैं ऐसे अवसर पर यहाँ पहुँचा था। ऐसा ही अवसर एक बार कोणार्क की यात्रा में मिला था जब कोणार्क के पास चन्द्रभागा बीच पर साल में एक बार,माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन आयोजित होने वाले खूबसूरत वार्षिक मेले के दिन मैं सपत्नीक पहुँच गया था।

यात्रा के दौरान मिले तीन लड़कों का ग्रुप कोमिक से देमुल जाने की योजना बना रहा था। देमुल में सर्वाधिक ऊँचाई पर बनी एक हस्तशिल्प की दुकान है जहाँ वे जाना चाहते थे। अब गाँव सर्वाधिक ऊँचाई पर बसा है तो वहाँ की हर चीज सर्वाधिक ऊँचाई पर ही होगी। कोमिक में भी विश्व का सर्वाधिक ऊँचाई पर बना रेस्टोरेण्ट है। मेरी देमुल जाने की कोई योजना नहीं थी। मुझे कोमिक से काजा वापस लौटना था। इस समय शाम के लगभग 4 बज रहे थे और कोमिक से देमुल जाकर पुनः काजा लौटने में कम से कम 55-60 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती। 
कोमिक की समुद्रतल से ऊँचाई 4587 मीटर और आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार केवल 127 है। हिक्किम की आबादी 195 और लांग्जा की 158। मैं लौटते समय सोच रहा था कि काजा से ऊपर वीराने में बसे इन गाँवों की जिन्दगी कैसी होगीǃ जाड़े में जब रास्ते बर्फ की वजह से बन्द हो जाते होंगे,उस समय ये लोग कैसे रहते होंगेǃ सोच कर शरीर में सिहरन पैदा हो जाती है। मेरी इस यात्रा में यह पहला दिन था जब पूरी तरह से धूप मिली थी। धूप काफी तेज थी और अच्छी लग रही थी लेकिन छाये में ठिठुरन होने लग जा रही थी। प्रकृति का यह स्वरूप कठाेरतम पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है।

शाम को जब काजा लौटा तो अँधेरा होने में काफी समय दिखायी पड़ रहा था। आज तक की यात्रा में बाइक पूरी तरह से कीचड़ से सन चुकी थी। काजा आते समय कस्बे से बाहर मैंने एक बाइक वॉश सेन्टर देखा था। तो काजा से पूरब की ओर कस्बे से बिल्कुल बाहर एक वॉश सेन्टर पर बाइक धुलवाने चल पड़ा। पर यहाँ तो मोटरसाइकिलों की लाइन लगी थी। एक धुल रही थी जबकि छः लाइन में थीं। मेरा नम्बर इन सबके बाद आने वाला था। धुलने वाला अकेला ही था। गनीमत यह थी कि अधिकांश को सिर्फ पानी ही मारना था,एक की धुलाई शैम्पू के साथ करनी थी। ये सभी बाइकर एक ही समूह के थे और वास्तव में बाइकर लग रहे थे। शरीर पर बाइकिंग सूट,हेलमेट के ऊपर कैमरा,बाइक के हैण्डलबार पर कैमरा,पैर में हैवी जूते और हैवी बाइक्स वगैरह,वगैरह। उनके सामने मैं खुद को बहुत हल्का–फुल्का महसूस कर रहा था। साधारण कपड़े,साधारण जूते,हेलमेट और हैण्डलबार पर कोई कैमरा नहीं। शायद मेरी एक्सपल्स 200 टी बाइक भी अपने को बहुत साधारण महसूस कर रही थी।
मैंने धुलने वाले से बात की तो उसने आधे घण्टे इंतजार करने को कहा। मैंने इंतजार करना ही बेहतर समझा क्योंकि आगे की यात्रा में कहाँ समय मिलेगा,इसकी कोई गारण्टी नहीं थी। उस पर मुसीबत ये कि काजा में गाड़ियों की धुलाई करने वाला यह बिचारा अकेला है। इस बीच कुछ और लोग भी गाड़ी धुलवाने पहुँचे लेकिन भीड़ देखकर चलते बने। लगभग पौने एक घण्टे में मेरा भी नम्बर आया। मैंने अपनी बाइक को शैम्पू से धुलवाया। 100 रूपये साधारण पानी मारने के और 100 रूपये शैम्पू के,कुल 200। बाइक चमचमा कर खुश हो उठी।

अँधेरा होने से पहले ही मैं अपने होटल पहुँच गया। अब अगला काम मुझे रास्ते के बारे में पता करना था क्योंकि एक–दो जगह मैंने चर्चा सुनी थी कि कुंजुम पास या उसके आस–पास कहीं रास्ता ब्लॉक है। होटल वालों से सही जानकारी नहीं मिल पा रही थी तो मैं पास ही रोडवेज बस–स्टैण्ड पहुँच गया। वहाँ पहुँच कर पता चला कि कहीं भी रास्ता बन्द नहीं है,सारी गाड़ियाँ आ–जा रही हैं। यह मेरे लिए खुशी की बात थी। अब अगला काम– भोजन की खोज। शुद्ध शाकाहारी भोजन खोजना भी मेरे लिए एक टाॅस्क होता है। खोजते–खोजते एक शाकाहारी रेस्टोरेण्ट मिला लेकिन खाना अच्छा नहीं मिला। खैर अब नींद की बारी थी। लेकिन वह भी किस्मत में होगी तभी मिलेगी। जिस होटल में मैं ठहरा था उसकी डाॅर्मिटरी में स्थानीय पियक्कड़ों का जमावड़ा था जो देर रात तक आशाराम बापू के प्रवचन सुनाते रहे और मैं सोने की बजाय उनके प्रवचन सुनता रहा।



सर्वोच्च ऊँचाई पर बना डाकघर

कोमिक मोनेस्ट्री के पास गाड़ियों की भीड़

कोमिक मोनेस्ट्री के अंदर सांस्कृतिक कार्यक्रम 




विश्व का सर्वाधिक ऊँचाई पर बना रेस्टोरेण्ट


दूर से दिखता हिक्किम गाँव



काजा



 अगला भाग ः काजा से लोसर

सम्बन्धित यात्रा विवरण–

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