Pages

Friday, March 6, 2020

भारत का अपवाह तंत्र-3

 
2. गंगा नदी तंत्र–

गंगा नदी तंत्र भारत सबसे बड़ा नदी तंत्र है। यह देश के लगभग एक–चौथाई भाग को जल प्रदान करता है। यहाँ भारत की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इस नदी तंत्र का निर्माण हिमालय तथा प्रायद्वीपीय उच्च भागों से निकलने वाली नदियों के मिलने से होता है।

गंगा नदी– गंगा का उद्गम उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में माणा दर्रे के निकट गोमुख हिमनद (4023 मीटर) से होता है। यहाँ इसका नाम भागीरथी है जो महान हिमालय और मध्य हिमालय में संकीर्ण महाखड्डों (गार्ज) का निर्माण करते हुए आगे बढ़ती है। देवप्रयाग में सतोपंथ हिमनद से निकलने वाली अलकनंदा से इसका संगम होता है और यहीं से इसका नाम गंगा हो जाता है। इसके पश्चात यह मध्य हिमालय और शिवालिक श्रेणियों को काटती हुई ऋषिकेश और हरिद्वार के निकट मैदानी भाग में उतरती है। गंगा धर्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी भारत की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण नदी है। मेगास्थनीज ने लिखा है–ʺइसकी साधारण चौड़ाई 1 किमी है और गहराई 36 मीटर है। यह हिन्दुओं की सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक नदी है। इस कारण इसके किनारे पर गंगोत्री से लेकर मुहाने तक अनेक तीर्थ स्थान स्थापित हैं जिनमें हरिद्वार,प्रयाग और काशी विशेष हैं। इसके किनारे उत्तर भारत के कुछ बड़े–बड़े औद्योगिक तथा व्यापारिक केन्द्र भी स्थित हैं। इनमें से कानपुर,वाराणसी,पटना,कोलकाता इत्यादि सुप्रसिद्ध हैं। गंगा नदी मैदानी इलाके के बीच में बहती है इसलिए गंगा,यमुना,शारदा आदि अनेक नदियों से बड़ी–बड़ी नहरें निकाली गयी हैं।ʺ उक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि गंगा ऐतिहासिक कालक्रम में भी भारत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी रही है।

अपने उद्गम से आगे बढ़ने के बाद गंगोत्री के निकट जाह्नवी नदी भागीरथी से मिलती है। दोनों नदियाँ एक होकर बन्दरपूँछ और श्रीकान्त चोटियों के बीच 4870 मीटर गहरी घाटी बनाकर प्रवाहित होती हैं।पहाड़ी भाग में भागीरथी की सबसे बड़ी सहायक नदी अलकनंदा है। अलकनंदा में भागीरथी की तुलना में जल की मात्राअधिक होती है। अलकनंदा भागीरथी में मिलने से पूर्व कई नदियों से संगम करती है। विष्णुप्रयाग में धौली (नीति दर्रे के निकट जास्कर श्रेणी से) तथा विष्णुगंगा (माना दर्रे के निकट कामेत शिखर से) का अलकनंदा से संगम होता है। नंदप्रयाग में नंदाकिनी और अलकनंदा का संगम होता है। कर्णप्रयाग में अलकनंदा,पिण्डारी हिमनद से निकलने वाली पिण्डर नदी से मिलती है। रूद्रप्रयाग में अलकनंदा और मंदाकिनी का संगम होता है। अन्त में देवप्रयाग में अलकनंदा भागीरथी से मिलकर गंगा काे जन्म देती है। यद्यपि अलकनंदा अधिक बड़ी नदी है,भागीरथी को ही परम्परागत वास्तविक गंगा माना जाता है। अलकनंदा का स्रोत सतोपंथ हिमनद है जो बद्रीनाथ के उत्तर में नीती दर्रे के निकट स्थित है। 

हरिद्वार से मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद पहले दक्षिण और फिर दक्षिण पूर्व की ओर बहते हुए गंगा में प्रयाग के निकट यमुना,गाजीपुर के निकट गोमती व छपरा के निकट घाघरा मिलती है। पटना के निकट दक्षिण की ओर से सोन तथा इसके पूर्व में उत्तर की तरफ से गण्डक व कोसी भी गंगा में मिलती हैं। बिहार में गंगा पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। राजमहल पहाड़ियों के पास प0 बंगाल के मालदा जिले में फरक्का बैराज के नीचे यह दक्षिण–पूर्व दिशा में मुड़ जाती है। बैराज के बाद यह नदी दो भागों में विभक्त हो जाती है– भागीरथी–हुगली तथा पद्मा। हुगली कोलकाता से होकर गुजरती है जबकि पद्मा बांग्लादेश में प्रवेश कर जाती है। वर्तमान में हुगली गंगा के डेल्टा की सबसे पश्चिमी वितरिका है। हुगली एक ज्वारीय नदी है जिस पर कोलकाता बंदरगाह अवस्थित है। पद्मा नदी ग्वाल्डो के निकट ब्रह्मपुत्र से मिलती है। यहाँ यह कई धाराओं में बँटकर,मेघना नदी से मिलकर 97 किलोमीटर चौड़ा मुहाना बनाती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। गंगा की कुल लम्बाई 2525 किलोमीटर तथा अपवाह क्षेत्र 1098600 वर्ग किलोमीटर है। हुगली और मेघना नदियों के बीच गंगा का डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है जिसका क्षेत्रफल 51306 वर्ग किलाेमीटर है। डेल्टा का समुद्री भाग घने जंगलों से ढका है।

यमुना नदी– यह गंगा की सबसे महत्वपूर्ण और सर्वाधिक पश्चिमी सहायक नदी है। इसका उद्गम बंदरपूँछ (6330 मीटर) चोटी के पश्चिमी ढाल पर यमुनोत्री हिमनद से होता है। नीचे की ओर मसूरी श्रेणी (उत्तराखण्ड) के पीछे इसमें टोंस नदी आकर मिलती है। मसूरी श्रेणी के बाद यह मैदानी भाग में प्रवेश करती है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच सीमा बनाती हुई यह दिल्ली,आगरा और मथुरा होकर गुजरती है तथा दक्षिण–पूर्व की ओर बहते हुए इलाहाबाद में गंगा नदी से इसका संगम होता है। यमुना की प्रमुख सहायक नदियाँ इसके दाहिने तट से मिलती हैं जो विंध्य श्रेणी और मालवा के पठार से निकलती हैं। चम्बल,सिंध,बेतवा,केन तथा टोंस इसके दाहिने किनारे की सहायक नदियाँ हैं। ऐसा माना जाता है कि वैदिक काल में यमुना दक्षिण तथा दक्षिण–पश्चिम की ओर राजस्थान के बीकानेर जिले से होकर बहती थी तथा पौराणिक सरस्वती नदी में जाकर मिल जाती थी। यमुना नदी की कुल लम्बाई 1385 किलोमीटर और अपवाह क्षेत्र 359000 वर्ग किलोमीटर है।

रामगंगा नदी– यह एक छोटी नदी है जो गढ़वाल के पूर्वी भाग में नैनीताल के निकट 3110 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। इसका उद्गम एक हिमनदी से होता है। इस नदी में जल की मात्रा में ऋतुवत परिवर्तन बहुत अधिक होता है। यह कालागढ़ के निकट मैदानी भागों में प्रवेश करती है। शिवालिक पहाड़ियों के कारण इसका प्रवाह दक्षिण–पश्चिम की ओर हो जाता है लेकिन मैदान में उतरने पर दक्षिण–पूर्व की ओर बहती हुई कन्नौज के निकट यह गंगा में मिल जाती है। इस नदी की लम्बाई 600 किलोमीटर है लेकिन इसके जल का उपयोग सिंचाई में अधिक नहीं हो पाता है। 

करनाली नदी– यह पर्वतीय भाग में करनाली और मैदानी भाग में घाघरा कहलाती है। यह एक पूर्ववर्ती नदी है जिसका उद्गम नेपाल हिमालय में मान्धाता चोटी (7220 मीटर) के पास माकचाचुंग हिमनद से होता है। महान हिमालय को पार करते समय एक गार्ज बनाने से पहले यह ट्रांस हिमालय में 160 किलोमीटर लम्बे मार्ग को पार करती है। यह नदी नेपाल के पश्चिमी भाग में महाभारत श्रेणी को एक गहरे गार्ज के द्वारा पार करती है। मैदानी भाग में शारदा नदी इसमें आकर मिलती है और यहाँ से इसका नाम घाघरा हो जाता है। छपरा के निकट यह गंगा से मिल जाती है। इसकी कुल लम्बाई 1180 किलोमीटर और अपवाह क्षेत्र 127000 वर्ग किलोमीटर है।

कोसी नदी– कोसी की मुख्य धारा अरूण के नाम से जानी जाती है जो एवरेस्ट चोटी के उत्तरी ढाल से निकलती है। एवरेस्ट और कंचनजंघा के मध्य प्रवाहित होते हुए इस नदी में हिमनदों से निकलने वाली अनेक जलधाराएं आकर मिलती हैं। नेपाल में महान हिमालय में प्रवेश करने के बाद इसमें पश्चिम से सन–कोसी तथा पूर्व से तामूर–कोसी आकर मिलती है। ये दोनों नदियाँ कुछ दूर तक समानान्तर तथा महाभारत श्रेणी के उत्तर में बहती हैं एवं अरूण नदी से मिलकर सप्तकोसी कहलाती हैं। यह नदी महाभारत श्रेणी और शिवालिक श्रेणी के मध्य प्रवाहित होती है। शिवालिक पहाड़ियों को पारकर यह बिहार के सहरसा जिले में छत्रा नामक स्थान पर मैदान में उतरती है। बिहार के मैदान में यह नदी अनेक परिवर्तनशील जलधाराओं में विभाजित हो जाती है। यह नदी मार्ग परिवर्तन के लिए कुख्यात रही है। लगभग 200 वर्ष पहले कोसी पूर्णिया शहर के पास से बहती थी लेकिन अब यह पूर्णिया से 160 किलोमीटर पश्चिम से बहती है। मनिहारी से 30 किलोमीटर पश्चिम यह गंगा नदी में मिल जाती है। 1962 के उपरान्त इस नदी के दोनों किनारों पर तटबंधों के निर्माण से इसकी जलधारा सीमित हो गयी है। तटबंधों के निर्माण से पूर्व मानसून काल में यह नदी अत्यन्त विनाशकारी हो जाया करती थी। इसी कारण इसे ʺबिहार का शोकʺ कहा जाता है। इसी नदी की कुल लम्बाई 730 किलाेमीटर तथा अपवाह क्षेत्र 86900 वर्ग किलोमीटर (भारत में 21500 वर्ग किलोमीटर) है।

गण्डक नदी– यह नदी नेपाल में ‘सालिग्रामी‘ और मैदान में ‘नारायणी के नाम से जानी जाती है। इस नदी की धारा में गोल व चिकने सालिग्रामी पाये जाने के कारण इसे यह विशेष नाम दिया जाता है। इसकी दो मुख्य सहायक नदियाँ पश्चिम में काली व पूर्व में त्रिशूल गंगा हैं। शिवालिक श्रेणी को यह त्रिवेणी नामक स्थान पर पार करती है। पटना के निकट यह गंगा में मिल जाती है। इस नदी की लम्बाई 425 किलोमीटर और अपवाह क्षेत्र 45800 वर्ग किलोमीटर (भारत में 9540 वर्ग किलोमीटर) है।

चम्बल नदी– यह विंध्य श्रेणी में मध्य प्रदेश के मऊ नामक स्थान के निकट 600 मीटर ऊँची जनापाव पहाड़ी से निकलती है। राजस्थान के बूँदी,कोटा व धौलपुर जिलों में बहते हुए उत्तर प्रदेश के इटावा से लगभग 40 किलोमीटर पूर्व में यमुना से मिलती है। काली सिन्ध,सिप्ता,पार्वती व बनास इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। यह बरसाती नदी है और जहाँ पर यह काँप के क्षेत्र में से गुजरती है,वहाँ बाढ़ के दिनों में बहुत अधिक कटाव करती है। इसलिए इसकी घाटी उत्खात स्थलाकृति (badland topography) के नाम से विख्यात है जिसमें गहरे बीहड़ (ravines) पाये जाते हैं। बाढ़ के दिनों में यह अपने धरातल से 130 मीटर की ऊँचाई तक प्रवाहित होती है। चम्बल के बीहड़ एक लम्बे समय तक डाकुओं के शरणस्थल रहे हैं। चम्बल की कुल लम्बाई 965 किलोमीटर है। इस नदी पर गाँधी सागर,राणा प्रताप सागर (रावतभाटा) तथा जवाहर सागर बाँध बनाये गये हैं।

सोन नदी– सोन नदी संस्कृत साहित्य में ‘स्वर्ण नदी‘ के नाम से विख्यात है। अमरकण्टक की पहाड़ियों में इसका उदगम होता है। विन्ध्य श्रेणी को पार करते हुए यह अनेक प्रपात बनाती है। बनास,गाेपद,रिहन्द,कुन्हड़ आदि इसकी सहायक नदियाँ हैं। बिहार के मैदानी भागों में सोन नदी की घाटी 5 किलोमीटर से भी अधिक चौड़ी है। वर्षाकाल में यह विकराल रूप धारण कर लेती है। आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व यह पटना से नीचे गंगा में मिलती थी लेकिन पश्चिम की ओर खिसकते हुए अब यह आरा के नजदीक बांकीपुरा में 16 किलोमीटर ऊपर गंगा में गिरती है। सोन नदी की लम्बाई 780 किलोमीटर तथा अपवाह क्षेत्र 54000 वर्ग किलोमीटर है।

काली या शारदा नदी– काली या शारदा नदी हिमालय के मिलाम हिमनद से निकलती है जहाँ इसे गोरीगंगा कहा जाता है। इसके ऊपरी भाग में धर्मा व लिसार नदियाँ इससे मिलती हैं। आगे चलकर पंचेश्वर के निकट सरयू और पूर्वी रामगंगा नदियाँ मिलती हैं। यहीं से यह नदी सरयू या शारदा के नाम से पहाड़ियों का चक्कर लगाती हुई ब्रह्मदेव के निकट मैदानों में प्रवेश करती है। एक लम्बी दूरी तक यह भारत–नेपाल की सीमा बनाती है,जहाँ इसे काली नाम से जाना जाता है। खीरी में इस नदी की चार शाखाएं हो जाती हैं– अल,शारदा,ढहावर और सुहेली। शारदा नदी चक्करदार मार्ग बनाती हुई बहरामघाट के निकट घाघरा नदी में मिल जाती है। इससे ब्रहमदेव के निकट शारदा नहर निकाली गयी है।

राप्ती नदी नेपाल के पिछले भाग की ओर से निकलकर पहले दक्षिण और फिर पश्चिम की ओर बहती है। यह बरहज के निकट घाघरा में मिल जाती है।

बेतवा नदी भोपाल के दक्षिण–पश्चिम से शुरू होती है और भोपाल,ग्वालियर,झाँसी,औरैया और जालौन होते हुए हमीरपुर के निकट यमुना में मिल जाती है। इसके ऊपरी भाग में कई प्रपात हैं। इसकी कुल लम्बाई 590 किलोमीटर है। झाँसी से 23 किलोमीटर दूर पश्चिम में इससे बेतवा नहर निकाली गयी है। संस्कृत साहित्य में इस नदी को वेत्रवती कहा गया है। साँची,विदिशा आदि ऐतिहासिक नगर इसी नदी के किनारे अवस्थित हैं। 
कैमूर पहाड़ियों के उत्तरी ढाल से केन नदी निकलती है। इसे संस्कत में कर्णवती नाम से सम्बोधित किया गया है। बुन्देलखण्ड में प्रवाहित होती हुई यह यमुना में मिल जाती है। इसकी लम्बाई 360 किलोमीटर है। 
कैमूर श्रेणी में ही मैहर के निकट तमसा कुण्ड से टोंस या तमसा नदी निकलती है। पठारी धरातल पर प्रवाहित होते हुए यह अनेक जलप्रपात बनाती है,जिसमें 110 मीटर ऊँचा बिहार प्रपात प्रसिद्ध है। इस नदी की लम्बाई 265 किलोमीटर है। सिरसा के निकट यह गंगा में मिल जाती है। 

काली सिन्ध नदी का उद्गम राजस्थान के टोंक जिले में नैनवास नामक स्थान के निकट होता है। यह जगमनपुर के पास यमुना से मिल जाती है। इसकी लम्बाई 416 किलोमीटर है।

दामोदर नदी छोटा नागपुर पठार के दक्षिणी–पूर्वी भाग में आरंभ होकर पूर्वी भाग को अपवाहित करती है। यह नदी पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है और आसनसोल के निकट एक सँकरे स्थान पर बंगाल के डेल्टा में प्रवेश करती है। आसनसोल से आगे बराकर नदी इसमें आकर मिलती है जो इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी है। वर्दवान के नीचे यह एक समकोण मोड़ लेती हुई फाल्टा में हुगली नदी से मिल जाती है। दामोदर के उत्तर में अजय,मोर आदि नदियाँ हुगली में मिलती हैं। इस नदी की लम्बाई 541 किलोमीटर और अपवाह क्षेत्र 22000 वर्ग किलोमीटर है।
बनास नदी चम्बल की प्रमुख सहायक नदी है। अरावली पहाड़ियों के दक्षिणी भाग से निकलकर उत्तरी–पूर्वी दिशा में बहने के बाद सवाई माधोपुर के निकट यह चम्बल से मिल जाती है।


नोट– ब्लॉग में प्रस्तुत सामग्री एवं मानचित्र भूगोल के प्रख्यात विद्वानों की पुस्तकों,विभिन्न वेबसाइटों और एटलस से लिये गये हैं।





अगला भाग ः भारत का अपवाह तंत्र-4


अन्य सम्बन्धित विवरण–


No comments:

Post a Comment