प्राकृतिक रूप से निर्मित जलपूर्ण गर्त को झील कहते हैं। भारत में झीलों की संख्या अधिक नहीं है। भारत के हिमालयी क्षेत्र में अन्य पर्वतीय प्रदेशों के तुलना में कम झीलें पायी जाती हैं। झीलों का निर्माण अनेक कारणों से होता है। भारत की झीलें निम्न वर्गों में रखी जा सकती हैं–
1. विवर्तनिक झीलें– पृथ्वी के भीतर भूगर्भिक क्रियाएँ होने से भूपटल में भ्रंश या दरारें उत्पन्न हो जाती हैं और गर्ताें का निर्माण हो जाता है। इन गर्ताें में जल भर जाने पर विवर्तनिक झीलों का निर्माण होता है। उत्तराखण्ड के कुमाऊँ तथा कश्मीर में इस तरह की कई झीलें पायी जाती हैं। कश्मीर की वूलर तथा उत्तराखण्ड की नैनीताल,भीमताल,नौकुचियाताल ऐसी ही झीलें हैं।
2. ज्वालामुखी झीलें– ज्वालामुखी उद्गार से निर्मित क्रेटर या काल्डेरा में जब जल भर जाता है तो ज्वालामुखी झीलों का निर्माण होता है। महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले की लोनार झील ज्वालामुखी झील का उदाहरण है।
3. हिमानी निर्मित झीलें या गिरिताल– हिमनदों द्वारा किये जाने वाले अपरदन से पहाड़ी ढालों पर गर्ताें का निर्माणहो जाता है। हिम के पिघलने से इन गर्ताें में जल भर जाता है और इस तरह हिमानी झीलों या गिरिताल का निर्माण होता है। वस्तुतः गिरिताल (टार्न) छोटे आकार की पर्वतीय झील होती है। कुमाऊँ हिमालय में राकस ताल,भीमताल,नौकुचियाताल,नैनीताल आदि गिरितालों का उदाहरण हैं। कश्मीर में महान हिमालय में गंगाबल झील भी इसी का उदाहरण है। पीर पंजाल श्रेणी के उत्तरी–पूर्वी ढालों पर इस प्रकार की झीलें पायी जाती हैं।
4. पवन क्रिया से निर्मित झीलें– मरूस्थलीय भागों में पवन की अपरदन क्रिया से धरातल पर छोटे–छोटे गर्त बन जाते हैं जिन्हें अपवाहन गर्त (blow outs) कहते हैं। वर्षाकाल में इन गर्ताें में जल भर जाता है। वाष्पीकरण की अधिकता के कारण इनकी सतह पर लवण की परतें बन जाती हैं। इस कारण ये झीलें खारी होती हैं। राजस्थान में पायी जाने वाली पंचभद्रा,साँभर,डीडवाना इसी प्रकार की वायूढ़ या वायु निर्मित झीलें हैं।
5. घुलन क्रिया से निर्मित झीलें– चूना पत्थर,जिप्सम या लवण की अधिकता वाली चट्टानों से निर्मित भूभागों में इस तरह की झीलों का निर्माण होता है। घुलनशील पदार्थाें के जल के साथ घुल कर बह जाने के फलस्वरूप गर्त उत्पन्न हो जाते हैं जिनमें जल भर जाने से इन झीलों का निर्माण होता है। असम,मेघालय और उत्तराखण्ड में इस प्रकार की झीलें पायी जाती हैं।
6. भूस्खलन से निर्मित झीलें– पर्वतीय क्षेत्रों में कभी–कभी बड़ी चट्टानों के नदियों के मार्ग में गिर जाने से नदियों का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। ऐसी स्थिति में नदियों के मार्ग पर ही झीलों का निर्माण हो जाता है। 1893 में अलकनन्दा नदी के मार्ग में शैल–स्खलन से गोहना नामक झील का निर्माण हो गया था।
7. विसर्प अथवा नदी निर्मित झीलें– पर्वतीय क्षेत्रों से जब नदी उतरकर मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है तो मन्द ढाल और वेग में कमी के कारण वह लहरदार या घुमावदार मार्ग से प्रवाहित होने लगती है। ऐसी परिस्थिति में नदी की अपरदन और निक्षेपण क्रिया के सम्मिलित प्रभाव से इसके मोड़ों के दोनों सिरे आपस में मिल जाते हैं और नदी फिर से एक सीधे मार्ग से प्रवाहित होने लगती है। फलतः नदी द्वारा बनाया गया विसर्प या छाड़न झील या गोखुर झील के रूप में अवशेष रह जाता है। इस प्रकार की झीलें कई बार अस्थायी भी होती हैं और शीघ्र ही इनका विलोपन हो जाता है। गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के मैदानी प्रवाह मार्ग में इस प्रकार की झीलें पायी जाती हैं। पश्चिमी बंगाल में इन्हें बील कहा जाता है।
8. अनूप या लैगून झीलें– नदियाँ जब समुद्र से मिलती हैं तो समुद्री लहरों और पवन की संयुक्त क्रिया से रेत के टीले निर्मित हो जाते हैं। इन टीलों के पीछे नदी का जल झील के रूप में एकत्र हो जाता है जिसे ये टीले समुद्र से अलग करते हैं। इस तरह की झीलों को अनूप या लैगून या पश्चजल झीलें कहते हैं। उड़ीसा की चिल्का झील,आंध्र प्रदेश की पुल्लीकट,केरल में वेम्बानाड और अष्टमुदी इसी प्रकार की झीलें है।
भारत की सर्वाधिक झीलें उत्तरी पर्वतीय भाग में पायी जाती हैं–
कुमायूँ हिमालय की झीलें–
इस भाग में भारत की सर्वाधिक झीलें स्थित हैं।
भीमताल– नैनीताल जिले में काठगोदाम से 10 किलोमीटर उत्तर में,त्रिभुजाकार आकृति में यह झील समुद्रतल से 1330 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है जिसके बीच में ज्वालामुखी शैलों से निर्मित एक छोटा द्वीप भी है। यह झील 1700 मीटर लम्बी,450 मीटर चौड़ी और 26 मीटर गहरी है।
नैनीताल– नैनीताल 1937 मीटर की ऊँचाई पर पर्वतों से घिरी एक झील है। यह 1935 मीटर लम्बी,480 मीटर चौड़ी और 26 मीटर गहरी है। नैनीताल नौका विहार के लिए प्रसिद्ध है।
नौकुचिया ताल भीमताल से 4 किलोमीटर दक्षिण–पूर्व की ओर स्थित है। यह समुद्रतल से 1300 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसकी लम्बाई 940 मीटर, चौड़ाई 680 मीटर और गहराई 40 मीटर है।
भीमताल से 3 किलोमीटर उत्तर–पश्चिम में सातताल स्थित है जो कि सात झीलों का एक समूह है। ये झीलें समुद्रतल से औसतन 1370 मीटर की ऊँचाई पर अवस्थित हैं। इन झीलों में प्रवासी पक्षी भी अपना आशियाना बनाते हैं।
रूपकुण्ड झील– यह कुमायूँ के बहुत ही दुर्गम भाग में अवस्थित है। यह झील 5030 मीटर की ऊँचाई पर है। यह झील अपने आस–पास के क्षेत्र पाये गये 600 नरकंकालों के लिए प्रसिद्ध है। इन कंकालों की खोज 1942 में की गयी थी।
कश्मीर की झीलें–
कश्मीर राज्य अथवा पंजाब हिमालय में हिमानी–निक्षेप जनित झीलें पायी जाती हैं। डल,वूलर,अनन्तनाग,शेषनाग,वेरीनाग,मानसबल,गन्धर्वबल,अच्छाबल,नागिन आदि ऐसी ही झीलें हैं। इनमें से कई झीलों अथवा उनके भागों को नहरों के द्वारा परस्पर जोड़ दिया गया है। कश्मीर की झीलों का उपयोग परिवहन के लिए भी किया जाता है। कश्मीर की झीलों का पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही महत्व है।
डल झील– डल झील कश्मीर की प्रसिद्ध और खूबसूरत झील है। श्रीनगर के पूर्व में कई स्रोतों व नालों से प्राप्त जल से इस झील का निर्माण हुआ है। झील की लम्बाई 7 किमी और चौड़ाई 3 किमी है और इसका कुल क्षेत्रफल 18 वर्ग किमी है। इस झील को एक चौड़ी नहर द्वारा वूलर झील से मिला दिया गया है। प्रदूषण और अतिक्रमण के कारण इस झील का आकार घटता जा रहा है। यह झील तीन ओर से पर्वतों से घिरी हुई है। इसके फूलों और फलाें के बाग लगाये गये है। मुगलकालीन शालीमार बाग और निशात बाग इसी के किनारे अवस्थित हैं।
वूलर झील– यह कश्मीर की सबसे बड़ी झील है जिसका निर्माण प्लीस्टोसीन काल में विवर्तनिक क्रियाओं की वजह से हुआ। यह झील झेलम नदी से जल ग्रहण करती है और एक प्राकृतिक जलाशय के रूप में कार्य करती है। इस कारण मौसम के अनुसार इसका आकार घटता–बढ़ता रहता है। सोपोर एवं बांदीपुर के मध्य स्थित यह झील भारत में मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है।
पोंगोंग सो झील– यह झील पूर्वी लद्दाख में अवस्थित है और हिमालय की सबसे ऊँची खारे पानी की झीलों में से एक है। यह झील 134 किमी की लम्बाई और 5 किमी की चौड़ाई में विस्तृत है जिसका 60 प्रतिशत भाग चीन में और 40 प्रतिशत भाग भारत में है। एल ए सी के पर स्थित होने के कारण इस झील तक पहुँचने के लिए इनर लाइन परमिट की आवश्यकता पड़ती है। यह झील समुद्रतल से 4350 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस झील का रंग समय और मौसम के अनुसार बदलता रहता है। झील में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी भी आते हैं। झील की अवस्थिति अत्यन्त सुन्दर है और इस कारण पर्यटन की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण है। झील के पास कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है। शीतकाल में यह झील पूरी तरह जम जाती है।
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