Friday, April 3, 2020

भारत का अपवाह तंत्र–7

 राजस्थान की झीलें–

राजस्थान राज्य का अधिकांश भाग एक अर्द्धशुष्क अथवा शुष्क मरूस्थल के रूप में है अतः यहाँ आन्तरायिक अपवाह देखने को मिलता है। अर्थात यहाँ की नदियाँ मरूस्थल के मध्य किसी गर्त या झील में समाप्त हो जाती हैं और समुद्र तक नहीं पहुँच पातीं। यहाँ की झीलें प्रायः खारे जल की होती हैं। साँभर,डीडवाना,जयसमंद,पुष्कर,राजसमंद,लूनकरनसर,उदय सागर,पिछोला,फलोदी,कछोर,फतेह सागर आदि यहाँ की प्रमुख झीलें हैं। 
साँभर झील– यह जयपुर शहर से पश्चिम की ओर 70 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है तथा भारत की खारे पानी की सबसे बड़ी झील है। सामान्य अवस्था में यह झील 129 किमी की लम्बाई और 13 किमी की चौड़ाई में विस्तृत है। इस झील की गहराई शुष्क काल में कुछ सेमी से लेकर मानसून काल में कई मीटर तक हो जाती है। इस झील में लवण की अत्यधिक मात्रा पायी जाती है जिस कारण हजारों साल पहले से इस झील के पानी को सुखाकर नमक का उत्पादन किया जाता रहा है। साँभर झील को रामसर साइट के रूप में मान्यता प्राप्त है। अर्थात यह अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि है। शीत रितु में हजारों साइबेरियाई पक्षी यहाँ प्रवास करने आते हैं। 
जयसमंद झील– 87 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैली यह झील भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। यह उदयपुर से 45 किमी पूर्व में अवस्थित है। इस झील का निर्माण 17वीं सदी में उदयपुर के राणा जयसिंह द्वारा,गाेमती नदी पर बाँण का निर्माण करके कराया गया। इस झील में कुछ द्वीप भी हैं जिनका पर्यटन की दृष्टि से उपयोग किया जाता है। 
पुष्कर झील– यह झील 12वीं सदी में अस्तित्व में आयी जब लूनी नदी के शीर्ष पर एक बाँध बनाया गया। इस तरह यक एक कृत्रिम झील है। यह राजस्थान के अजमेर में स्थित है जहाँ कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

दक्षिण भारत की झीलें–
दक्षिण भारत में झीलों की संख्या बहुत कम पायी जाती है। चिल्का,लोनार,पुलिकट,कोलेरू,अष्टामुदी,हुसैन सागर,वेम्बानाड इत्यादि दक्षिण की प्रमुख झीलें हैं।
चिल्का झील– उड़ीसा के तटीय भाग में स्थित यह खारे पानी की भारत की सबसे बड़ी झील है। पुरी जिले में स्थित यह झील 70 किमी की लम्बाई और 30 किमी की चौड़ाई में विस्तृत है। मौसम के अनुसार इस झील का आकार घटता–बढ़ता रहता है। इस झील का निर्माण महानदी द्वारा लाये गये निक्षेपों के जमने से हुआ है। 
कोलेरू झील– यह आन्ध्र प्रदेश के तटीय भाग में स्थित है एवं मीठे पानी की झील है। यह झील कृष्णा तथा गोदावरी जिलों में,कृष्णा तथा गोदावरी नदियों के डेल्टाई भाग में अवस्थित है। यह झील एक वन्य जीव अभयारण्य के रूप में संरक्षित है।
वेम्बानट्टु झील– यह झील केरल के तटीय भाग में एक लैगून के रूप में पायी जाती है। इस झील के कई भागों और कुछ छोटी नदियों को नहरों के माध्यम से आपस में जोड़ दिया गया है। जिससे पर्यटन और यातायात की दृष्टि से यह झील अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गयी है। कुमारकोम पक्षी अभयारण्य इसी झील के किनारे अवस्थित है।
वेंबानाड झील– यह झील केरल के तटवर्ती भाग में 200 वर्ग किलोमीटर के विस्तार में फैली हुई है। यह केरल की सबसे बड़ी झील है जो कि एक लैगून या पश्चजल के रूप में है। नहरों के द्वारा इसे अन्य तटवर्ती लैगूनों से जोड़ दिया गया है। पम्बा और पेरियार जैसी नदियाँ इस झील में ही विसर्जित होती हैं। झील में कुछ द्वीप भी पाये जाते हैं। इस झील को सँकरी और उथली भूमि की एक पट्टी अरब सागर से अलग करती है।
पुलिकट झील– आन्ध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु की सीमा पर अवस्थित यह एक खारे पानी की झील है। श्रीहरिकोटा द्वीप इस झील को बंगाल की खाड़ी से अलग करता है। इस झील की लम्बाई 60 किमी और चौड़ाई आधा किमी से लेकर 18 किमी के बीच बदलती रहती है। इस झील में प्रवासी और कई स्थानीय पक्षी भी पाये जाते हैं। 
उस्मान सागर झील– यह एक कृत्रिम झील है जिसका निर्माण हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान के द्वारा कराया गया था। सन् 1920 में मूसी नदी पर एक बाँध बनाकर इस झील का निर्माण किया गया। यह झील हैदराबाद शहर को पीने का पानी उपलब्ध कराती है। झील में ʺसागर महलʺ नामक एक गेस्ट हाउस बना है जो पूर्व में हैदराबाद के निजाम का ग्रीष्मकालीन सैरगाह था। वर्तमान में इसे ऐतिहासिक विरासत के रूप में संरक्षित किया गया है।

हिमाचल प्रदेश की झीलें–
नाको झील– नाको झील हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में 3660 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह एक छोटी सी झील है लेकिन पर्यटन की दृष्टि से यह अत्यन्त खूबसूरत है। इसके चारों ओर विलो और पोपलर के वृक्ष पाये जाते हैं। इसके पास ही नाको नामक गाँव बसा हुआ है। 
खज्जियार झील– यह हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में अवस्थित एक छोटी सी झील है। यह समुद्रतल से 1900 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। चारों तरफ से देवदार के वृक्षों से घिरे होने के कारण यह पर्यटन की दृष्टि से अत्यन्त रमणीक है। झील से 24 किमी की दूरी पर डलहौजी हिल स्टेशन अवस्थित है। 
सूरज ताल– यह एक उच्च हिमालयी झील है जो समुद्रतल से 4980 मीटर की ऊँचाई पर बारालाचा दर्रे के पास अवस्थित है। इस झील से ही भागा नदी का उद्गम होता है जो चिनाब की सहायक नदी है।
चंद्र ताल– यह भी एक उच्च हिमालयी झील है जो समुद्रतल से 4300 मीटर की ऊँचाई पर लाहौल और स्पीति जिले में अवस्थित है। यह झील लाहौल और स्पीति को जोड़ने वाले कुंजुम दर्रे से 21 किमी की दूरी पर अत्यन्त दुर्गम स्थान पर स्थित है। 

अन्य झीलें–
लोकटक झील– यह पूर्वोत्तर भारत में स्थित मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है। यह झील एक रामसर साइट है और अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि के रूप में संरक्षित है। यह झील अपने तैरते हुए द्वीपों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। वास्तव में ये द्वीप वनस्पतियों,मृदा और जैवपदार्थों का सामूहिक ढेर होते हैं जो झील में इधर–उधर तैरते रहते हैं।
सोंगमो झील– यह एक हिमानी झील है जो सिक्किम की राजधानी गंगटाेक से 40 किमी की दूरी पर स्थित है। यह अण्डाकार झील सर्दियों के मौसम में अत्यधिक ठण्ड के कारण जम जाती है। यह झील 3780 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह बौद्ध एवं हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए पवित्र मानी जाती है। 



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