3. प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ
प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ उत्तर भारत की अपेक्षा छोटी हैं तथा संख्या में कम हैं। नदियों में पानी की मात्रा भी वर्षा पर निर्भर करती है। वर्षा के दिनों में इन नदियों में पानी अधिक रहता है जबकि शुष्क दिनों में पानी काफी कम हो जाता है। प्रायद्वीपीय भारत का धरातल पठारी व चट्टानी है,इसलिए नदियों का पानी सोखता नहीं है और थोड़ी सी भी वर्षा होने पर पानी की मात्रा बढ़ जाती है और कभी कभी अचानक बाढ़ भी आ जाती है। ये नदियाँ कम गहरी हैं,इसलिए नाव्य भी नहीं हैं। इन नदियों की घाटियाँ चौड़ी हैं और इनकी अपरदन की शक्ति समाप्तप्राय हो चुकी है। यहाँ की अधिकांश नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं,कुछ अरब सागर और कुछ उत्तरी विशाल मैदान की ओर बहते हुए गंगा और उसकी सहायक नदियों में मिल जाती हैं। कुछ नदियाँ अरावली की पहाड़ियों और मध्यवर्ती पहाड़ी प्रदेश से निकलकर कच्छ के रन अथवा खम्भात की खाड़ी में गिर जाती हैं।
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ
गोदावरी नदी– यह प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी और देश में गंगा के बाद दूसरी सबसे बड़ी नदी है। पश्चिमी घाट श्रेणी में नासिक के पास ब्रह्मगिरि पहाड़ी से इसका उद्गम होता है। यहाँ से यह दक्षिण–पूर्व दिशा में प्रवाहित होती है और पूर्वी और दक्षिणी–पूर्वी महाराष्ट्र,बस्तर पठार (छत्तीसगढ़),तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश के बड़े भाग के जल को अपवाहित करती है। पूर्णा,मनेर,पेनगंगा,प्राणहिता (वेनगंगा तथा वर्धा संयुक्त रूप से),इन्द्रावती,ताल तथा साबरी इसकी बायें किनारे की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। जबकि दाहिने तट की प्रमुख सहायक नदी मंजिरा है जो हैदराबाद के निकट इससे मिलती है। इन्द्रावती तथा साबरी पूर्वी घाट के पश्चिमी ढाल से निकलती हैं लेकिन क्रमशः पूर्व और दक्षिण–पूर्व की ओर बहते हुए गोदावरी से मिल जाती हैं। इन्द्रावती के साथ संगम के बाद यह पूर्वी घाट में एक सुन्दर गार्ज बनाती है। इसके बाद मैदान मे उतरकर यह इतना फैल जाती है कि इसकी धारा में कई द्वीप बन जाते हैं। राजमहेन्द्री के निकट इसकी धारा 2.7 किलोमीटर चौड़ी हो जाती है। इसके बाद तीन वितरिकाओं में बॅंटकर यह बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है। गोदावरी डेल्टा में अनेक लैगून पाये जाते हैं। काकीनाड़ा के दक्षिण–पूर्व में कोल्लेरू झील एक ऐसा ही अन्तः स्थलीय लैगून है। गोदावरी की लम्बाई 1465 किलोमीटर तथा अपवाह क्षेत्र 312800 वर्ग किलोमीटर है। इसे दक्षिण गंगा भी कहा जाता है।
कृष्णा नदी– यह प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी बड़ी नदी है। पश्चिमी घाट में महाबलेश्वर के निकट इसका उद्गम होता है। दक्षिण की ओर से आकर मिलने वाली तुंगभद्रा इसकी प्रमुख सहायक नदी है जो शिमोगा जिले में तुंगा और भद्रा नदियों के संगम से निर्मित होती है। तुंगभद्रा कुर्नूल के निकट कृष्णा से मिलती है। इसकी अन्य सहायक नदियाँ कोयना,भीमा,यरला,वर्णा,पंचगंगा,दूधगंगा,घाटप्रभा,मालप्रभा,मूसी इत्यादि हैं। ये नदियाँ गहरी घाटियों में बहती हैं और वर्षा के दिनों में अत्यधिक मात्रा में जल बहाकर लाती हैं। भीमा और तुंगभद्रा को छोड़कर शेष सभी नदियों में जल की मात्रा ग्रीष्मकाल में काफी घट जाती है। नीचे की ओर क्वार्टजाइट कगार से गुजरते हुए कृष्णा नदी पर बाँध बनाकर नागार्जुन सागर जलाशय का निर्माण किया गया है। पूर्व की ओर विजयवाड़ा के नीचे श्रीसैलम की पहाड़ियों में गहरा खड्ड (गार्ज) बनाती हुई यह नदी पक्षी के पंजे के आकार का डेल्टा (पंजाकार डेल्टा) बनाते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। जल विद्युत परियोजनाओं की दृष्टि से इस नदी का बड़ा महत्व है। डेल्टा के निरन्तर विस्तार के कारण इसका डेल्टा गोदावरी के डेल्टा से मिल गया है।
कावेरी नदी– यह कुर्ग जिले में 1341 मीटर की ऊँचाई से निकलती है और दक्षिण–पूर्व की ओर कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में 805 किलोमीटर की लम्बाई में बहती है। मैसूर पठार के दक्षिणी भाग से यह एक पथरीली पर्वतीय नदी के रूप में निकलती है तथा अनेक क्षिप्रिकाओं और जलप्रपातों का निर्माण करती है। इस नदी काअपवाह बेसिन ग्रीष्मकालीन मानसून,पश्चगमन मानसून और शीतकालीन मानसून के दौरान वर्षा प्राप्त करता है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ उत्तर में हेमावती,लोकपावनी,शिमसा व अरकावती तथा दक्षिण में लक्ष्मणतीर्थ,कबबीनी,सुवर्णवती,भवानी और अमरावती हैं। अपने प्रवाह मार्ग में कावेरी धाराओं में बॅंटकर द्वीपों का निर्माण करती है। श्रीरंगपटनम और शिवसमुद्रम ऐसे ही द्वीप हैं। शिवसमुद्रम के चारों ओर प्रपातों की एक श्रृंखला पायी जाती है जिनका उपयोग कर 1902 में जलविद्युत संयत्र लगाया गया। द्वीप के नीचे यह नदी कई सुन्दर गार्ज बनाती हुई प्रवाहित होती है। इस प्राकृतिक भूदृश्य को हैगनकाल प्रपात कहते हैं। यहाँ से इस नदी के पठारी मार्ग का अन्त हो जाता है। मैसूर से 20 किलोमीटर ऊपर इस नदी पर बाँध बनाकर कृष्णासागर जलाशय का निर्माण किया गया है। तिरूचिरापल्ली से 16 किलोमीटर पूर्व की ओर कावेरी डेल्टा का प्रारम्भ होता है जहाँ पर यह दो धाराओं में बँट जाती है। कावेरी का डेल्टा 3100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। कावेरी की लम्बाई 765 किलोमीटर तथा अपवाह क्षेत्र 87990 वर्ग किलोमीटर है। इस नदी का धार्मिक और आर्थिक दोनों ही दृष्टियों से काफी अधिक महत्व है।
महानदी– महानदी उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की सबसे प्रमुख नदी है। यह अमरकंटक के दक्षिण में सिहावा से निकलती है और पूर्व और दक्षिण–पूर्व की ओर बहती हुई कटक के निकट बड़ा डेल्टा बनाती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। शिवनाथ,हसदेव,मंड और डूब नदियाँ उत्तर की ओर से आकर इसमें मिलती हैं जबकि जोंक व तेल दक्षिण की ओर से आकर इसमें मिलती हैं। अपने शुरूआती चरण में यह नदी उत्तर की ओर बहती है तथा कई सहायक नदियों से संगम के बाद पूर्व की ओर मुड़कर एक गार्ज का निर्माण करती है। इस गार्ज पर ही हीराकुण्ड बाँध का निर्माण किया गया है। कटक शहर महानदी डेल्टा के शीर्ष पर अवस्थित है। इस नदी की लम्बाई 885 किलोमीटर और अपवाह क्षेत्र 141600 वर्ग किलोमीटर है।
स्वर्णरेखा नदी का उद्गम राँची के दक्षिण–पश्चिम में होता है। यह पूर्व की ओर सिंहभूम,मयूरभंज,मिदनापुर जिलों में लगभग 490 किलोमीटर की लम्बाई में प्रवाहित होकर 2850 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के जल को अपवाहित करती है।
ब्राह्मणी नदी का विकास कोइल और शंख नदियों के मिलने से होता है। इन नदियों का संगम राउरकेला के पास होता है ये गर्जात पहाड़ियों के पश्चिमी ढाल का जल लेकर आगे बढ़ती हैं। यह बोनाई,तालचिर और बालासोर जिलों से होकर बहती है। बालासोर में वैरतणी नदी आकर मिलती है। यह नदी पारादीप बंदरगाह के पास बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है।
तम्ब्रापानी नदी पश्चिमी घाट की पालनी पहाड़ियों से निकलती है तथा मदुरई से होकर गुजरती है। रामनाथपुरम से होकर गुजरते हुए यह मन्नार की खाड़ी में जाकर मिल जाती है।
पेन्नार नदी कोलार जिले में मैसूर पठार के दक्षिणी भाग से निकलती है। चित्रावती और पापाघनी इसकी सहायक नदियाँ हैं। कुडप्पा में एक खड्ड बनाते हुए यह बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है जहाँ यह एक एश्चुअरी या मुहाना बनाती है।
प्रायद्वीपीय भारत की पूर्व की ओर बहने वाली अन्य नदियाँ पोनियार,वैगाई आदि हैं।
अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
नर्मदा नदी– नर्मदा नदी का उद्गम मैकाल पर्वत की अमरकंटक चोटी से होता है। यह अरब सागर में गिरने वाली प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है। नर्मदा अमरकंटक से 1057 मीटर की ऊँचाई से निकलकर एक तंग गहरी घाटी में होकर बहती है। इसके उत्तर में विन्ध्याचल और दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत श्रेणियाँ विस्तृत हैं। नर्मदा अपने मार्ग में कई बड़े खड्डों (गार्ज) से होकर बहती है। इस कारण नर्मदा पर कई बड़े जलप्रपातों का निर्माण हुआ है। जबलपुर के नीचे भेड़ाघाट की संगमरमर की चट्टानों और कपिलधारा (धुआँधार) प्रपात का दृश्य बहुत ही मनोरम दिखता है जहाँ 23 मीटर की ऊँचाई से जल गिरता है। नर्मदा में दक्षिण की ओर से बुढ़नेर,बांगर तवा और छोटी तवा तथा उत्तर की ओर से हिरन और मोरसंग नदियाँ आकर मिलती हैं। नर्मदा का निचला भाग नाव्य है। अन्त में खम्भात की खाड़ी (अरब सागर) में यह 27 किमी चौड़ा मुहाना बनाती हुई मिल जाती है। सरदार सरोवर बाँध इस नदी पर बनी प्रमुख बहुउद्देश्यीय परियाेजना है। नर्मदा एक पवित्र नदी मानी जाती है। नर्मदा की लम्बाई 1312 किलोमीटर तथा अपवाह क्षेत्र 93180 वर्ग किलाेमीटर है।
तापी नदी– यह मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में मुल्ताई नामक स्थान से 762 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। यह नर्मदा के ही समान्तर सतपुड़ा श्रेणी के दक्षिण में प्रवाहित होती हुई खम्भात की खाड़ी में गिरती है। पूरना व गिरना इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। इस नदी की लम्बाई 724 किलोमीटर और अपवाह क्षेत्र 64750 वर्ग किलोमीटर है। खंडवा–बुरहानपुर दर्रे के समीप नर्मदा व तापी एक–दूसरे के काफी समीप आ जाती हैं। यह उत्तर में सतपुड़ा श्रेणी और दक्षिण में अजंता श्रेणी के बीच विभ्रंश घाटी में बहती है। सूरत शहर के नीचे यह मुहाना बनाती है और खम्भात की खाड़ी में जा मिलती है।
साबरमती नदी– इसका उद्गम मेवाड़ की पहाड़ियों में होता है। यह अरावली केदक्षिणी ढाल को अपवाहित करती है। यह नदी एक संकीर्ण व लम्बे बेसिन में प्रवाहित होती है। गाँधीनगर (अहमदाबाद) इस नदी के किनारे स्थित सबसे बड़ा नगर है। पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली यह तीसरी बड़ी नदी है। हरनब,हाथमती,सेढ़ी,मेहना व वतरक इसकी सहायक नदियाँ हैं। इस नदी की लम्बाई 320 किलोमीटर व अपवाह क्षेत्र 21700 वर्ग किलोमीटर है। अपने प्रवाह मार्ग के अन्त में उत्तर–दक्षिण दिशा में बहती हुई यह खंभात की खाड़ी में मिल जाती है।
माही नदी उदयपुर जिले में अरावली पहाड़ियों के दक्षिणी भाग से निकलती है। दक्षिण–पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होती हुई यह डूँगरपुर और बाँसवाड़ा जिलों से गुजरती है। अन्त में मुहाना बनाते हुए खम्भात की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी लम्बाई 560 किलोमीटर है।
लूनी नदी अजमेर के निकट अरावली श्रेणी से निकलती है। इसके बायें किनारे से बांदी,सुकरी तथा जवाई नदियाँ आकर मिलती हैं। अजमेर से दक्षिण अरावली के पश्चिमी पार्श्व से निकलने वाली नदियाँ मौसमी नदियाँ होती हैं। लूनी नदी बलोतरा के नीचे खारी हो जाती है तथा दक्षिण की ओर कच्छ की दलदली भूमि (कच्छ के रन) में जाकर समाप्त हो जाती है। इस नदी की लम्बाई 320 किलोमीटर है।
बनास नदी माउंट आबू से निकलती है तथा पालमपुर होकर बहते हुए कच्छ की दलदली भूमि में जाकर मिल जाती है।
पश्चिमी घाट से पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली नदियाँ
पश्चिमी घाट का पश्चिमी ढाल अत्यन्त तीव्र है। यह श्रेणी दक्षिणी–पश्चिमी मानसूनी हवाओं को रोककर अत्यधिक वर्षा प्राप्त करता है। साथ ही पश्चिमी घाट से लगा हुआ पश्चिमी समुद्रतटीय मैदान भी अत्यन्त सँकरा है। इस धरातलीय व जलवायवीय विशेषता के कारण इस समुद्रतटीय भाग में प्रवाहित होने वाली नदियाँ छोटी व तीव्रगामी हैं। इस भाग में प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदियाँ हैं– गोआ में मांडवी,जुआरी और राचोल,कर्नाटक में काली,गंगावेली,बेड़ती,शरावती,तादरी,नेत्रवती,केरल में भरतपुषा,पेरियार व पन्नाम। ये सभी नदियाँ तेज ढाल बनाती हुई तंग घाटियों से बहती हुई जलप्रपातों का निर्माण करती हैं। शरावती नदी का जोग प्रपात 289 मीटर ऊँचा प्रसिद्ध प्रपात है। यद्यपि इस क्षेत्र में भारी वर्षा होती है लेकिन ये नदियाँ कुल अपवाह का 2 प्रतिशत भाग ही ले जाती हैं। अधिकांश नदियाँ चौड़ी संकीर्ण खाड़ियाँ (creeks) बनाती हैं। ये चौड़ी खाड़ियाँ बन्दरगाह रखने वाली हैं। इनकी सिंचाई क्षमता काफी कम है लेकिन जल विद्युत उत्पादन क्षमता बहुत अधिक है। इसी कारण यहाँ पर अनेक जल विद्युत योजनाएँ क्रियान्वित की गयी हैं।
नोट– ब्लॉग में प्रस्तुत सामग्री एवं मानचित्र भूगोल के प्रख्यात विद्वानों की पुस्तकों,विभिन्न वेबसाइटों और एटलस से लिये गये हैं।
अगला भाग ः भारत का अपवाह तंत्र-5
अन्य सम्बन्धित विवरण–
No comments:
Post a Comment