Friday, February 10, 2023

तीर्थन से वापसी

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मनुष्य जीवन एक यात्रा है। यह यात्रा अनवरत चलती रहती है जब तक कि यात्रा का माध्यम अर्थात यह शरीर विराम न ले ले। यात्रा के अवरूद्ध होने का अर्थ होता है–मृत्यु। इस दीर्घ यात्रा के मध्य अनेक छोटी छोटी यात्राएं स्वचालित रूप से गतिमान होती रहती हैं। यात्रा आनन्द का सृजन करती है,अनुभव देती है,मेल–मिलाप कराती है,अनजानी संस्कृतियों के बारे में नजदीक से जानने का अवसर प्रदान करती है। स्थायित्व नीरसता उत्पन्न करता है। रूके हुए जल पर धूल की परत जम ही जाती है। मैंने भी अपनी जीवनयात्रा का एक छोटा सा अंश आज पूर्ण कर लिया था।

Friday, February 3, 2023

बारहवाँ दिन– मनाली से तीर्थन वैली

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मनाली से बाहर निकलकर कुल्लू,भुंतर होते हुए मेरी बाइक मद्धम गति से बंजार की ओर बढ़ रही थी। मनाली की ऊँचाई समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर है जबकि कुल्लू 1300 मीटर के आस–पास है। अतः मनाली के कुछ आगे तक तो ठीक था लेकिन कुल्लू पार करने के बाद सितम्बर की गर्मी धीरे–धीरे अपना रंग दिखा रही थी। दोपहर तक तो मेरे उत्तर प्रदेश के मैदानी भागों की तरह से गर्मी महसूस होने लगी। रास्ते में कुछ भूख महसूस हुई तो एक जगह जलेबियों का नाश्ता करना पड़ा। जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूँ,दिन की यात्रा में मैंने कभी भी इतना भरपेट भोजन नहीं किया था कि शरीर में आलस्य उत्पन्न हो।

Friday, January 27, 2023

ग्यारहवाँ दिन– मनाली

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अटल सुरंग भारत की सबसे लम्बी सुरंगों में से एक है। यह मनाली को लद्दाख में लेह एवं स्पीति में काजा से जोड़ती है। इसकी लम्बाई 9.02 किलोमीटर है। यह रोहतांग दर्रे को बाईपास करती है। यह सुरंग समुद्रतल से 3100 मीटर की ऊँचाई पर बनायी गयी है। यदि यह सुरंग नहीं होती तो मुझे रोहतांग दर्रे से होकर गुजरने का सौभाग्य मिला होता। सुरंग के उत्तरी प्रवेश द्वार की अवस्थिति बहुत सुंदर है क्योंकि यह बिल्कुल चेनाब के किनारे बना हुआ है।
अटल टनल पार करने के बाद वातावरण पूरी तरह से बदल चुका था। हरे–भरे पहाड़ और ऊँचे–ऊँचे देवदार के पेड़ मन को मोह ले रहे थे। साथ ही ब्यास नदी का साथ मिलना तो मानो सोने पे सुहागा ही था। अटल टनल के बाद मनाली 24 किलोमीटर है और मनाली पहुँचने में मुझे लगभग 6 बज गये।

Friday, January 20, 2023

दसवाँ दिन– लोसर से चन्द्रताल

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आज यात्रा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिन था। यात्रा की कठिनाई का मुझे कुछ–कुछ आभास तो था लेकिन आज की यात्रा कितनी कठिन हो सकती है,इससे मैं बिल्कुल अंजान था। सामने दिख रही छोटी–छोटी चोटियों पर जमी बर्फ और ऊपर से गुनगुनी धूप,मुझे अलौकिकता का आभास दे रही थी। अपनी यात्रा का आधा से भी अधिक भाग सफलतापूर्वक पूरा कर लेने की वजह से मैं अत्यधिक रोमांचित था। स्पीति का यह वातावरण मुझे अच्छा लग रहा था। मैं महसूस कर रहा था कि वास्तव में यहाँ की जिन्दगी बहुत ही शांतिपूर्ण है। सुबह के 6 बजे लोसर का तापमान था–माइनस 1 डिग्री।

Friday, January 13, 2023

नवाँ दिन– काजा से लोसर

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देर रात तक पियक्कड़ों के प्रवचन सुनते रहने से नींद पूरी नहीं हुई थी। ऐसा इस यात्रा में पहली बार हुआ था। सुबह सिर भारी हो गया। मुझे लगा कि मैं शायद अपने क्षेत्र के कस्बों जैसे किसी कस्बे में आ गया था। काजा इस क्षेत्र के गाँवों से काफी कुछ अलग स्वभाव का है। फिर भी चलना तो था ही। सुबह उठकर पहला काम था बाइक चेक करना। आज इसने स्टार्ट होने में थोड़े से नखरे दिखाये,शायद कल की धुलाई में प्लग वगैरह में कहीं पानी प्रवेश कर गया था। चेन को टाइट करने के साथ साथ आयलिंग भी करनी थी। सुबह के 8 बजे मैं काजा से रवाना हो गया। आज का प्रारम्भिक लक्ष्‍य की मोनेस्ट्री और किब्बर गाँव होते हुए लोसर तक पहुँचना था।

Friday, January 6, 2023

हिक्किम और कोमिक

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शहर के बाशिंदे गाँव देखने के लिए गाँवों की ओर जायें तो स्वाभाविक सा लगता है। लेकिन मेरे जैसा आदमी,जिसका जन्म ही गाँव में हुआ है और जो गाँव का निवासी है,वह भी लाहौल और स्पीति के गाँवों की खाक छान रहा था। कारण साफ है। हिमालय के गाँवों और शेष भारत के गाँवों में जमीन–आसमान का फर्क है। मैदानी भागों के गाँव जहाँ भोजन और पानी के मामले में काफी कुछ समृद्ध हैं,हिमालयी गाँव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते दिखायी पड़ते हैं। और लाहौल–स्पीति के गाँव तो दुर्धर्ष परिस्थितियों में भी अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं। यह मनुष्य की अपराजेय जिजीविषा का शानदार उदाहरण है।

Friday, December 30, 2022

आठवाँ दिन– मुढ से काजा

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आज सुबह मैं जल्दी काजा के लिए निकलना चाहता था। काजा के आस–पास भ्रमण करना था और बाइक में कुछ रिपेयर भी कराना था। रात में बारिश नहीं हुई थी। सुबह तक मौसम साफ हो चुका था। छ्टिपुट बादल थे। आसमान काफी कुछ नीला दिखायी पड़ रहा था। रात में बरफ भी पड़ी थी। सामने दिख रही पहाड़ी चोटियों पर बरफ जम गयी थी। नीले आसमान की पृष्ठभूमि में नजारा अत्यन्त मनमोहक था। वैसे तो पूरी तरह धूप खिलने के बाद ही घाटी का सौन्दर्य दिखायी पड़ता लेकिन मेरे पास समय कम था। मैं जल्दी से नीचे उतरा और बाइक की तरफ भागा। मेरी इस यात्रा में यह रोज का रूटीन था। पर आज मेरी बाइक ने भी अपना रूप बदल लिया था।

Friday, December 23, 2022

पिन वैली

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मुड या मुढǃ मेरे मोबाइल के अनुसार 3836 मीटर की ऊँचाई पर बसा एक छोटा सा गाँव। मोबाइल नेटवर्क की पहुँच से दूर। जीने–खाने की जुगत में मशगूल। बाकी दुनिया में क्या हो रहा है,इससे कोई मतलब नहीं। आज मैं भी,एक दिन के लिए ही सही,इस गाँव का हिस्सा बनकर आश्चर्यचकित था। अतीत में मैंने शायद ही इस तरह की दुनिया की कल्पना कभी की होगी।
मुढ के पास गाँव के अलावा पोस्ट ऑफिस का भी दर्जा है। अब तक की यात्रा में मुझे एक बात हर जगह कॉमन दिखी थी और वो ये कि इस छोटी सी दुनिया में सब अपने काम में व्यस्त हैं,मस्त हैं।

Friday, December 16, 2022

सातवाँ दिन– ढंखर से मुढ

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आज मुझे ढंखर से चल कर मुढ तक जाना था और उसके बाद काजा तक या फिर जैसा मूड करेǃ टिप–टिप बारिश आज भी पिण्ड नहीं छोड़ने वाली थी। स्पीति वाले भी इस बारिश के चलते हैरान थे। स्पीति में इतनी बारिशǃ गया निवासी होटल मैनेजर भी हैरान था– 
ʺस्पीति में इतनी बारिश मैंने पहले नहीं देखी।ʺ 
8.30 बजे मैं मुढ के लिए रवाना हो गया। आधी–अधूरी तैयारी के साथ,मतलब कम कपड़ों में। अगले एक घण्टे के अंदर ही मुझे समझ आ गया कि मुझे पूरी तैयारी के साथ एक घण्टे पहले निकलना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो मुढ में नाश्ता करने के बाद मैं शाम तक काजा पहुँच सकता था। लेकिन ऐसी भी क्या जल्दीǃ

Friday, December 9, 2022

छठां दिन– नाको से ढंखर

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नाको का मौसम अच्छा था तो मैं सुबह जल्दी निकलने के प्रयास में था। तैयार होकर बाहर निकलने की कोशिश की तो होटल का मुख्य दरवाजा बाहर से बन्द मिला। होटल वाले का कहीं अता–पता नहीं था। एक दो बार इधर–उधर की युक्ति लगाने और सोच–विचार करने में 10 मिनट गुजर गये। ऐसी परिस्थिति में कैसी मनोदशा होती है,यह वही समझ सकता है जो ऐसी दशा से गुजरा हो। आप कमरे से बाहर निकलना चाहते हों और दरवाजा बाहर से बंद हो। मुझे घबराहट सी होने लगी। अचानक होटल वाले का नम्बर दीवार पर लिखा दिख गया। मैं नम्बर डायल करने वाला ही था कि बिचारा खुद कहीं से प्रकट हो गया।
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