Friday, June 12, 2020

भारत–चीन युद्ध-2


3 अक्टूबर को अत्यधिक सतर्कता बरतने वाले लेफ्टिनेंट जनरल उमराव सिंह को पूर्वी क्षेत्र के कोर कमाण्डर पद से हटा दिया गया और उनके स्थान पर जनरल बी.एम.कौल को कोर कमाण्डर बना दिया गया जो नेहरू और कृष्ण मेनन के विश्वासपात्र थे। जनरल कौल को कई या सम्भवतः 12 सैन्य अधिकारियों की वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए प्रमोशन दिया गया था। कौल के पास लड़ाइयों का कोई अनुभव नहीं था। कौल ने अव्यावहारिक तरीका अपनाते हुए और अन्य सैन्य कमाण्डरों की सलाह को अनदेखा करते हुए,ढोला और थागला पर कब्जा करने के लिए दो बटालियनों को मैदानी इलाके से ऊपर बुला लिया।

Friday, June 5, 2020

भारत–चीन युद्ध-1

दि्वतीय विश्व युद्ध से पूर्व चीन को "एशिया का रोगी" (The sickman of Asia) कहा जाता था। ब्रिटेन,फ्रांस,अमेरिका और जापान जैसी शक्तियों ने उसका खूब राजनीतिक और आर्थिक शोषण किया था। वे उसे पूरब का तरबूज (Chinese Melon) समझते थे। किन्तु 1949 में साम्यवादी क्रान्ति के बाद चीन का एक महाशक्ति के रूप में उदय हुआ। 1 अक्टूबर 1949 को माओत्से तुंग के नेतृत्व में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना हुई। आज की तारीख में भारत को आँखें दिखाना वाला चीन,भारत की स्वतंत्रता के समय गृहयुद्ध में उलझा हुआ था।

Friday, April 3, 2020

भारत का अपवाह तंत्र–7

 राजस्थान की झीलें–

राजस्थान राज्य का अधिकांश भाग एक अर्द्धशुष्क अथवा शुष्क मरूस्थल के रूप में है अतः यहाँ आन्तरायिक अपवाह देखने को मिलता है। अर्थात यहाँ की नदियाँ मरूस्थल के मध्य किसी गर्त या झील में समाप्त हो जाती हैं और समुद्र तक नहीं पहुँच पातीं। यहाँ की झीलें प्रायः खारे जल की होती हैं। साँभर,डीडवाना,जयसमंद,पुष्कर,राजसमंद,लूनकरनसर,उदय सागर,पिछोला,फलोदी,कछोर,फतेह सागर आदि यहाँ की प्रमुख झीलें हैं। 

Friday, March 27, 2020

भारत का अपवाह तंत्र–6

भारत की झीलें

प्राकृतिक रूप से निर्मित जलपूर्ण गर्त को झील कहते हैं। भारत में झीलों की संख्या अधिक नहीं है। भारत के हिमालयी क्षेत्र में अन्य पर्वतीय प्रदेशों के तुलना में कम झीलें पायी जाती हैं। झीलों का निर्माण अनेक कारणों से होता है। भारत की झीलें निम्न वर्गों में रखी जा सकती हैं–
1. विवर्तनिक झीलें– पृथ्वी के भीतर भूगर्भिक क्रियाएँ होने से भूपटल में भ्रंश या दरारें उत्पन्न हो जाती हैं और गर्ताें का निर्माण हो जाता है। इन गर्ताें में जल भर जाने पर विवर्तनिक झीलों का निर्माण होता है। उत्तराखण्ड के कुमाऊँ तथा कश्मीर में इस तरह की कई झीलें पायी जाती हैं। कश्मीर की वूलर तथा उत्तराखण्ड की नैनीताल,भीमताल,नौकुचियाताल ऐसी ही झीलें हैं।

Friday, March 20, 2020

भारत का अपवाह तंत्र–5

4. ब्रह्मपुत्र नदी क्रम–

ब्रह्मपुत्र नदी को ब्रह्मा का पुत्र कहा जाता है। यह गंगा में मिलने वाली नदियों में सबसे बड़ी नदी है। तिब्बत में इसे सांग्पो के नाम से जाना जाता है। दक्षिणी–पश्चिमी तिब्बत में मानसरोवर झील और कैलाश पर्वत के पूर्व में इसका उद्गम होता है तथा दक्षिण तिब्बत में पश्चिम से पूर्व की 1290 किलोमीटर प्रवाहित होने के बाद यह असम हिमालय को पार करती है। नमचा बरवा पर्वत शिखर के निकट दक्षिण की ओर मुड़कर यह अरूणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। ब्रह्मपुत्र जिस स्थान पर हिमालय को काटती है वहाँ इसे दिहांग कहते हैं। यहाँ से आगे यह पश्चिम की ओर असम घाटी में बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश कर जाती है। मेघालय पठार के कारण यह दक्षिण की ओर घूमकर बांग्लादेश में प्रवेश करती है।

Friday, March 13, 2020

भारत का अपवाह तंत्र–4

3. प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ

प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ उत्तर भारत की अपेक्षा छोटी हैं तथा संख्या में कम हैं। नदियों में पानी की मात्रा भी वर्षा पर निर्भर करती है। वर्षा के दिनों में इन नदियों में पानी अधिक रहता है जबकि शुष्क दिनों में पानी काफी कम हो जाता है। प्रायद्वीपीय भारत का धरातल पठारी व चट्टानी है,इसलिए नदियों का पानी सोखता नहीं है और थोड़ी सी भी वर्षा होने पर पानी की मात्रा बढ़ जाती है और कभी कभी अचानक बाढ़ भी आ जाती है। ये नदियाँ कम गहरी हैं,इसलिए नाव्य भी नहीं हैं। इन नदियों की घाटियाँ चौड़ी हैं और इनकी अपरदन की शक्ति समाप्तप्राय हो चुकी है। यहाँ की अधिकांश नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं,कुछ अरब सागर और कुछ उत्तरी विशाल मैदान की ओर बहते हुए गंगा और उसकी सहायक नदियों में मिल जाती हैं। कुछ नदियाँ अरावली की पहाड़ियों और मध्यवर्ती पहाड़ी प्रदेश से निकलकर कच्छ के रन अथवा खम्भात की खाड़ी में गिर जाती हैं।

Friday, March 6, 2020

भारत का अपवाह तंत्र-3

 
2. गंगा नदी तंत्र–

गंगा नदी तंत्र भारत सबसे बड़ा नदी तंत्र है। यह देश के लगभग एक–चौथाई भाग को जल प्रदान करता है। यहाँ भारत की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इस नदी तंत्र का निर्माण हिमालय तथा प्रायद्वीपीय उच्च भागों से निकलने वाली नदियों के मिलने से होता है।

गंगा नदी– गंगा का उद्गम उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में माणा दर्रे के निकट गोमुख हिमनद (4023 मीटर) से होता है। यहाँ इसका नाम भागीरथी है जो महान हिमालय और मध्य हिमालय में संकीर्ण महाखड्डों (गार्ज) का निर्माण करते हुए आगे बढ़ती है। देवप्रयाग में सतोपंथ हिमनद से निकलने वाली अलकनंदा से इसका संगम होता है और यहीं से इसका नाम गंगा हो जाता है।

Friday, February 28, 2020

भारत का अपवाह तंत्र-2

उत्तर भारत की नदियाँ

शिवालिक पहाड़ियों के उत्थान के फलस्वरूप उत्तर भारत का अपवाह तंत्र तीन प्रमुख भागों में विभक्त हो गया–
1. सिन्धु नदी तंत्र
2. गंगा नदी तंत्र
3. ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र

1. सिन्धु नदी तंत्र–

सिन्धु नदी तंत्र विश्व के सबसे बड़े अपवाह तंत्रों में से एक है। सिन्धु,झेलम,चिनाब,रावी,व्यास,सतलज इत्यादि इसकी प्रमुख नदियाँ हैं।
सिन्धु नदी– भारतीय उपमहाद्वीप में सिन्धु नदी तंत्र सबसे पश्चिमी नदी तंत्र है। लद्दाख श्रेणी के उत्तरी भाग में,कैलाश चोटी के दूसरी ओर 5000 मीटर की ऊँचाई से,बोखर चू हिमनद से इस नदी का उद्गम होता है।

Friday, February 21, 2020

भारत का अपवाह तंत्र-1

 
किसी भू–भाग का जल–प्रवाह,उस भू–भाग की वर्षा की प्रकृति एवं मात्रा,उच्चावच्च के स्वरूप एवं व्यवस्था का परिचायक होता है। जल–प्रवाह के वैसे तो कई स्रोत हो सकते हैं लेकिन नदियाँ जल–प्रवाह का प्रमुख स्रोत होती हैं। नदियों का जल प्रवाह न केवल सम्बन्धित क्षेत्र के प्राकृतिक स्वरूप को गढ़ता है वरन मानव के जीवन यापन एवं उसके क्षेत्रीय प्रतिरूप को भी प्रभावित करता है। नदियों का बहता हुआ जल सम्पूर्ण विश्व में प्रारम्भिक प्राकृतिक स्वरूप को परिवर्तित करने का सबसे बड़ा कारक है। अपने अपरदन,परिवहन और निक्षेपण सम्बन्धी कार्याें के द्वारा नदियाँ विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण करती हैं। जीव जगत को अपने जल के द्वारा जीवन प्रदान करती हैं और साथ ही मैदानों का निर्माण कर मनुष्य के आवास और कृषि के लिए साधन भी प्रदान करती हैं।

Friday, February 14, 2020

भारत की भूगर्भिक संरचना (4)

क्वाटर्नरी समूह की शैलें– इसके अन्तर्गत प्लीस्टोसीन तथा वर्तमान काल (होलोसीन) में निर्मित शैलों को सम्मिलित किया जाता है। इन दोनों कालों के आधार पर इस समूह की शैलों को दो भागों में बाँटा जाता है–

(i) प्लीस्टोसीन क्रम की शैलें– क्वाटर्नरी युग का आरम्भ व्यापक हिमावरण के साथ हुआ। इस कारण मौसम अत्यन्त ठण्डा हो गया। पृथ्वी के कई भागों में हिमनदों का विस्तार हो गया। तापमान में अधिक गिरावट के कारण बहुत से प्राणियों का अन्त हो गया और बहुत सारे अपेक्षाकृत गर्म क्षेत्रों में प्रवास कर गए। हिमालय के निचले प्रदेशों में भी हिमानियों का विस्तार हो गया। इसके निशान हिमालय में मिलते हैं। हिमानियों द्वारा किये गए निक्षेपों,जिन्हें हिमोढ़ कहते हैं,के कारण झीलों का निर्माण हो गया।

Friday, February 7, 2020

भारत की भूगर्भिक संरचना (3)

आर्यन कल्प की शैलें

इस समूह में ऊपरी कार्बोनिफेरस काल से लेकर प्लीस्टोसीन काल की शैलों को सम्मिलित किया जाता है। इस काल में भारत के भूगर्भिक स्वरूप में भारी उथल–पुथल हुई। भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत श्रेणी और उत्तर के विशाल मैदान का निर्माण इसी अवधि में हुआ। इस समूह की चट्टानों को चार प्रमुख भागों में बाँटा जाता है–
1. गोण्डवाना समूह की शैलें
2. क्रीटैशियस समूह की शैलें या दकन ट्रैप्स
3. टर्शियरी समूह की शैलें
4. क्वाटर्नरी समूह की शैलें

Friday, January 31, 2020

भारत की भूगर्भिक संरचना (2)

पुराण कल्प की शैलें
धारवाड़ समूह की चट्टानों के निर्माण के पश्चात,एक लम्बे समयान्तराल के बाद इस समूह की चट्टानों का निर्माण हुआ। इस दीर्घकाल में अनेक भूगर्भिक हलचलें हुईं जिससे दो संस्तरों में ये शैलें मिलती हैं। इनमें सबसे नीचे कुडप्पा समूह और ऊपरी भागों में विंध्यन समूह की शैलें पाई जाती हैं।

(1) कुडप्पा समूह की शैलें– कुडप्पा समूह की शैलें आर्कियन और धारवाड़ शैलों के ऊपर असम्बद्ध रूप में,विभिन्न मोटाई की,अनेक समानान्तर प्राचीन अवसादी शैलों के रूप में स्थित हैं। इनका नामकरण आन्ध्र प्रदेश के कुडप्पा जिले के नाम पर हुआ है जहाँ ये एक विस्तृत अर्द्ध–चन्द्राकार क्षेत्र में फैली हुई हैं। यहाँ ये 6000 मीटर से भी अधिक मोटी हैं।

Friday, January 24, 2020

भारत की भूगर्भिक संरचना (1)

पृथ्वी पर स्थित किसी भी भाग की भूगर्भिक संरचना से हमें कई तथ्यों की जानकारी प्राप्त होती है। क्योंकि शैलों या चट्टानों की संरचना का मृदाओं और खनिज संसाधनों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। किसी देश की कृषि और उद्योग भी शैलों की संरचना पर आधारित होते हैं। उदाहरण के लिए तलछटों के जमाव से निर्मित अवसादी शैलोें का अपरदन कर जब नदियाँ किसी मैदानी भाग का निर्माण करती हैं तो ऐसी भूमि कृषि के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है। जबकि कठाेर प्राचीन शैलों,जिनमें जीवावशेष नहीं पाए जाते,से निर्मित मृदा कृषि के लिए अनुपयोगी होती है।

Friday, January 17, 2020

तटीय मैदान और द्वीप समूह (2)

भारत के द्वीप समूह

भारत में कुल 247 द्वीप पाए जाते हैं जिनमें से 204 बंगाल की खाड़ी और 43 अरब सागर में मिलते हैं। अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी का सर्वप्रमुख द्वीप समूह है जो विवर्तनिक या ज्वालामुखी क्रियाओं से बने हैं। इनकी समु्द्रतल से ऊॅंचाई 750 मीटर तक पाई जाती है। बंगाल की खाड़ी के द्वीप इसी प्रक्रिया से बने हैं जबकि अरब सागर के द्वीप प्रवाल या मूँगे की चट्टानों से निर्मित हैं। इन द्वीपों में से कुछ द्वीप तट के निकट पाए जाते हैं जबकि कुछ तट से काफी दूर पाए जाते हैं। तट से 1 से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित द्वीपों को निकटवर्ती द्वीप की श्रेणी में रखा जाता है जबकि 5 किलामीटर से अधिक दूरी पर स्थित द्वीपों को सुदूरवर्ती द्वीप की श्रेणी में रखा जाता है।

Friday, January 10, 2020

तटीय मैदान और द्वीप समूह (1)

भारत के प्रायद्वीपीय पठार के दोनों तरफ सँकरे मैदानी भाग पाए जाते हैं। अरब सागर की ओर स्थित मैदान को पश्चिमी तटीय मैदान तथा बंगाल की खाड़ी की ओर स्थित मैदानी भाग को पूर्वी तटीय मैदान कहा जाता है। इन मैदानों और अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी में अवस्थित द्वीप समूहों का भूगोल में एक साथ अध्ययन किया जाता है। इन सभी को सम्मिलित करते हुए भारत की सम्पूर्ण तट रेखा की लम्बाई 7517 किलोमीटर है। माना जाता है कि पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट के कुछ भागों का बंगाल की खाड़ी और अरब सागर की ओर अवतलन या धँसाव हो गया जिससे घाटों के किनारे कगार की भाँति खड़े हो गए।

Friday, January 3, 2020

उत्तरी मैदानी प्रदेश (3)

ब्रह्मपुत्र का मैदान– इसे असम या ब्रह्मपुत्र घाटी  के नाम से भी जाना जाता है। यह मेघालय के पठार और हिमालय श्रेणियों के मध्य लम्बे और सँकरे मैदान के रूप में फैला हुआ है। इस मैदान के उत्तर में शिवालिक की पहाड़ियाँ,दक्षिण में गारो,खासी,जयन्तिया व मिकिर की पहाड़ियाँ और पूर्व में पटकोई और नागा पहाड़ियाँ सीमा बनाती हैं। ब्रह्मपुत्र नदी इसके लगभग बीचोबीच से होकर अत्यधिक चौड़ाई में प्रवाहित होती है। मानसून में कभी–कभी तो ब्रह्मपुत्र की चौड़ाई बढ़कर 8 किलोमीटर तक हो जाती है जिससे इसे पार करना अत्यन्त कठिन हो जाता है।
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