Friday, November 15, 2019

उत्तरी पर्वतीय भाग (2)

ट्रांस हिमालय या तिब्बत हिमालय– महान हिमालय के उत्तर में,इसी के समानान्तर कई श्रेणियाँ पायी जाती हैं। इन्हें सम्मिलित रूप से ट्रांस हिमालय  या तिब्बत हिमालय कहा जाता है। यह श्रेणी पश्चिम से पूर्व तक 960 किलोमीटर की लम्बाई में विस्तृत है। पूर्वी तथा पश्चिमी किनारों पर इसकी चौड़ाई 40 किलोमीटर है जबकि मध्य भाग में यह 225 किलोमीटर चौड़ी है। इस श्रेणी की औसत ऊँचाई 3100 से 3700 मीटर है। इस श्रेणी के अन्तर्गत जास्कर,लद्दाख,कैलाश और काराकोरम श्रेणियाँ आती हैं। सिन्धु,सतलज और ब्रह्मपुत्र नदियों का उद्गम ट्रांस हिमालय श्रेणियों में ही होता है।
जास्कर श्रेणी– कश्मीर में महान हिमालय के उत्तर व उसके समानान्तर जास्कर श्रेणी स्थित है। इसका प्रमुख शिखर कामेत (7756 मीटर) है। जास्कर श्रेणी के उत्तर में,अर्थात जास्कर व लद्दाख श्रेणियों के मध्य,सिन्धु नदी एक गहरी और सँकरी घाटी में प्रवाहित होती है। इन दोनों श्रेणियों के बीच यह घाटी 560 किलोमीटर लम्बी और 10 किलोमीटर चौड़ी है। मानचित्र में देखने पर सिन्धु नदी का प्रवाह एक आम भारतीय की नजर में,अन्य हिमालयी नदियों की तुलना में कुछ अजीब सा दिखता है क्योंकि यह अन्य भारतीय नदियों की विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है। लेकिन इस क्षेत्र का ढाल ही ऐसा है कि ये नदियाँ दक्षिण–पूर्व की ओर से उत्तर–पश्चिम की ओर प्रवाहित होतीे हैं। सिन्धु नदी द्वारा इस क्षेत्र में निर्मित एक भूदृश्य अत्यंत आश्चर्यजनक है। जब यह बुंजी  नामक स्थान पर हिमालय को काटकर आर–पार प्रवाहित होती है तो 5200 मीटर गहरे गार्ज का निर्माण होता है। गार्ज नदी द्वारा निर्मित एक बहुत ही गहरी घाटी होती है जो अत्यंत सँकरी होती है। जास्कर नदी भी जास्कर श्रेणी को काटकर इसके आर–पार,उत्तर दिशा में प्रवाहित होती हुई सिन्धु नदी में मिल जाती है। जास्कर श्रेणी में कई दर्रे हैं जिनमें धर्म (5486 मीटर),कुंगड़ी–बिंगड़ी (5486 मीटर),शालशल (4936 मीटर) प्रमुख हैं। सिन्धु की सहायक नदी श्योक,लद्दाख श्रेणी के उत्तर में प्रवाहित होती है और इसे काटकर दक्षिण की ओर सिन्धु नदी में मिल जाती है।

लद्दाख श्रेणी– जास्कर श्रेणी के उत्तर में लद्दाख श्रेणी विस्तृत है जो 350 किलोमीटर लम्बी और 50 किलोमीटर चौड़ी है। इसकी औसत ऊँचाई 4500 मीटर है। इसकी 9 चोटियाँ 6000 मीटर से अधिक ऊँची हैं तथा 15 चोटियाँ 5000 मीटर से 6000 मीटर के बीच ऊँची हैं। यह जास्कर के समानान्तर ही फैली हुई है। इस श्रेणी का विस्तार कश्मीर के बल्तिस्तान में सिन्धु और श्योक नदियों के संगम से लेकर तिब्बत की पश्चिमी सीमा तक है। यह श्रेणी नेपाल और तिब्बत के मध्य जल विभाजक का कार्य करती है। इस श्रेणी के प्रमुख शिखर रकापोशी (7888 मीटर),हरामोश (7397 मीटर) और गुरला मान्धाता (7728 मीटर) हैं। इस श्रेणी को कई स्थानों पर पार किया जा सकता है। सतलज नदी एक दर्रे से होकर इस श्रेणी को पार करती है। लद्दाख श्रेणी में चांगला (5360 मीटर),चोरबाटला व खारदुंगला (5359 मीटर) नामक काफी ऊँचे दर्रे पाए जाते हैं। इस श्रेणी के दक्षिण में सिन्धु तथा उत्तर में श्याेक नदी प्रवाहित होती है।

कैलाश श्रेणी– लद्दाख श्रेणी के पूर्व की ओर कैलाश श्रेणी फैली हुई है जिसका विस्तार मुख्यतः तिब्बती क्षेत्र पर है। इस श्रेणी का प्रमुख शिखर कैलाश (6706 मीटर) है।

काराकोरम श्रेणी– लद्दाख श्रेणी के उत्तर में काराकोरम श्रेणी फैली हुई है। यह तिब्बत के पठार की रीढ़ कहलाती है। काराकोरम श्रेणी पश्चिम में पामीर की गाँठ कहे जाने वाले भाग में मिल जाती है जबकि दक्षिण–पूर्व की ओर यह तिब्बत की कैलाश श्रेणी में मिल जाती है। यह श्रेणी हिन्दुकुश श्रेणी के ही क्रम में पश्चिम से पूर्व की ओर विस्तृत है। यह पश्चिम में हुंजा नदी से लेकर पूर्व में श्योक नदी तक 400 किलोमीटर की लम्बाई में विस्तृत है। यह श्रेणी मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के मध्य जल–विभाजक का कार्य करती है। इस श्रेणी की 23 चोटियाँ 7500 मीटर से भी अधिक ऊँची हैं। इसके प्रमुख शिखर के–2 (गाडविन आस्टिन,8611 मीटर),ग्राशेर ब्रुम (8070 मीटर),मशेर ब्रुम (7821 मीटर),हिडन (8068 मीटर),ब्रोड पीक (8047 मीटर) इत्यादि हैं। के–2 विश्व की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है। 4720 मीटर की ऊँचाई पर हुंजा नदी इस श्रेणी को पार करती है और यह स्थान मध्य एशिया की ओर जाने के लिए एक अच्छा दर्रा है। काराकोरम के दक्षिण में अलिंग–कांगड़ी  नामक एक और छोटी श्रेणी पायी जाती है। काराकोरम श्रेणी में हिस्पर,बाल्टोरो,बियाफो,सियाचिन जैसे कई बड़े हिमनद पाये जाते हैं। यह श्रेणी प्रायः हिमाच्छादित रहती है। काराकोरम श्रेणी में मरपो ला,अघिल,शक्सगाम,कराताघ,काराकोरम,ससेर ला इत्यादि दर्रे भी मिलते हैं।

अक्साई चिन– यह काराकोरम और क्युनलुन पर्वत श्रेणियों के मध्य एक समप्राय मैदानी प्रदेश है। इसे भूगोल की भाषा में अन्तर्पर्वतीय पठार भी कहा जाता है। यह कश्मीर के उत्तरी–पूर्वी भाग पर फैला है। इसकी औसत ऊँचाई 4500 मीटर तक है लेकिन यहाँ फैले टीले 6000 मीटर से भी अधिक ऊँचे हैं। यह मैदान हिम कटाव से काफी प्रभावित रहा है। यहाँ खारे पानी की अनेक झीलें भी मिलती हैं। देपसांग का उच्च एवं समतल पठारी भाग भी इसी प्रदेश में अवस्थित है।


तिब्बत का पठार– भारत की सीमा के उत्तर में तिब्बत का विशाल पठार स्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 4000 मीटर है। इस पठार पर दोमट और लोयस मिटि्टयों का विस्तार पाया जाता है। इस क्षेत्र में अनेक झीलें पायी जाती हैं। हिमालय के वृष्टि छाया क्षेत्र में अवस्थित होने के कारण हिन्द महासागर की आर्द्र पवनें यहाँ तक नहीं पहुँच पातीं और इस कारण यह शुष्क ही रह जाता है। इस पठार की दक्षिणी और पूर्वी सीमाओं पर स्थित पर्वतमालाओं में भारत और दक्षिणी–पूर्वी एशिया के देशों में प्रवाहित होने वाली अनेक बड़ी नदियाें के उद्गम हैं।

तिब्बत के पठार के दक्षिण–पश्चिम की ओर भारत के कश्मीर राज्य में लद्दाख का पठार स्थित है। यह पठार अनेक पर्वतों व मैदानों के रूप में कटा–फटा मिलता है।
हिमालय के उपर्युक्त श्रेणीकरण के अतिरिक्त इसे क्षेत्रीय या प्रादेशिक रूप में भी वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्गीकरण के अनुसार इसके चार विभाग हैं–
1. पंजाब हिमालय
2. कुमायूँ हिमालय
3. नेपाल हिमालय
4. असम हिमालय
पंजाब हिमालय– सिन्धु नदी से लेकर सतलज नदी के बीच,560 किलोमीटर की लम्बाई में फैले हिमालय के भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है। जम्मू और कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश राज्यों में इसका विस्तार है। इसके अन्तर्गत पीर पंजाल,धौलाधार,जास्कर,लद्दाख और काराकोरम श्रेणियां सम्मिलित हैं। सतलज नदी से पश्चिम की ओर श्रेणियों की ऊँचाई कम होती जाती है। टाटाकुटी,ब्रह्मासकल जैसे कुछ शिखर 6000 मीटर से भी अधिक ऊँचे हैं। हिमालय के इस भाग को सिन्धु और सतलज के अलावा कोई भी नदी पार नहीं करती। इन श्रेणियों के उत्तरी ढाल वृष्टि छाया क्षेत्र में पड़ने के कारण निर्जन,उजाड़ व शुष्क हैं जिनके मध्य में पठार व कुछ झीलें पायी जाती हैं। दक्षिणी ढाल अत्यन्त अपरदित,तीव्र ढाल वाले,आर्द्र तथा सघन रूप से वनाच्छादित हैं। आर्द्रता की मात्रा कम होने के कारण हिमरेखा अधिक ऊँचाई पर पायी जाती है।

कुमायूँ हिमालय– सतलज नदी से काली नदी के मध्य 320 किलोमीटर की लम्बाई में फैले पर्वतीय प्रदेश को कुमायूँ हिमालय के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र उत्तराखण्ड राज्य में फैला हुआ है। इसका पश्चिमी भाग गढ़वाल हिमालय और पूर्वी भाग कुमायूँ हिमालय के नाम से जाना जाता है। हिमालय का यह भाग पंजाब हिमालय की अपेक्षा अधिक ऊँचा है। इस भाग की प्रमुख चोटियाँ बद्रीनाथ,केदारनाथ,त्रिशूल,माना,गंगोत्री,नंदादेवी,कामेत इत्यादि हैं। नंदादेवी इस भाग का सर्वोच्च शिखर है। कामेत शिखर के पास से महान हिमालय की कई भुजाएँ दक्षिण की ओर फैली हुई हैं। बद्रीनाथ शिखर ऐसी ही एक भुजा पर अवस्थित है। पूर्व की ओर कुछ और भुजाएँ निकली हैं जिनपर नंदा देवी और त्रिशूल स्थित हैं। इन्हीं श्रेणियों से यमुना,भागीरथी और अलकनंदा की उत्पत्ति होती है जो मध्य हिमालय की श्रेणियों को काटती हुई दक्षिण की ओर प्रवाहित होती हैं। इस भाग में आरम्भ में बहुत सारी झीलों का अस्तित्व रहा है जिनके सूखने से उर्वर मैदानों की रचना हुई है।

नेपाल हिमालय– इस भाग का विस्तार काली नदी से लेकर तिस्ता नदी के मध्य 800 किलोमीटर की लम्बाई में है। यह हिमालय का सबसे ऊँचा भाग है और हिमालय की सबसे ऊँची चोटियाँ इसी भाग में पायी जाती हैं। कंचनजंघा,मकालू,अन्नपूर्णा,एवरेस्ट,धौलागिरि आदि शिखर इसी भाग में पाये जाते हैं। नेपाल हिमालय में भी हिमालय की तीनों श्रेणियाँ समानान्तर चलती हैं लेकिन पूर्वी भाग में शिवालिक श्रेणियाँ मध्य हिमालय के बिल्कुल पास आ जाती हैं। इस भाग में महान हिमालय और लघु हिमालय के बीच धँसा हुआ भ्रंश तल मिलता है जिसके सहारे गण्डक और उसकी सहायक नदियाँ लम्बायत रूप में प्रवाहित होती हैं। ये सभी नदियाँ एक स्थान पर मध्य हिमालय को गहरे गार्ज द्वारा काटते हुए मैदानी भाग में प्रवेश करती हैं। नेपाल में मध्य हिमालय का दक्षिणी ढाल कगार की तरह खड़ा है। इस श्रेणी को यहाँ महाभारत लेख  के नाम से जाना जाता है। काठमाण्डू घाटी मध्य हिमालय और महान हिमालय के मध्य में अवस्थित है। ऊँचाई वाले भागों में अत्यधिक कटाव के कारण वनस्पति का अभाव मिलता है लेकिन कम ऊँचाई वाले भागों में सघन कोणधारी वन पाये जाते हैं।

असम हिमालय– इस भाग का विस्तार तिस्ता नदी से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी तक 750 किलोमीटर की लम्बाई में है। यह श्रेणी नेपाल हिमालय की अपेक्षा नीची है तथा सिक्किम,असम,अरूणाचल प्रदेश राज्यों और भूटान में फैली हुई है। इस श्रेणी का ढाल मैदान की ओर काफी तीव्र है जो पूर्व से पश्चिम की ओर कम होता जाता है। तीव्र ढाल की वजह से इस भाग के पर्वत मैदान से एकदम ऊपर उठे हुए लगते हैं। इस भाग में लघु हिमालय या शिवालिक श्रेणी अत्यंत सँकरी हो गयी है और मध्य हिमालय श्रेणी से बिल्कुल सटी हुई है। इस भाग के प्रमुख शिखर कुला कांगड़ी (7539 मीटर),चोमोलहरी (7314 मीटर),काबरू,पौहुनी और ब्रह्मपुत्र गार्ज के पास नामचा बरवा (7756 मीटर) हैं। प्रमुख नदियाँ दिवांग,दिहांग,लोहित तथा ब्रह्मपुत्र हैं। इस भाग में अधिक वर्षा के कारण तीव्र अपरदन होता है।

हिमालय के मोड़



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