Friday, December 29, 2017

ओरछा–जीवित किंवदन्ती

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जब मैं ओरछा पहुँचा तो अभी अंधेरा होने में काफी समय था। ऑटो स्टैण्ड बिल्कुल ओरछा के मुख्य चौराहे के पास ही है जहाँ से पूरब की ओर ओरछा का किला और पश्चिम की ओर चतुर्भुज मन्दिर बिल्कुल पास ही दिखता है। रामराजा मन्दिर भी पास ही है। कमरा ढूँढ़ने में मैंने कुछ तेजी दिखायी ताकि समय का सदुपयोग करते हुए शाम के समय भी ओरछा का कुछ दृश्यावलोकन किया जा सके। ओरछा के प्रसिद्ध रामराजा मन्दिर के गेट के पास ही होटल में मैंने कमरा बुक कर लिया। कमरा लेकर मैं अन्दर चला गया। फिर जब 10 मिनट बाद बाहर जाने के लिए निकला तो होटल के काउण्टर पर एक नया लड़का बैठा हुआ था।

Friday, December 22, 2017

देवगढ़–स्वर्णयुग का अवशेष

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चौथा दिन–
मेरी इस यात्रा का यह चौथा दिन था। कल शाम को चन्देरी से वापस आकर जब मैं ललितपुर में रूका तो लग नहीं रहा था कि मैं कहीं किसी दूसरे शहर में हूँ। उत्तर प्रदेश के किसी छोटे शहर जैसा,जिसे अभी अत्यधिक भीड़भाड़ और व्यस्तता ने अपनी चपेट में नहीं लिया है। जिला मुख्यालय है लेकिन रोडवेज का बस स्टेशन अभी बन रहा है। बड़ी–बड़ी ट्रेनें गुजरती हैं लेकिन रेलवे स्टेशन अभी छोटा सा ही है। बचपन में उत्तर प्रदेश का नक्शा कहीं देखता था तो मन में सवाल उठता था कि ये ललितपुर और मिर्जापुर जिले नीचे लटके हुए से क्याें हैं। चारों ओर से मध्य प्रदेश से घिरे हुआ ललितपुर की लोकेशन ऐसी है कि किसी भी तरफ निकलिए मोबाइल रोमिंग में हो जाता है। आज मैं उसी ललितपुर जिले में उपस्थित था।

Friday, December 15, 2017

चन्देरी–इतिहास के झरोखे से (दूसरा भाग)

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कौशक महल– चन्देरी स्टैण्ड से सबसे पहले हम लगभग 4 किलोमीटर दूर कौशक महल पहुँचे। यह मुंगावली और ईसागढ़ जाने वाले मार्ग पर स्थित है। कौशक महल का स्थापत्य विशिष्ट है। इसका निर्माण पन्द्रहवीं सदी में मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी प्रथम ने जौनपुर विजय के उपलक्ष्‍य में कराया था। यह महल धन (+) के आकार में चार बराबर खण्डों में बँटा दिखाई देता है। कहते हैं कि यह एक सात मंजिला इमारत थी लेकिन इसके स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। अफगान शैली में निर्मित इस महल की वर्तमान में तीन पूर्ण मंजिलें हैं तथा चौथी अपूर्ण है। प्रत्येक मंजिल में बाहर की ओर बालकनी व खिड़कियां बनी हुईं हैं। इनके मध्य में मेहराबदार द्वार हैं।

Friday, December 8, 2017

चन्देरी–इतिहास के झरोखे से


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दूसरा दिन–
चन्देरी का इतिहास– चन्देरी का इतिहास प्राचीन होने के साथ साथ गौरवशाली भी है। ये अलग बात है कि इसकी तरफ ध्यान कम ही लोगों का जाता है। प्राचीन महाकाव्य काल में यह चेदि नाम से विख्यात था जहां का राजा शिशुपाल था। ईसा पूर्व छठीं शताब्दी में प्रसिद्ध सोलह महाजनपदों में से चेदि या चन्देरी भी एक था। तत्कालीन चेदि राज्य काे वर्तमान में सम्भवतः बूढ़ी चन्देरी के नाम से जाना जाता है जो वर्तमान चन्देरी के 18 किमी उत्तर–पश्चिम में अवस्थित है। बूढ़ी चन्देरी में बहुत से बिखरे मंदिर,शिलालेख व मूर्तियों के अवशेष पाये जाते हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि यह प्राचीन काल में निश्चित रूप से कोई ऐतिहासिक नगर रहा होगा जो कालान्तर में घने जंगल में विलीन हो गया।

Friday, December 1, 2017

चन्देरी की ओर

झरोखे से झांकना कितना आनन्ददायक लगता होगाǃ
यह झरोखे में बैठकर बाहर निहारती हुई किसी सुन्दरी को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे ही मुझे भी एक दिन झरोखे में से बाहर निहारने की इच्छा हुई और वह भी किसी ऐसे–वैसे झरोखे से नहीं वरन इतिहास के झरोखे से।
तो निकल पड़ा मध्य प्रदेश के कुछ गुमनाम से शहरों  की गलियों में।
शायद मुझे भी कोई झरोखा मिल जाय।
जी हाँ गलियों में और वो भी अकेले। पीठ पर बैग लादे सितम्बर के अन्तिम सप्ताह की चिलचिलाती धूप से बातें करते हुए मैं चल पड़ा–
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