दिन के 2 बज रहे थे। नाहरगढ़ का किला फतह होने के बाद अब जयगढ़ की बारी थी। आज इन्द्रदेव मेरे ऊपर प्रसन्न थे ही। आमेर और नाहरगढ़ के बीच उन्होंने मुझे अपने प्रेमरस से सराबोर कर दिया था और संभावना लग रही थी कि अब मुझ पर सोम–रस भी बरसाएंगे। जयगढ़ किले के बाहरी गेट के बाहर ही,मैंने बिना पर्ची के बाइक खड़ी कर दी और अन्दर प्रवेश कर गया। हेलमेट कुछ–कुछ भीग गया था तो उसे उल्टा करके बाइक के हैण्डल में लटका दिया क्योंकि धूप खिलने के आसार नजर आ रहे थे। जयपुर शहर की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों को दिखाने वाले मेरे कॉम्बो टिकट में जयगढ़ शामिल नहीं था। इसी धरती पर बसी हुई काशी नगरी,जिस तरह से इस धरती से अलग शिव के त्रिशूल पर बसी हुई मानी जाती है,संभवतः उसी तरह से यह किला भी भारतीय पुरातत्व विभाग के कॉम्बो टिकट के अधिकार क्षेत्र से बाहर था।
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Friday, September 21, 2018
Friday, September 14, 2018
आमेर से नाहरगढ़
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11.30 बज रहे थे। तेज धूप में आमेर महल की चढ़ाई–उतराई ने शरीर का पानी सोख लिया था। उस जमाने के राजे–महाराजे कैसे महल में आते–जाते होंगे,सो तो वही जाने। शायद छत्र लगाने और हवा करने के लिए भी सेवक लगे रहते थे। पर अपनी किस्मत में यह सब कहाँǃ तो फिर बाहर निकल कर पहले मिल्क शेक के ठेले पर शरीर की जलापूर्ति बहाल की और फिर बाइक लेकर जयगढ़ और नाहरगढ़ के रास्ते पर निकल पड़ा।
आमेर से वापस जयपुर की ओर लगभग 2 किमी चलने पर एक त्रिमुहानी से दाहिने एक सड़क जयगढ़ व नाहरगढ़ की ओर निकलती है।
Friday, September 7, 2018
जयपुर–गुलाबी शहर में
गुलाबी इसलिए नहीं कि वहाँ गुलाबों की खेती होती है वरन गुलाबी इसलिए कि वहाँ के दर–ओ–दीवार का रंग गुलाबी है। जी हाँ,रेगिस्तान का प्रवेश द्वार गुलाबी ही तो है। और रेगिस्तान भी कितना हरा–भराǃ आश्चर्य है। क्योंकि मुझे तो हरा–भरा ही दिखाई पड़ा। अगस्त के महीने में जयपुर के अास–पास की धरती इतनी हरी–भरी थी कि मैंने सोचा भी न था। वैसे तो जेठ की भीषण गर्मी के बाद बरसात,रेगिस्तान तो क्या,पत्थर को भी नर्मदिल बना देती है। गुलाबी नगरी इस समय हरियाली से घिरी हुई थी। तो फिर राजघरानों की शान–ओ–शौकत के साथ मौसम की नजाकतों का लुत्फ उठाने मैं जयपुर की ओर निकल पड़ा।
Friday, June 29, 2018
धार–तलवार की धार पर
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माण्डव से धार के लिए बस रवाना हुई तो मैं माण्डव की वादियों में खो गया। माण्डव मुझे कुछ वैसे स्थानों में से एक लगा जहाँ चले जाने के बाद वापस लौटने का मन नहीं करता। लेकिन यह तो यात्रा का एक पड़ाव था। और यात्रा तो अनवरत–अविराम चलती रहती है। इस अनन्त यात्रा का एक छोटा सा हिस्सा अभी गुजरा था– कुछ ऐसी यादों को लिए हुए जो बार–बार दोहराए जाने की जिद करती हैं। लेकिन ऐसी यादों के साथ जीने की तो आदत पड़ चुकी है। तो फिर ऐसी ही मनोदशा में मैं बस में बैठा खिड़की से बाहर के संसार को आँखों के रास्ते आत्मसात करने की कोशिश करते हुए इतिहास प्रसिद्ध धारा नगरी की ओर बढ़ा चला जा रहा था।
माण्डव से धार के लिए बस रवाना हुई तो मैं माण्डव की वादियों में खो गया। माण्डव मुझे कुछ वैसे स्थानों में से एक लगा जहाँ चले जाने के बाद वापस लौटने का मन नहीं करता। लेकिन यह तो यात्रा का एक पड़ाव था। और यात्रा तो अनवरत–अविराम चलती रहती है। इस अनन्त यात्रा का एक छोटा सा हिस्सा अभी गुजरा था– कुछ ऐसी यादों को लिए हुए जो बार–बार दोहराए जाने की जिद करती हैं। लेकिन ऐसी यादों के साथ जीने की तो आदत पड़ चुकी है। तो फिर ऐसी ही मनोदशा में मैं बस में बैठा खिड़की से बाहर के संसार को आँखों के रास्ते आत्मसात करने की कोशिश करते हुए इतिहास प्रसिद्ध धारा नगरी की ओर बढ़ा चला जा रहा था।
Friday, June 22, 2018
माण्डू–सिटी ऑफ जॉय (दूसरा भाग)
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अब किले की दक्षिण दिशा में दो मुख्य इमारतें बची थीं– बाज बहादुर का महल एवं रानी रूपमती का मण्डप। माण्डव का नाम सम्भवतः इन्हीं दो इमारतों के साथ सर्वाधिक जाना जाता रहा है। रानी रूपमती का महल माण्डव की पहाड़ी की ऊँची कगार पर बना है जबकि बाजबहादुर का महल पहाड़ी की ढलान पर नीचे की ओर बना है। पहले बाज बहादुर के महल में चलते हैं। लाल पत्थरों से बनी इस इमारत का निर्माण 1508 में नासिर शाह खिलजी के द्वारा कराया गया था। इस इमारत के चारों ओर किले जैसी संरचना बनी थी जिसके अवशेष वर्तमान में भी दिखाई पड़ते हैं।
अब किले की दक्षिण दिशा में दो मुख्य इमारतें बची थीं– बाज बहादुर का महल एवं रानी रूपमती का मण्डप। माण्डव का नाम सम्भवतः इन्हीं दो इमारतों के साथ सर्वाधिक जाना जाता रहा है। रानी रूपमती का महल माण्डव की पहाड़ी की ऊँची कगार पर बना है जबकि बाजबहादुर का महल पहाड़ी की ढलान पर नीचे की ओर बना है। पहले बाज बहादुर के महल में चलते हैं। लाल पत्थरों से बनी इस इमारत का निर्माण 1508 में नासिर शाह खिलजी के द्वारा कराया गया था। इस इमारत के चारों ओर किले जैसी संरचना बनी थी जिसके अवशेष वर्तमान में भी दिखाई पड़ते हैं।
Friday, June 15, 2018
माण्डू–सिटी ऑफ जॉय (पहला भाग)
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आज मेरी मंजिल माण्डू या माण्डव थी। मेरी जानकारी में तो इसका नाम माण्डू ही था लेकिन स्थानीय रूप से इसका नाम माण्डव है। महेश्वर बस स्टैण्ड पर पता लगा कि माण्डव के लिए कोई सीधी बस नहीं है और इसके लिए धामनोद जाना पड़ेगा। जैसे ही मैं स्टैण्ड पहुँचा सुबह 8.15 पर मुझे धामनोद की बस मिल गयी। महेश्वर से धामनोद की दूरी 13 किमी और किराया 15 रूपये। अब चूँकि धामनोद,इन्दौर–महू–सेंधवा होकर महाराष्ट्र के धुले जाने वाले मुख्य मार्ग पर अवस्थित है तो इस वजह से यह एक महत्वपूर्ण जंक्शन है।
आज मेरी मंजिल माण्डू या माण्डव थी। मेरी जानकारी में तो इसका नाम माण्डू ही था लेकिन स्थानीय रूप से इसका नाम माण्डव है। महेश्वर बस स्टैण्ड पर पता लगा कि माण्डव के लिए कोई सीधी बस नहीं है और इसके लिए धामनोद जाना पड़ेगा। जैसे ही मैं स्टैण्ड पहुँचा सुबह 8.15 पर मुझे धामनोद की बस मिल गयी। महेश्वर से धामनोद की दूरी 13 किमी और किराया 15 रूपये। अब चूँकि धामनोद,इन्दौर–महू–सेंधवा होकर महाराष्ट्र के धुले जाने वाले मुख्य मार्ग पर अवस्थित है तो इस वजह से यह एक महत्वपूर्ण जंक्शन है।
Friday, May 18, 2018
असीरगढ़–रहस्यमय किला
युधिष्ठिर ने सिर्फ आधा झूठ बोला था– "अश्वत्थामा हतः।" "नरो वा कुंजरो" को तो श्रीकृष्ण की शंखध्वनि ने छ्पिा लिया था। इस आधे झूठ के कारण जीवन भर कभी भी मिथ्या भाषण न करने वाले युधिष्ठिर को नरक के दर्शन करने का दण्ड मिला था। खैर,यह तो बहुत बड़े धार्मिक विश्लेषण का विषय है और मेरी इतनी पहुँच नहीं है। मेरे तो इस धार्मिक चिन्तन का कारण सिर्फ यह मान्यता है कि असीरगढ़ के किले में स्थित शिव मन्दिर में आज भी अश्वत्थामा पूजा करने आते हैं। अब किसी स्थान का वर्तमान किसी रहस्यमय अतीत से जुड़ा है तो कौन ऐसे स्थान पर नहीं जाना चाहेगा।
Friday, May 11, 2018
अजयगढ़
अपनी इस खजुराहो यात्रा में खजुराहो के मंदिर और खजुराहो के निर्माणकर्ता चंदेल शासकों की प्राचीन राजधानी कालिंजर घूम लेने के बाद आज मैं खजुराहो के पास स्थित एक और किले अजयगढ़ की ओर निकल रहा था। वैसे तो कल कालिंजर जाते समय मैं अजयगढ़ होकर ही गया था लेकिन रास्ते में इतना समय नहीं था कि अजयगढ़ की भी हाल–चाल ली जा सके। केवल कालिंजर घूम कर आने में ही नानी याद आ गयी थी। हाँ,आज अजयगढ़ से ही घूमकर लौटना था तो समय की समस्या नहीं होनी थी।
Friday, May 4, 2018
कालिंजर
आज खजुराहो में मेरा तीसरा दिन था। वैसे तो खजुराहो आने वाले पर्यटक एक या दो दिन यहाँ ठहरने के बाद यहीं से वापस लौट जाते हैं अर्थात खजुराहो आने का मतलब यहाँ मंदिरों की दीवारों पर बनी बहुचर्चित मूर्तियों का दर्शन और फिर जल्दी से खजुराहो से पलायन,लेकिन मेरा कार्यक्रम कुछ और ही था। खजुराहो आने का मतलब ही क्या जब तक कि चंदेलों के इतिहास को अच्छी तरह से न खंगालें। चूँकि कालिंजर अतीत में चंदेलों की राजधानी रहा है और एक ऐसा भी दौर गुजरा जबकि कालिंजर का किला सत्ता का केन्द्र रहा। तो बिना कालिंजर की यात्रा किये खजुराहो यात्रा अधूरी रहती।
Friday, March 23, 2018
देवगिरि उर्फ दौलताबाद
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2 बजे हम दौलताबाद किले पहुँचे। दौलताबाद अपने इतिहास,महत्व और विशेषताआें की वजह से कम और मुहम्मद तुगलक के अदूरदर्शी फैसलों की वजह से अधिक जाना जाता है। दौलताबाद का किला औरंगाबाद से एलोरा जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 52 के किनारे स्थित है। मुख्य सड़क छोड़कर किले की ओर बढ़ने पर बायें हाथ टिकट काउण्टर है।किले का प्रवेश शुल्क 15 रूपये है यानी अजंता या एलोरा का आधा। वैसे प्रवेश शुल्क कम या अधिक होने से इसके महत्व में कोई अंतर नहीं आता। इसके बाद दाहिनी तरफ मुड़कर आगे बढ़ने पर बायें हाथ किले का मुख्य प्रवेश द्वार है। मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर एक लम्बा पथरीला रास्ता मिलता है।
2 बजे हम दौलताबाद किले पहुँचे। दौलताबाद अपने इतिहास,महत्व और विशेषताआें की वजह से कम और मुहम्मद तुगलक के अदूरदर्शी फैसलों की वजह से अधिक जाना जाता है। दौलताबाद का किला औरंगाबाद से एलोरा जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 52 के किनारे स्थित है। मुख्य सड़क छोड़कर किले की ओर बढ़ने पर बायें हाथ टिकट काउण्टर है।किले का प्रवेश शुल्क 15 रूपये है यानी अजंता या एलोरा का आधा। वैसे प्रवेश शुल्क कम या अधिक होने से इसके महत्व में कोई अंतर नहीं आता। इसके बाद दाहिनी तरफ मुड़कर आगे बढ़ने पर बायें हाथ किले का मुख्य प्रवेश द्वार है। मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर एक लम्बा पथरीला रास्ता मिलता है।
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