दिन के 1.45 बज रहे थे। अब मेरी ओरछा गाथा समाप्त होने को थी। मैं किसी स्वप्नलोक से बाहर निकल रहा था। यात्रा वास्तविकता में ही हो सकती है,सपने में नहीं। अब मैं बुन्देले हरबोलों से कहानी सुनने झाँसी जा रहा था। होटल से बैग लेकर बाहर निकला तो बिना मेहनत के झाँसी के लिए ऑटो मिल गयी। आधे घण्टे में ही झाँसी बस स्टेशन पहुँच गया। पहले रात में रूकने की व्यवस्था करनी थी क्योंकि बैग भी वहीं सुरक्षित रहेगा। इसे हाथ में टाँगकर कहाँ मारा–मारा फिरूंगा। वैसे तो ओरछा में भी रूककर झाँसी घूमा जा सकता है लेकिन थोड़ा झाँसी के बारे में जानने के लिए यहाँ भी रूकना जरूरी है।
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Friday, January 5, 2018
झाँसी–बुन्देले हरबोलों से सुनी कहानी
दिन के 1.45 बज रहे थे। अब मेरी ओरछा गाथा समाप्त होने को थी। मैं किसी स्वप्नलोक से बाहर निकल रहा था। यात्रा वास्तविकता में ही हो सकती है,सपने में नहीं। अब मैं बुन्देले हरबोलों से कहानी सुनने झाँसी जा रहा था। होटल से बैग लेकर बाहर निकला तो बिना मेहनत के झाँसी के लिए ऑटो मिल गयी। आधे घण्टे में ही झाँसी बस स्टेशन पहुँच गया। पहले रात में रूकने की व्यवस्था करनी थी क्योंकि बैग भी वहीं सुरक्षित रहेगा। इसे हाथ में टाँगकर कहाँ मारा–मारा फिरूंगा। वैसे तो ओरछा में भी रूककर झाँसी घूमा जा सकता है लेकिन थोड़ा झाँसी के बारे में जानने के लिए यहाँ भी रूकना जरूरी है।
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