Friday, December 29, 2017

ओरछा–जीवित किंवदन्ती

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जब मैं ओरछा पहुँचा तो अभी अंधेरा होने में काफी समय था। ऑटो स्टैण्ड बिल्कुल ओरछा के मुख्य चौराहे के पास ही है जहाँ से पूरब की ओर ओरछा का किला और पश्चिम की ओर चतुर्भुज मन्दिर बिल्कुल पास ही दिखता है। रामराजा मन्दिर भी पास ही है। कमरा ढूँढ़ने में मैंने कुछ तेजी दिखायी ताकि समय का सदुपयोग करते हुए शाम के समय भी ओरछा का कुछ दृश्यावलोकन किया जा सके। ओरछा के प्रसिद्ध रामराजा मन्दिर के गेट के पास ही होटल में मैंने कमरा बुक कर लिया। कमरा लेकर मैं अन्दर चला गया। फिर जब 10 मिनट बाद बाहर जाने के लिए निकला तो होटल के काउण्टर पर एक नया लड़का बैठा हुआ था।

Friday, December 22, 2017

देवगढ़–स्वर्णयुग का अवशेष

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चौथा दिन–
मेरी इस यात्रा का यह चौथा दिन था। कल शाम को चन्देरी से वापस आकर जब मैं ललितपुर में रूका तो लग नहीं रहा था कि मैं कहीं किसी दूसरे शहर में हूँ। उत्तर प्रदेश के किसी छोटे शहर जैसा,जिसे अभी अत्यधिक भीड़भाड़ और व्यस्तता ने अपनी चपेट में नहीं लिया है। जिला मुख्यालय है लेकिन रोडवेज का बस स्टेशन अभी बन रहा है। बड़ी–बड़ी ट्रेनें गुजरती हैं लेकिन रेलवे स्टेशन अभी छोटा सा ही है। बचपन में उत्तर प्रदेश का नक्शा कहीं देखता था तो मन में सवाल उठता था कि ये ललितपुर और मिर्जापुर जिले नीचे लटके हुए से क्याें हैं। चारों ओर से मध्य प्रदेश से घिरे हुआ ललितपुर की लोकेशन ऐसी है कि किसी भी तरफ निकलिए मोबाइल रोमिंग में हो जाता है। आज मैं उसी ललितपुर जिले में उपस्थित था।

Friday, December 15, 2017

चन्देरी–इतिहास के झरोखे से (दूसरा भाग)

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कौशक महल– चन्देरी स्टैण्ड से सबसे पहले हम लगभग 4 किलोमीटर दूर कौशक महल पहुँचे। यह मुंगावली और ईसागढ़ जाने वाले मार्ग पर स्थित है। कौशक महल का स्थापत्य विशिष्ट है। इसका निर्माण पन्द्रहवीं सदी में मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी प्रथम ने जौनपुर विजय के उपलक्ष्‍य में कराया था। यह महल धन (+) के आकार में चार बराबर खण्डों में बँटा दिखाई देता है। कहते हैं कि यह एक सात मंजिला इमारत थी लेकिन इसके स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। अफगान शैली में निर्मित इस महल की वर्तमान में तीन पूर्ण मंजिलें हैं तथा चौथी अपूर्ण है। प्रत्येक मंजिल में बाहर की ओर बालकनी व खिड़कियां बनी हुईं हैं। इनके मध्य में मेहराबदार द्वार हैं।

Friday, December 8, 2017

चन्देरी–इतिहास के झरोखे से


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दूसरा दिन–
चन्देरी का इतिहास– चन्देरी का इतिहास प्राचीन होने के साथ साथ गौरवशाली भी है। ये अलग बात है कि इसकी तरफ ध्यान कम ही लोगों का जाता है। प्राचीन महाकाव्य काल में यह चेदि नाम से विख्यात था जहां का राजा शिशुपाल था। ईसा पूर्व छठीं शताब्दी में प्रसिद्ध सोलह महाजनपदों में से चेदि या चन्देरी भी एक था। तत्कालीन चेदि राज्य काे वर्तमान में सम्भवतः बूढ़ी चन्देरी के नाम से जाना जाता है जो वर्तमान चन्देरी के 18 किमी उत्तर–पश्चिम में अवस्थित है। बूढ़ी चन्देरी में बहुत से बिखरे मंदिर,शिलालेख व मूर्तियों के अवशेष पाये जाते हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि यह प्राचीन काल में निश्चित रूप से कोई ऐतिहासिक नगर रहा होगा जो कालान्तर में घने जंगल में विलीन हो गया।

Friday, December 1, 2017

चन्देरी की ओर

झरोखे से झांकना कितना आनन्ददायक लगता होगाǃ
यह झरोखे में बैठकर बाहर निहारती हुई किसी सुन्दरी को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे ही मुझे भी एक दिन झरोखे में से बाहर निहारने की इच्छा हुई और वह भी किसी ऐसे–वैसे झरोखे से नहीं वरन इतिहास के झरोखे से।
तो निकल पड़ा मध्य प्रदेश के कुछ गुमनाम से शहरों  की गलियों में।
शायद मुझे भी कोई झरोखा मिल जाय।
जी हाँ गलियों में और वो भी अकेले। पीठ पर बैग लादे सितम्बर के अन्तिम सप्ताह की चिलचिलाती धूप से बातें करते हुए मैं चल पड़ा–

Friday, November 24, 2017

माता ने बुलाया हैǃ

माता ने बुलाया हैǃ
कहते हैं कि माता वैष्णो के यहाँ से बुलावा आता है,तभी आदमी वहाँ तक पहुँच पाता है। वैसे तो मन में आता है कि साल में कम से कम एक बार जरूर माता के दरबार में हाजिरी लगा लूँ लेकिन माता बुलाये तब तो। 2014 के जून महीने में माता के दरबार तक एक बार पहुँचा था लेकिन 2015 खाली–खाली ही बीत गया और माँ ने बुलावा नहीं भेजा। 2016 भी बीत गया और लगने लगा कि माँ कुछ नाराज है लेकिन 2017 में माँ ने बुलावा आखिर भेज ही दिया। समय का बहुत ही अभाव था लेकिन सितम्बर महीने के पहले सप्ताह में संयोग बन गया।

Friday, August 18, 2017

डलहौजी–नीरवता भरा सौन्दर्य

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22 जून
कल का दिन बारिश के जिम्मे रहा या फिर ये कहें कि बारिश का आनन्द लिया गया। तो फिर कल के दिन के लिए निर्धारित कार्यक्रम आज जारी था। गाड़ी वाले से बात हो गयी थी। चम्बा जाने का प्लान कैंसिल करना पड़ा। गाड़ी वाले ने नौ बजे का समय दे रखा था। हल्का–फुल्का नाश्ता करके हम बहुत पहले ही तैयार हो गये थे। बाहर निकले और गाड़ी में सवार हो गये। डलहौजी की सड़कें सँकरी हैं। कभी–कभी भीड़ हो जाती है। लेकिन शोर नहीं होता। बाकी हिल स्टेशनों जैसा भारी–भरकम जमावड़ा नहीं होता। इस समय पीक सीजन है। अगर इस समय यह स्थिति है तो बाकी समय तो और भी खाली रहता होगा।

Friday, August 11, 2017

डलहौजी–बारिश में भीगा एक दिन

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21 जून
डलहौजी हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में स्थित है। इसे 1854 में एक हिल स्टेशन के रूप में स्थापित किया गया। तत्कालीन वायसराय लार्ड डलहौजी के नाम पर इसका नाम रखा गया था। उस समय अंग्रेज अधिकारी व सैनिक अपनी छुटि्टयां बिताने यहाँ आया करते थे। डलहौजी की समुद्रतल से औसत ऊँचाई 1970 मीटर या 6460 फीट है। डलहौजी एक बहुत ही छोटा सा कस्बा है जिसकी कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 7000 है और इस वजह से यहाँ लोगों का शाेर कम ही सुनाई देता है। पर्यटन के लिहाज से यह हिमाचल प्रदेश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है और इसलिए आज हमने डलहौजी और आस–पास घूमने का प्लान बनाया था।

Friday, August 4, 2017

खज्जियार–मिनी स्विट्जरलैण्ड

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20 जून
डलहौजी के आस–पास देखने के लिए बहुत कुछ है। लेकिन घूमने के लिहाज से अच्छा यही रहता है कि दूर वाला पहले घूम लें नजदीक वाला बाद में। इसलिए आज मिनी स्विट्जरलैण्ड के नाम से विख्यात खज्जियार की ओर निकल पड़े। खज्जियार जाने के लिए भी समस्या। अगर रिजर्व साधन से जाना चाहते हैं तो स्थानीय ट्रैवेल एजेण्ट लूटमार करने पर उतारू हैं। डलहौजी से खज्जियार की दूरी 22 किमी है। खज्जियार और दो–तीन और रास्ते में पड़ने वाली छोटी–छोटी जगहों को मिलाकर 2500 रूपये का पैकेज तैयार कर दिया गया है। अब अगर निगल सकते हैं तो निगलिए। 

Friday, July 28, 2017

वाराणसी से डलहौजी

मई के महीने में मध्य प्रदेश की यात्रा पर शायद ही कोई जाता होगा। लेकिन मैंने लगभग 10 दिन की ऐसी यात्रा की थी कि उसकी याद मन से निकलने को तैयार न थी। अब इसे भुलाने के लिए किसी ठण्डी जगह जाना जरूरी महसूस होने लगा। तो जून के महीने में शरीर को ठण्डक का एहसास दिलाने के लिए हिमाचल प्रदेश की वादियों में डलहौजी की ओर निकल पड़े। हमेशा की तरह मैं और मेरी चिरसंगिनी संगीता। सबसे पहली लड़ाई– घर से बनारस की। आधा दिन तो इसी में निकल जाता है और इसके बाद कहीं वास्तविक युद्ध शुरू हो पाता है।

Friday, July 21, 2017

ग्वालियर का किला

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28 मई
आज हमारी इस यात्रा का आखिरी दिन था और आज का कार्यक्रम था ग्वालियर का किला। कल जब हम ग्वालियर पहुँचे और आटो से इधर–उधर भाग–दौड़ कर रहे थे तो कई जगह से ग्वालियर के किले की बाहरी दीवारों की एक झलक दिखाई पड़ी थी। काफी रोमांचक लगा। आज हम बिल्कुल पास से इसे देखने जा रहे थे। अपने होटल के पास से ही हमने आटो पकड़ी और आधे घण्टे के अन्दर 15–20 रूपये में किले के गेट तक पहुँच गये।

Friday, July 14, 2017

ग्वालियर–जयविलास पैलेस

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26 मई की रात को दिल्ली जाने वाली भोपाल एक्सप्रेस समय से चली और ऐसे ही समय से चलती रहती तो भोर में 2.55 बजे यह ग्वालियर पहुँच गयी होती। लेकिन रात में हमारे सोते रहने का फायदा उठाकर आँधी–पानी ने हमला किया और रेलवे के तार वगैरह टूट गये और इसकी मरम्मत होने में ट्रेन 4 घण्टे लेट हो गयी। ग्वालियर पहुँचने में 7 बज गये। वैसे इससे हम लोगों का समय के अतिरिक्त और कोई विशेष नुकसान नहीं हुआ। लेकिन हमारे लिए समय ही सबसे महत्वपूर्ण चीज थी। ग्वालियर पहुँच कर भी वैसा ही हुआ जैसा कि हर जगह होता है। हम लोग स्टेशन से बाहर प्लेटफार्म नं0 1 की ओर बाहर निकले और ऑटो वालों की शरण में पड़े।

Friday, July 7, 2017

भोपाल–राजा भोज के शहर में

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24 मई को दिन में भोजपुर मन्दिर और भीमबेटका की गुफाएं देखने के बाद शाम के 7 बजे तक हम कमरे पर थे। अब समय आराम करने का था क्योंकि दिन में इतनी धूप लगी थी कि शरीर तो क्या आत्मा भी जल उठी थी। लेकिन हमारी किस्मत में आराम कहाँǃ नीरज के मन में एक कीड़ा कुलबुलाने लगा। महाकालेश्वर दर्शन की इच्छा जगी। मैंने भी आधे मन से सहमति दे दी। आधे मन से इसलिए,क्योंकि महाकालेश्वर के दर्शन मैं पहले भी कर चुका था और इस यात्रा में हमारे पास समय कम था। आज रात की ही योजना बन गई। खाना खाकर रात के 9 बजे निकल पड़े भोपाल के आई.एस.बी.टी. स्टेशन के लिए। हमारे मित्र सुरेन्द्र गुप्ता ने बताया था कि उज्जैन के लिए रात के दस बजे तक आराम से बसें मिल जाती हैं। टाउनशिप के सामने से हमने लोकल बस पकड़ी। भोपाल होशंगाबाद रोड पर स्थित औद्योगिक क्षेत्र मण्डीदीप से भोपाल के लिए लोकल बसें चलती हैं। हम ऐसी ही एक बस में चढ़े थे। अब लोकल बस में बैठे हैं और अन्जान जगह है तो बार–बार सिर उचकाकर बाहर देखना तो पड़ेगा ही कि कहाँ तक पहुँचे हैं।

Friday, June 30, 2017

भीमबेटका–पूर्वजों की निशानी

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भोजपुर मन्दिर से उसी दिन अर्थात् 24 मई को वापस होकर कमरे पहुँचने तक दोपहर के एक बज चुके थे। हमारे मित्र सुरेन्द्र का आग्रह था कि आराम करो लेकिन यहाँ तो–
"राम काज कीन्हें बिना मोहिं कहाँ विश्राम।"
और यहाँ राम ने भेज दिया है कि जाओ भ्रमण करो। तो फिर पेट व बोतलों को पानी से भरकर लगभग आधे घण्टे बाद ही मित्र की स्कूटी उठाई और निकल पड़े उस स्थान की ओर जहाँ हजारों–हजार साल पहले हमारे पूर्वज हमारे लिए कुछ छोड़ गये थे और जिसे पाने की उत्कण्ठा लिए इस मई के महीने में आग उगलते सूरज और तपते पथरीले धरातल के बीच रेगिस्तान के मृग की भाँति हम भाग रहे थे।
यह जगह थी– भीमबेटका। जी हाँ,ये वही जगह है जहाँ आज से दस हजार साल से भी अधिक पहले विन्ध्य पर्वत की गुफाओं में निवास करने वाले दो हाथ और दो पैरों वाले इस जीव ने,गेहूँ पर गुलाब की विजय की उद्घोषणा की और अपने हाथों और उंगलियों की कला को पत्थर के कैनवास पर उतार दिया और वो भी इस तरह से कि हम आज भी उसे अपना बताकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं।

Friday, June 23, 2017

भोजपुर मन्दिर–एक महान कृति

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24 मई
अपने भोपाल निवासी मित्र सुरेन्द्र गुप्ता से किये गये वादे के मुताबिक आज हमें होटल छोड़कर उनके घर शिफ्ट हो जाना था। इसलिए सुबह उठकर जल्दी से तैयारी में लग गये। नहा–धोकर बाहर निकले और एक दुकान पर छः रूपये वाली चाय पी। बहुत अच्छी लगी क्योंकि दस रूपये से नीचे की तो चाय मिल ही नहीं रही थी। अब मित्र के घर पहुँचने के लिए वाहन की जरूरत थी। चाय वाले से पूछा तो उसने लोकल बस पकड़ने के लिए ऐसा रास्ता बताया जो हमारी समझ में ही नहीं आया। समझने की बजाय हम और उलझ गये जबकि रास्ता बिल्कुल सीधा था।

Friday, June 16, 2017

सांची–महानता की गौरव गाथा

मंजिल की तरफ चलता हूँ तो कोई न कोई साथी मिल ही जाता है और मजरूह सुल्तानपुरी की वो पंक्तियां याद आ जाती हैं–
"मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल,मगर लोग साथ आते गये,कारवां बनता गया।"
वैसे तो अकेले यात्रा करना या घूमना मुझे अच्छा लगता है लेकिन कभी–कभी बिल्कुल अकेले भी यात्रा करना कुछ जमता नहीं। अकेले यात्रा करने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि अपने मन मुताबिक घूमा जा सकता है लेकिन कम से कम एक साथी होने से यात्रा उबाऊ नहीं होने पाती। तो इस बार यात्रा में मेरे साथी बने मेरे मित्र नीरज।

Friday, June 9, 2017

लगन का मौसम

पंचों,
इस समय खूब शादी विवाह हो रहा है। खूब गाजे–बाजे बज रहे हैं। धूम–धड़ाम हो रहा है। जमके लगन चल रही है। ऐसी ही एक लगन में एक दिन बुझावन मिल गये।
बोले– "क्यों सरपंच जी,आजकल तो खूब लगन का मौसम चल रहा है।"
हमने कहा– "हां भई लगन तो चल ही रही है लेकिन लगन का मौसम कैसा। मौसम तो तीने होते हैं– जाड़ा,गर्मी,बरसात। बचपन में मास्टर जी तो यही बताये थे।"
लेकिन बुझावन कहां मानने वाले थे। बोले– "नहीं भई,किसी टाइम पर काेई काम खूब जोर–शोर से होता है तो कहते हैं कि इस काम का मौसम आ गया है। तो लगन का भी मौसम चल रहा है इ तो मानना ही पड़ेगा।"
हमने समझाने की कोशिश की कि भइया अब इस उमर तक तो सुनते और पढ़ते आये हैं कि मौसम तीने होते हैं तो फिर ये चउथा मौसम कहां से आ खड़ा हुआ? हमारी सरकार भी तीने मौसम मानती है। बाकायदा इनके लिए मौसम विभाग बना हुआ है। इन मौसम के बारे में मौसम विभाग हर साल भविष्यवाणी करता है भले उ हर साल फेल हो जाय। इस साल भी विभाग वाले मानसून की भविष्यवाणी कर दिये हैं कि ई सामान्य रहेगा। भले ही सूखा पड़ जाय चाहे बाढ़ आ जाये।

Friday, June 2, 2017

सोनम गुप्ता बेवफा हो गई

पंचों,
सोनम गुप्ता फिर से बेवफा हो गईǃ
कल शाम को लोगों के झगड़ा झंझट फरियाने से थोड़ा टाइम मिला तो साेचे कि सड़क पर टहल लें लेकिन जइसे ही गांव से थोड़ा बहरे निकले तो बुझावन मिल गये। अब कहां का टहलना। बुझावन  की बुझौनी तो बूझनी ही पड़ेगी।
नजर पड़ते ही बुझावन ने गोला दाग दिया–
"का सरपंच बाबू,इ सोनम गुप्ता फिर से बेवफा हो गई का?"
हम जान बचाने की फिकर में थे सो बोले– "अरे का बुझावन,इ सब का बे सिर पैर की बात में पड़ते हो। हम तुम्हारी उल्टी बानी का मतलब नहीं समझते। कुछ दिन पहले भी ऐसा हल्ला मचा था और आज फिर तुम्हारे मुंह से सुनाई पड़ रहा है। किसी की भी औरत के बारे में बिना जाने–बूझे ऐसी–वैसी बात मुंह से नहीं निकालनी चाहिए।"
"नहीं सरपंच बाबू तुम खूब समझते हो। लेकिन आज तो हम भी फाइनले करके रहेंगे। लुगाई तुम्हारी हो या हमारी। ऐसी हरकत तो बर्दास से बाहर है। ऐसी लुगाई को तो तीन तलाक दे देना चाहिए। कुछ दिन पहिले भी इ खबर आई थी तो हम समझे थे कि लड़के सब हंसी मजाक कर रहे हैं लेकिन इस औरत ने पता नहीं अइसा क्या जादू कर दिया था कि पब्लिक सुसरी एक–एक रूपये को तरस गयी। बैंक से लेकर घर तक लाइन लग गई। लोगों को पइसे के लिए बैंक में जान गंवानी पड़ गई। शादी बियाह भी लोगों का एक्के रूपये में होने लगा। औरतों की जनम भर की कमाई मर्दों को पता चल गयी। हमको भी एक दिन बैंक का मैनेजर पइसा नहीं दे रहा था तो हम भी उससे लड़ गये। उ तो पुलिस वाले हमको पकड़ लिए नहीं तो लाठी से मार के उसका कपार फोर दिये होते भले ही तीन सौ दू का मुजरिम बन जाते। अउर आज फिर से यही सब सुनाई दे रहा है। तुम तो राजनीत वाले आदमी हो। तुम्हारा तो कामे पब्लिक को लड़ा–भिड़ा कर वोट बटोरना है। तुमको तो इ सब ठीके लगेगा।"

Friday, May 26, 2017

दार्जिलिंग–वज्रपात का शहर

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16 अप्रैल–
दार्जिलिंग–
या वज्रपात का शहर।
लघु हिमालय में स्थित इस पहाड़ी क्षेत्र को अंग्रेजों ने एक हिल स्टेशन के रूप में स्थापित किया। यह स्थान उनके लिए शारीरिक सुख के लिहाज से अनुकूल था। साथ ही सिक्किम की ओर जाने वाले मार्ग में पड़ने वाला दार्जिलिंग सामरिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण था। इसी वजह से भारत के अन्य हिल स्टेशनों की तरह ही अंग्रेजों ने इसकी खोज की और इसे विकसित किया। ब्रिटिश ढाँचे में बनी इमारतें इसकी गवाह हैं। इन इमारतों के अलावा कुछ स्थानों केे नाम भी अंग्रेजों के प्रभाव को बखूबी बयां करते हैं। दार्जिलिंग से कलिम्पोंग की यात्रा में कुछ स्थानों के नाम हमें इस तरह मिले जैसे– सिक्स्थ माइल,टेन्थ माइल,इलेवेन्थ माइल (6th mile, 10th mile, 11th mile) जिनका मतलब हम समझ नहीं सके।

Friday, May 19, 2017

कलिम्पोंग

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15 अप्रैल–
आज हम दार्जिलिंग से कलिम्पोंग जा रहे थे। जल्दी सो कर उठे और गरम पानी के लिए होटल के काउण्टर पर कई बार दौड़ लगाई फिर भी सात बजे पानी मिला। उनकी भी अपनी मजबूरी थी। हर कमरे तक गर्म पानी पहुँचाना था तो उन्होंने भी अपना रूटीन बना रखा था। किसको पहले पानी देना है किसको बाद में। हमने भी मूर्खता का दामन पकड़ रख था। जब गर्म पानी की इतनी ही किल्लत थी तो नहाने की क्या आवश्यकताǃ हमें शहर से कहीं दूर जाना था तो फिर गर्म पानी और नहाने के नाम विलम्ब करना कतई उचित नहीं था। फिर भी गलती तो हो गयी थी।

Friday, May 12, 2017

दार्जिलिंग हिमालयन रेल का सफर

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14 अप्रैल
आज हमारे लिए ऐतिहासिक दिन था क्योंकि हम दार्जिलिंग हिमालयन रेल या ट्वाय ट्रेन का सफर करने वाले थे जिसके लिए हमने लगभग 15 दिन पूर्व ही टिकट बुक कर रखा था। चूँकि हमारी ट्रेन का टाइम 9.40 पर था अतः उसके पहले हमने दार्जिलिंग के कुछ लोकल साइटसीन का प्लान बनाया जिसके लिए हमने कल बुकिंग की थी। इसके अनुसार आज सुबह का प्लान था– 3 प्वाइंट टूर। इसमें सम्मिलित थे– टाइगर हिल पर सूर्योदय,बतासिया लूप तथा घूम मोनेस्ट्री। टाइगर हिल पर सूर्योदय देखने के लिए आवश्यक था कि वहाँ लगभग 5 बजे तक पहुँच जाया जाय।

Friday, May 5, 2017

मिरिक–प्रकृति की गोद में

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13 अप्रैल–
कल शाम तक हम दार्जिलिंग पहुँच चुके थे और दार्जिलिंग से साक्षात्कार हो चुका था। थके थे इसलिए जल्दी सो गये। दार्जिलिंग की सड़कों पर घूमने के बारे में नहीं सोच सके। इसलिए आज सीधे दार्जिलिंग से बाहर मिरिक की ओर निकल पड़े। यहाँ रूककर प्लान बनायेंगे तो बहुत समय नष्ट होगा। मिरिक घूमने के लिए किसी विशेष प्लानिंग की जरूरत नहीं है। मिरिक जाने के लिए चौक बाजार बस स्टैण्ड जाना पड़ता है। या यूँ कहें कि चौक बाजार बस स्टैण्ड ही दार्जिलिंग से बाहर निकलने के लिए मुख्य द्वार है।

Friday, April 28, 2017

न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग की ओर

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12 अप्रैल
दोपहर के 12.25 बजे ट्रेन से उतरने के बाद हम न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन से बाहर निकले। पसीने से भीगे कपड़ाें से लदा और रात भर की अनिद्रा व भागदौड़ से परेशान शरीर,परमतत्व की प्राप्ति जैसा अनुभव कर रहा था। बाहर रिक्शों और टैक्सियों की लाइन लगी थी। मानो हमसे यह पूछा जाने वाला था कि किस लोक में जाना है। पूछने की जरूरत ही नहीं थी। धड़ाधड़ ऑफर मिल रहे थे। हमारे चेहरे से ही जाहिर था कि हम किसी दूसरी दुनिया से आये हुए एलियन हैं। एक टैक्सी वाले ने अपना किराया बताया तो पांव तले की जमीन खिसक गई।

Friday, April 21, 2017

बक्सर से न्यू जलपाईगुड़ी की रेल यात्रा

अप्रैल के प्रारम्भ से ही लू व गर्मी की शुरूआत लगभग हो ही जाती है और इस समय पहाड़ी इलाकों का मौसम बहुत ही सुहावना हो जाता है। भारत के बहुत सारे हिल स्टेशनों में से दार्जिलिंग भी एक है। मैंने भी दार्जिलिंग की खूबसूरती के किस्से सुन रखे थे तो अपना भी मन चल पड़ा एक दिन दार्जिलिंग की सैर पर। इस सफर में संगीता भी साथ थी। इस वजह से इस बात का भी डर नहीं था कि बंगाल की जादूगरनी औरतें मुझे तोता बना सकें। दार्जिलिंग का नजदीकी रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी और नजदीकी बस स्टेशन सिलीगुड़ी है। तो न्यू जलपाईगुड़ी की ट्रेन पकड़ने के लिए हम बलिया से चल पड़े बिहार के एक रेलवे स्टेशन बक्सर के लिए।

Friday, April 7, 2017

रामनगर और चुनार

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कल दिन भर मैं सारनाथ में बुद्ध के उपदेश ग्रहण करता रहा। बनारस मेरे लिए बहुत पहले से ही परिचित सा रहा है। तो आज मैंने रामनगर और चुनार के किले देखने का प्लान बनाया। रामनगर तो गंगा उस पार बनारस से सटे हुए ही है लेकिन वाराणसी से चुनार की दूरी लगभग 45 किमी है। वैसे बनारस से चुनार जाने के लिए पर्याप्त विकल्प उपलब्ध हैं। वाराणसी सरकारी बस स्टैण्ड से विंध्याचल जाने वाली बसें चुनार होकर ही जाती हैं। इसके अतिरिक्त ऑटो रिक्शा भी जाते हैं लेकिन इनके दो रूट हैं। वाराणसी कैण्ट से राजघाट पुल पार कर पड़ाव के लिए ऑटाे जाती है। पड़ाव से चुनार के लिए आटो मिल जाती है।

Friday, March 31, 2017

वाराणसी दर्शन–सारनाथ


धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी वाराणसी से लगभग 9 किमी दूर उत्तर–पूर्व में स्थित सारनाथ भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित चार प्रमुख स्थानों– कपिलवस्तु, बोधगया, सारनाथ तथा कुशीनगर में से एक है। कपिलवस्तु में उनका जन्म हुआ, बोधगया में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, सारनाथ में उन्होंने अपने शिष्यों को पहला उपदेश प्रदान किया जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहा जाता है तथा कुशीनगर में उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ। तो आज मैं इसी बुद्ध नगरी सारनाथ में सशरीर उपस्थित था।

Friday, March 17, 2017

कोणार्क और चन्द्रभागा

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चौथा दिन–
आज हमारा पुरी में चौथा और अन्तिम दिन था। आज हम कोणार्क जा रहे थे। कोणार्क पुरी जिले के अन्तर्गत ही पड़ता है। कोणार्क जाने के लिए पुरी से पर्याप्त विकल्प उपलब्ध हैं। गुण्डीचा मन्दिर के पास स्थित बस स्टैण्ड से कोणार्क जाने के लिए आसानी से बसें मिल जाती हैं जिनका किराया 30 रूपये है। पैकेज के रूप में कोणार्क का टूर प्राइवेट बस आपरेटरों द्वारा भुवनेश्वर के साथ ही कराया जाता है जिसमें काफी भागमभाग व जल्दबाजी होती है। छोटे रिजर्व साधन के रूप में 3 से 4 सीट वाला आटो रिक्शा भी आसानी से उपलब्ध हैं। बिना मोलभाव वाला किराया है 700 रूपया जिसमें कुछ न कुछ गुंजाइश रहती ही है। पुरी से कोणार्क की दूरी 35 किमी है जिसे बस से तय करने में एक घण्टे से भी कम का समय लगता है।

Friday, March 10, 2017

चिल्का झील

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तीसरा दिन–
आज पुरी में हमारा तीसरा दिन था। आज हमने चिल्का झील जाने का प्लान बनाया था। चिल्का झील जाने के लिए पुरी से बस आपरेटर सप्ताह में तीन दिन– सोमवार,बुधवार और शुक्रवार को टूर आयोजित करते हैं। इसमें प्रति सीट किराया 220 रूपये है। बस के अतिरिक्त आटो या चारपहिया गाड़ी भी चिल्का झील के लिए बुक की जा सकती है परन्तु इनका किराया बहुत महंगा है। बस वाला विकल्प सर्वोत्तम है। अतः हमने बस में दो सीटें एक दिन पहले ही बुक कर ली थीं। चिल्का झील के लिए पर्यटकों की भीड़ भी सम्भवतः कम ही होती है क्योंकि जिस बस में हम बैठे थे वह एक तिहाई से ज्यादा खाली थी।

Friday, March 3, 2017

भुवनेश्वर

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दूसरा दिन–
आज पुरी में हमारा दूसरा दिन था और आज हम भुवनेश्वर जा रहे थे। जैसा कि मैं पिछले भाग में भी उल्लेख कर चुका हूं कि भले ही यह जनवरी का अन्तिम सप्ताह था लेकिन पुरी में ठंड का कोई असर नहीं था। हां,कही–कहीं भूले–भटके कुहरा दिख जा रहा था। पुरी से भुवनेश्वर की दूरी लगभग 65 किमी है। पुरी से भुवनेश्वर जाने के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं। पुरी का जगन्नाथ मन्दिर,कोणार्क जाने वाले जिस मुख्य सड़क मार्ग के किनारे स्थित है उसी सड़क मार्ग के किनारे,मन्दिर से लगभग 2.5 किमी दूर,गुण्डीचा मन्दिर के पास बस स्टैण्ड भी स्थित है जिसका आटो रिक्शा वाले मन्दिर के पास से 10 रूपया किराया लेते हैं।

Friday, February 24, 2017

पुरी

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समुद्र स्नान में 10.30 बज गये थे। वापस लौटे तो कमरे पर नहा–धोकर फ्रेश होने में 12 बज गये। अब चिन्ता थी पुरी के स्थानीय भ्रमण के लिए साधन खोजने की। चक्रतीर्थ रोड पर जगह–जगह आटो वाले खड़े–खड़े सवारियों का इन्तजार करते मिल रहे थे। कइयों से बात की तो पुरी के साधनों एवं उनके रेट का पता चला। पुरी में कहीं से भी कहीं जाने के लिए आटो मिल जायेंगे। इतना ही नहीं,जो दूरियां बसें एवं अन्य चारपहिया वाहन तय करते हैं,उनके लिए भी आटो उपलब्ध हैं। छोटे चारपहिया वाहनों का सिस्टम यहां बहुत कम है। सड़कें अच्छी हैं इसलिए आटो में भी कहीं जाने में कोई दिक्कत नहीं है।

Friday, February 17, 2017

पुरी–समुद्री बीच पर

जय जगन्नाथǃ
यह उद्घोष जहां होता है वह है जगन्नाथ की नगरी– 'पुरी' या जगन्नाथपुरी।
समुद्र के किनारे बसे इस छोटे से शहर में,यहां के निवासियों के साथ–साथ समुद्र भी निरन्तर जय जगन्नाथ का उद्घोष करता रहता है। प्राकृतिक और धार्मिक सुन्दरता से भरपूर इस शहर की यात्रा पर एक दिन हम भी निकल पड़े। हम यानी– मैं और मेरी साथी संगीता। जनवरी के अन्तिम सप्ताह में जबकि पूरा उत्तर भारत शीतलहरी के प्रकोप से कराह रहा होता है,भारत के पूर्वी हिस्से में बसे राज्य उड़ीसा की सांस्कृतिक राजधानी पुरी का मौसम बहुत ही सुहाना होता है।

Friday, January 27, 2017

गंगा आरती

वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर 5 जनवरी 2017 को रिकार्ड किया गंगा आरती का एक वीडियो–


Friday, January 20, 2017

वाराणसी दर्शन–गंगा के घाट और गंगा आरती

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गोदौलिया बनारस का सबसे पुराना बाजार है। इसलिए भीड़ तो होगी ही। चौराहे पर लगा बोर्ड बता रहा था– "काशी विश्वनाथ मन्दिर 500 मीटर और दशाश्वमेध घाट 700 मीटर।" चौराहे से पैदल ही जाना है और यही उचित है क्योंकि बाजार और संकरी सड़कों की वजह से गाड़ियां ले जाना काफी समस्या पैदा करने वाला है। फिर भी स्थानीय लोग कहां मानने वाले हैं। रिक्शाें और माेटरसाइकिलों की भीड़ तो थी ही और पैदल की तो पूछना ही क्या।

Friday, January 13, 2017

वाराणसी दर्शन–नया विश्वनाथ मन्दिर

भोले बाबा की नगरी–
वाराणसी
मां गंगा का नगर,भगवान बुद्ध का नगर,फक्कड़ों का नगर,पंडो–पुजारियों का नगर,मन्दिरों का नगर,घाटों का नगर,गलियों का नगर,अखाड़ों का नगर,सन्तों का नगर,औघड़ों का नगर ............
और भी पता नहीं कितने विशेषण जुड़े हैं इस शहर के साथ।
लेकिन वाराणसी या बनारस अपनी ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है। इसकी जड़ें इतिहास में हैं जिन्हें खोजते हुए तमाम विदेशी और हम भारतीय भी इसकी ओर खिंचे चले आते हैं।
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