आज हम दार्जिलिंग से कलिम्पोंग जा रहे थे। जल्दी सो कर उठे और गरम पानी के लिए होटल के काउण्टर पर कई बार दौड़ लगाई फिर भी सात बजे पानी मिला। उनकी भी अपनी मजबूरी थी। हर कमरे तक गर्म पानी पहुँचाना था तो उन्होंने भी अपना रूटीन बना रखा था। किसको पहले पानी देना है किसको बाद में। हमने भी मूर्खता का दामन पकड़ रख था। जब गर्म पानी की इतनी ही किल्लत थी तो नहाने की क्या आवश्यकताǃ हमें शहर से कहीं दूर जाना था तो फिर गर्म पानी और नहाने के नाम विलम्ब करना कतई उचित नहीं था। फिर भी गलती तो हो गयी थी।