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Friday, March 15, 2019

विश्व विरासत शहर–अहमदाबाद (दूसरा भाग)

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भद्र किले से 10 मिनट से कुछ कम की ही पैदल दूरी पर सीदी सैयद मस्जिद बनी हुई है। मैं रास्ता पूछता हुआ वहाँ पहुँच गया। सीदी सैयद की मस्जिद में बनी जालियां काफी प्रसिद्ध हैं। सीदी सैयद की मस्जिद एक छोटी सी इमारत है। लेकिन इसके खम्भे और इसकी दीवारों में बनी जालियाँ सर्वाधिक दर्शनीय हैं। मैं जब यहाँ पहुँचा तो इन जालियों का कद्रदान कोई नहीं था। एक मौलवी साहब मस्जिद में सफाई कर रहे थे।
सीदी सैयद की मस्जिद का निर्माण 1572 में सीदी सैयद नामक एक अबीसिनियन (वर्तमान इथियोपिया) मूल के एक व्यक्ति द्वारा कराया गया था।

Friday, March 8, 2019

विश्व विरासत शहर–अहमदाबाद (पहला भाग)

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अहमदाबाद या फिर पूरे गुजरात का इतिहास सामान्यतः 10वीं सदी के पूर्वार्द्ध तक कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार शासकों से जुड़ा हुआ रहा है। 10वीं सदी में राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय ने गुर्जर प्रतिहार शासक महिपाल को पराजित कर दिया। केन्द्रीय शासन कमजोर पड़ गया और इस समय गुजरात क्षेत्र अराजकता का शिकार हो गया। ऐसी परिस्थितियों में गुजरात में मूलराज प्रथम (941-995 ई.) ने चालुक्य वंश की गुजरात शाखा की स्थापना की। उसने तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए सरस्वती घाटी में एक राज्य की स्थापना की।

Friday, March 1, 2019

लोथल–खण्डहर गवाह हैंǃ

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नलसरोवर के चौराहे पर भटकते हुए पता चला कि लोथल जाने के लिए मुझे सबसे पहले बगोदरा जाना पड़ेगा और बगोदरा जाने के लिए कोई गाड़ी नहीं थी। किसी ने कहा कि छकड़े जाते हैं। नलसरोवर आने के बाद मैं सुबह से ही छकड़ों को देख रहा था लेकिन अब समय था तो एक छकड़े के पास जाकर खड़ा हो गया। ऐसी जुगाड़ वाली गाड़ियों को देखा तो बहुत है लेकिन "छकड़ा" नाम पहली बार सुन रहा था। बुलेट या फिर राजदूत बाइक के इंजन को रूपान्तरित कर,भारत में बहुतायत से उपयोग में लायी जाने वाली "जुगाड़ तकनीक" के प्रयाेग से,सामान ढोने की गाड़ी के रूप में बदल दिया गया था। अब इस गाड़ी पर सामान ढोइये या आदमी– क्या फर्क पड़ता है।

Friday, February 22, 2019

नलसरोवर–परदेशियों का ठिकाना

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कल नलसरोवर की बस खोजते–खोजते पाटन और मोढेरा जाना पड़ा। तो आज मैं सतर्क था। कल रात वापस आकर खाना खाने और सोने में भले ही बहुत देर हो गयी लेकिन आज मैं सुबह बहुत जल्दी उठ गया। वजह यह थी कि नलसरोवर की पहली बस सुबह 7.15 पर ही थी और गुजरात में दिसम्बर के महीने में सुबह के साढ़े छः बजे के बाद ही अँधेरा छँट रहा था। तो पौने सात बजे मैं होटल से निकल कर गीता मंदिर बस स्टेशन की ओर चल पड़ा।

Friday, February 15, 2019

मोढेरा का सूर्य मंदिर–समृद्ध अतीत की निशानी

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जैन मंदिर के पास से मुझे पता लगा कि बस स्टैण्ड पास में ही या लगभग एक किमी की दूरी पर है। लेकिन यह जूना बस स्टैण्ड है। नये बस स्टैण्ड जाने के लिए मुझे 50 का पहाड़ा पढ़ने वाले ऑटो वालों की ही सुनना था। 2.30 बजे तक मैं पाटन के नये बस स्टैण्ड में था। ऑटो वाले ने बताया कि बेचराजी रूट की कोई बस पकड़ लेंगे तो वह मोढेरा होकर ही जायेगी। मैं बस का इंतजार करने लगा। साथ ही दिमाग में यह भी बिठाने की कोशिश करने लगा कि बस के शीशे के पीछे गुजराती लिपि में बेचराजी किस तरह से लिखा होगा। बस सामने खड़ी हो तो इंतजार कुछ आसान लगता है।

Friday, February 8, 2019

रानी की वाव

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अहमदाबाद और इसके आस–पास की यात्रा में मेरे सामने कई लक्ष्‍य थे। सबसे नजदीकी था अहमदाबाद शहर के अन्दर की ऐतिहासिक इमारतों का दर्शन। दूसरा था अहमदाबाद के उत्तर–पूर्व में लगभग 138 किमी की दूरी पर पाटन शहर में स्थित विश्व विरासत स्थल रानी की वाव और इससे कुछ दूरी पर मोढेरा का सूर्य मंदिर। तीसरा लक्ष्‍य था अहमदाबाद के दक्षिण–पश्चिम में नलसरोवर पक्षी अभयारण्य और सिंधु घाटी सभ्यता के बन्दरगाह शहर लोथल का भ्रमण।

Friday, February 1, 2019

एक्सप्रेस ऑफ साबरमती

हिमालय घुमक्कड़ों के लिए स्वर्ग है। लेकिन दिसम्बर के महीने में जमा देने वाली ठण्ड में हिमालय की यात्रा तो अवश्य हो जायेगी पर घुमक्कड़ी का आनन्द तो शायद ही आये। हाँ,समन्दर के किनारे अवश्य ही आनन्ददायक होंगे। तो इस बार भारत के पश्चिमी हिस्से की ओर। घुमक्कड़ के लिए मौसम थोड़ा सा सहायता करता है तो घुमक्कड़ी कुछ आसान हो जाती है। अब दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में उत्तर भारत ठण्ड से सिहर रहा है तो गुजरात में ठण्ड का रंग गुलाबी है। ऐसे ही मौसम में थर्मल इनर,स्वेटर,जैकेट,मफलर और कम्बल से लदे–फदे,भारी–भरकम शरीर को ढोते हुए मैं गुजरात के अहमदाबाद की ओर चल पड़ा।
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