दिन के 2 बज रहे थे। नाहरगढ़ का किला फतह होने के बाद अब जयगढ़ की बारी थी। आज इन्द्रदेव मेरे ऊपर प्रसन्न थे ही। आमेर और नाहरगढ़ के बीच उन्होंने मुझे अपने प्रेमरस से सराबोर कर दिया था और संभावना लग रही थी कि अब मुझ पर सोम–रस भी बरसाएंगे। जयगढ़ किले के बाहरी गेट के बाहर ही,मैंने बिना पर्ची के बाइक खड़ी कर दी और अन्दर प्रवेश कर गया। हेलमेट कुछ–कुछ भीग गया था तो उसे उल्टा करके बाइक के हैण्डल में लटका दिया क्योंकि धूप खिलने के आसार नजर आ रहे थे। जयपुर शहर की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों को दिखाने वाले मेरे कॉम्बो टिकट में जयगढ़ शामिल नहीं था। इसी धरती पर बसी हुई काशी नगरी,जिस तरह से इस धरती से अलग शिव के त्रिशूल पर बसी हुई मानी जाती है,संभवतः उसी तरह से यह किला भी भारतीय पुरातत्व विभाग के कॉम्बो टिकट के अधिकार क्षेत्र से बाहर था।