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Friday, December 14, 2018

केदारनाथ–बाबा के धाम में

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18 अक्टूबर
सुबह के साढ़े पाँच बजे सोकर उठा और आधे घण्टे में बाहर निकल गया। शायद सफेद चोटियों पर सूरज की पीली रोशनी पड़ रही हो। लेकिन अभी तो बाहर रास्ते के किनारे पीली लाइटें जल रही थीं। सफेद चोटियों पर कालिमा छाई हुई थी। मंदिर बिल्कुल खाली था। सामने के प्रांगण में एक स्थान पर अँगीठी जल रही थी जहाँ कुछ लोग ठण्ड से दो–दो हाथ कर रहे थे। वो भी मेरी तरह यूँ ही टहलते हुए आ गये थे। यहाँ तो कोई "बेघर" शायद जीवन संघर्ष में सफल नहीं हो सकता। मेरे हाथों में भी गलन हो रही थी क्योंकि दस्ताने नहीं थे। चेहरा और होठ सुन्न हो रहे थे। सूरज उजले पहाड़ों की ओट में था। कुछ ही मिनटों में मैं काँपने लगा। एक चाय वाले की अँगीठी के पास मैं भी खड़ा हुआ।

Friday, December 7, 2018

केदारनाथ के पथ पर

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जय केदारǃ
भीमबली से 1 किमी चलकर रामबाड़ा पहुँचा तो मंदाकिनी की विनाशलीला की याद आ गयी। एक झोपड़ी में मैगी बन रही थी। जीभ पर पानी आ गया लेकिन समय नहीं था। मैंने दुकान वाले से पूछा– "रामबाड़ा किधर है?"
उसने हाथ से इशारा कर दिया। लेकिन उधर तो पत्थर ही पत्थर थे। समझते देर न लगी कि सबकुछ मंदाकिनी के गर्भ में समा गया। लेकिन शायद मंदाकिनी यहाँ जितनी सुंदर लग रही थी उतनी मुझे अब तक कहीं नहीं लगी थी। यह विनाश के बाद वाली मंदाकिनी है। शायद इसीलिए इतनी सुंदर है। क्योंकि विनाश के बाद ही सृजन का आरम्भ होता है और सृजन अवश्य ही सुंदर होता है।

Friday, November 30, 2018

वाराणसी से गौरीकुण्ड

16 अक्टूबर
इस बार की यात्रा कुछ विशेष थी। क्योंकि उद्देश्य कुछ विशेष था। उद्देश्य था बाबा केदारनाथ के दर्शनों का। अवसर था दशहरे की छुटि्टयों का फायदा उठाने का। तो माध्यम बनी एक रेलगाड़ी जिसका नाम है– हरिहर एक्सप्रेस। इसका नाम भले ही हरिहर एक्सप्रेस है लेकिन यह "हरि के द्वार" अर्थात हरिद्वार के बगल से गुजर जाती है। वहाँ से अन्दर प्रवेश करने के लिए दूसरे जतन करने पड़ते हैं।
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