धूप में यहाँ काफी देर तक चक्कर लगाने के बाद मैं कोल्हुआ के स्तूप परिसर से बाहर निकला– वैशाली के दूसरे स्मारकों की ओर। गूगल मैप तो मदद कर ही रहा था फिर भी मैं स्थानीय लोगों से रास्ता पूछ ले रहा था। इसके अलावा यहाँं रास्ते की खोज में एक और बात मदद करती है। और वो है पतली सी सड़क के दोनों ओर बनी सफेद पट्टी। सीधी सी बात है कि इस पट्टी का अनुसरण करते चले जाइये,किसी न किसी स्मारक तक पहुँच जायेंगे। तो 3-4 किमी चलने के बाद अब मैं एक पुराने स्तूप परिसर में था।
Showing posts with label वैशाली. Show all posts
Showing posts with label वैशाली. Show all posts
Friday, May 31, 2019
Friday, May 24, 2019
वैशाली–इतिहास का गौरव (पहला भाग)
वैशाली भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित कई घटनाओं का साक्षी रहा है। सर्वप्रमुख रूप से माना जाता है कि एक स्थानीय ʺवानर–प्रमुखʺ ने कोल्हुआ में बुद्ध को मधु अर्पण किया था। कोल्हुआ वैशाली का अभिन्न अंग रहा है। मधु अर्पण की यह घटना भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित आठ प्रमुख घटनाओं में से एक मानी जाती है। बुद्ध ने अपने जीवन के कई वर्षावास यहाँ व्यतीत किये। यहीं पर पहली बार संघ में भिक्षुणियों को प्रवेश करने की अनुमति प्रदान की गयी और साथ ही बुद्ध ने अपने शीघ्र संभावित परिनिर्वाण की घोषणा भी की।
Friday, May 17, 2019
बिहार की धरती पर
गर्मी की शुरूआत हो चुकी है। सूखे मौसम में सूरज तपन फैला रहा है। इधर मन में मरोड़ उठी है और घोड़ा तैयार होने लगा है– पूरब की यात्रा के लिए। मेरे लिए पूरब अर्थात बिहार। बिहार– जहाँ के लोग कभी पूरब की ओर जाते थे– ʺरोजी–रोटी की तलाश में।ʺ उनके लिए पूरब अर्थात् बंगाल। वो पूरब बड़ा ही भयावना था। वहाँ की औरतें पश्चिम वालों को ʺतोताʺ बना कर पिंजरे में कैद कर लेती थीं। उस अनजाने पूरब की कहानियों ने ʺविदेशियाʺ को जन्म दिया–
ʺपिया मोरे मति जा,हो पूरुबवा।ʺ
ʺपिया मोरे मति जा,हो पूरुबवा।ʺ
Subscribe to:
Posts (Atom)