आज खजुराहो में मेरा तीसरा दिन था। वैसे तो खजुराहो आने वाले पर्यटक एक या दो दिन यहाँ ठहरने के बाद यहीं से वापस लौट जाते हैं अर्थात खजुराहो आने का मतलब यहाँ मंदिरों की दीवारों पर बनी बहुचर्चित मूर्तियों का दर्शन और फिर जल्दी से खजुराहो से पलायन,लेकिन मेरा कार्यक्रम कुछ और ही था। खजुराहो आने का मतलब ही क्या जब तक कि चंदेलों के इतिहास को अच्छी तरह से न खंगालें। चूँकि कालिंजर अतीत में चंदेलों की राजधानी रहा है और एक ऐसा भी दौर गुजरा जबकि कालिंजर का किला सत्ता का केन्द्र रहा। तो बिना कालिंजर की यात्रा किये खजुराहो यात्रा अधूरी रहती।
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Friday, May 4, 2018
Friday, January 5, 2018
झाँसी–बुन्देले हरबोलों से सुनी कहानी
दिन के 1.45 बज रहे थे। अब मेरी ओरछा गाथा समाप्त होने को थी। मैं किसी स्वप्नलोक से बाहर निकल रहा था। यात्रा वास्तविकता में ही हो सकती है,सपने में नहीं। अब मैं बुन्देले हरबोलों से कहानी सुनने झाँसी जा रहा था। होटल से बैग लेकर बाहर निकला तो बिना मेहनत के झाँसी के लिए ऑटो मिल गयी। आधे घण्टे में ही झाँसी बस स्टेशन पहुँच गया। पहले रात में रूकने की व्यवस्था करनी थी क्योंकि बैग भी वहीं सुरक्षित रहेगा। इसे हाथ में टाँगकर कहाँ मारा–मारा फिरूंगा। वैसे तो ओरछा में भी रूककर झाँसी घूमा जा सकता है लेकिन थोड़ा झाँसी के बारे में जानने के लिए यहाँ भी रूकना जरूरी है।
Friday, December 22, 2017
देवगढ़–स्वर्णयुग का अवशेष
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चौथा दिन–
मेरी इस यात्रा का यह चौथा दिन था। कल शाम को चन्देरी से वापस आकर जब मैं ललितपुर में रूका तो लग नहीं रहा था कि मैं कहीं किसी दूसरे शहर में हूँ। उत्तर प्रदेश के किसी छोटे शहर जैसा,जिसे अभी अत्यधिक भीड़भाड़ और व्यस्तता ने अपनी चपेट में नहीं लिया है। जिला मुख्यालय है लेकिन रोडवेज का बस स्टेशन अभी बन रहा है। बड़ी–बड़ी ट्रेनें गुजरती हैं लेकिन रेलवे स्टेशन अभी छोटा सा ही है। बचपन में उत्तर प्रदेश का नक्शा कहीं देखता था तो मन में सवाल उठता था कि ये ललितपुर और मिर्जापुर जिले नीचे लटके हुए से क्याें हैं। चारों ओर से मध्य प्रदेश से घिरे हुआ ललितपुर की लोकेशन ऐसी है कि किसी भी तरफ निकलिए मोबाइल रोमिंग में हो जाता है। आज मैं उसी ललितपुर जिले में उपस्थित था।Friday, April 7, 2017
रामनगर और चुनार
कल दिन भर मैं सारनाथ में बुद्ध के उपदेश ग्रहण करता रहा। बनारस मेरे लिए बहुत पहले से ही परिचित सा रहा है। तो आज मैंने रामनगर और चुनार के किले देखने का प्लान बनाया। रामनगर तो गंगा उस पार बनारस से सटे हुए ही है लेकिन वाराणसी से चुनार की दूरी लगभग 45 किमी है। वैसे बनारस से चुनार जाने के लिए पर्याप्त विकल्प उपलब्ध हैं। वाराणसी सरकारी बस स्टैण्ड से विंध्याचल जाने वाली बसें चुनार होकर ही जाती हैं। इसके अतिरिक्त ऑटो रिक्शा भी जाते हैं लेकिन इनके दो रूट हैं। वाराणसी कैण्ट से राजघाट पुल पार कर पड़ाव के लिए ऑटाे जाती है। पड़ाव से चुनार के लिए आटो मिल जाती है।
Friday, March 31, 2017
वाराणसी दर्शन–सारनाथ
धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी वाराणसी से लगभग 9 किमी दूर उत्तर–पूर्व में स्थित सारनाथ भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित चार प्रमुख स्थानों– कपिलवस्तु, बोधगया, सारनाथ तथा कुशीनगर में से एक है। कपिलवस्तु में उनका जन्म हुआ, बोधगया में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, सारनाथ में उन्होंने अपने शिष्यों को पहला उपदेश प्रदान किया जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहा जाता है तथा कुशीनगर में उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ। तो आज मैं इसी बुद्ध नगरी सारनाथ में सशरीर उपस्थित था।
Friday, January 20, 2017
वाराणसी दर्शन–गंगा के घाट और गंगा आरती
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गोदौलिया बनारस का सबसे पुराना बाजार है। इसलिए भीड़ तो होगी ही। चौराहे पर लगा बोर्ड बता रहा था– "काशी विश्वनाथ मन्दिर 500 मीटर और दशाश्वमेध घाट 700 मीटर।" चौराहे से पैदल ही जाना है और यही उचित है क्योंकि बाजार और संकरी सड़कों की वजह से गाड़ियां ले जाना काफी समस्या पैदा करने वाला है। फिर भी स्थानीय लोग कहां मानने वाले हैं। रिक्शाें और माेटरसाइकिलों की भीड़ तो थी ही और पैदल की तो पूछना ही क्या।
Friday, January 13, 2017
वाराणसी दर्शन–नया विश्वनाथ मन्दिर
मां गंगा का नगर,भगवान बुद्ध का नगर,फक्कड़ों का नगर,पंडो–पुजारियों का नगर,मन्दिरों का नगर,घाटों का नगर,गलियों का नगर,अखाड़ों का नगर,सन्तों का नगर,औघड़ों का नगर ............
और भी पता नहीं कितने विशेषण जुड़े हैं इस शहर के साथ।
लेकिन वाराणसी या बनारस अपनी ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है। इसकी जड़ें इतिहास में हैं जिन्हें खोजते हुए तमाम विदेशी और हम भारतीय भी इसकी ओर खिंचे चले आते हैं।
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