कल भानगढ़ और सरिस्का नेशनल पार्क की धुँआधार यात्रा हुई। रात में खाना खाने और सोने में 11 बज गये। थकान भी काफी हुई थी तो सोकर उठने में 7 बज गये। खूब आराम से उठने और नहा–धाेकर खाना खाने में 9.30 बज गये। मेरे एक घनिष्ठ मित्र ने मुझे फोन पर बताया था कि जयपुर पहुँचकर राज मंदिर में पिक्चर न देखी तो फिर जयपुर जाने का कोई मतलब नहीं। मैंने उसी वक्त निश्चय कर लिया कि राज मंदिर सिनेमाघर को बाहर से भले ही देख लूँ,पिक्चर तो कतई नहीं देखने वाला।
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Friday, October 26, 2018
Friday, October 19, 2018
सरिस्का नेशनल पार्क
12.30 बजे मैं गोला का बास से सरिस्का के लिये रवाना हो गया। गोला का बास तक तो सड़क काफी कुछ ठीक थी लेकिन इसके बाद इसकी दशा किसी बीमार बुजुर्ग की तरह क्रमशः खराब होने लगी। गड्ढों का आकार और संख्या महँगाई की तरह बढ़ने लगी। लेकिन इसके साथ ही एक और परिवर्तन हुआ– और वो ये कि सड़क के किनारे का भूदृश्य भी बदलकर पथरीला और जंगली होने लगा। आबादी कम दिखने लगी। और ऐसे दृश्य काफी मनमोहक होते हैं। बारिश के मौसम की वजह से पहाड़ियां काफी हरी–भरी दिख रही थीं। पथरीला धरातल भी शायद ही कहीं ऐसा था जो हरियाली से न ढका हो।
Friday, October 12, 2018
भानगढ़–डरना मना हैǃ
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आज जयपुर में मेरा चौथा दिन था। पिछली रात भी मेरी किराये की बाइक,होटल के सामने,सड़क के किनारे खड़ी रही और मैं होटल के कमरे में चैन की नींद सोता रहा। जयपुर के अन्दर लगभग सभी प्रमुख जगहों पर जा चुका था और आज जाने–माने,सुप्रसिद्ध,भानगढ़ के किले पर चढ़ाई करनी थी और वहाँ के भूतों से लड़ना था। वैसे तो भानगढ़ को एक किला होने की वजह से ही प्रसिद्ध होना चाहिए था लेकिन यह अपने किला होने की वजह से कम और भुतहा होने की वजह से अधिक जाना जाता है।
Friday, October 5, 2018
जयपुर की विरासतें–दूसरा भाग
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जयपुर का सिटी पैलेस जयपुर की शान है। अब अगर सिटी पैलेस के लिए भी अलग से टिकट है तो कोई बुरा नहीं। थोड़ा सा महँगा है– 130 रूपये। सिटी पैलेस भी मेरे कॉम्बो टिकट में शामिल नहीं था। लेकिन सिटी पैलेस के गेट के बाहर से ही सिटी पैलेस के नजारे देखकर यह लग रहा था कि टिकट के पैसे तो पूरी तरह से वसूल हो जायेंगे। सिटी पैलेस के मुख्य गेट के दाहिनी तरफ टिकट घर है। तो बिना समय गँवाये मैं टिकट लेकर सिटी पैलेस के अंदर दाखिल हो गया। सिटी पैलेस के अन्दर हम पूरब की ओर से प्रवेश करते हैं। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही ठीक सामने मुबारक महल दिखाई पड़ता है। इस मुख्य द्वार को वीरेन्द्र पोल भी कहा जाता है।
जयपुर का सिटी पैलेस जयपुर की शान है। अब अगर सिटी पैलेस के लिए भी अलग से टिकट है तो कोई बुरा नहीं। थोड़ा सा महँगा है– 130 रूपये। सिटी पैलेस भी मेरे कॉम्बो टिकट में शामिल नहीं था। लेकिन सिटी पैलेस के गेट के बाहर से ही सिटी पैलेस के नजारे देखकर यह लग रहा था कि टिकट के पैसे तो पूरी तरह से वसूल हो जायेंगे। सिटी पैलेस के मुख्य गेट के दाहिनी तरफ टिकट घर है। तो बिना समय गँवाये मैं टिकट लेकर सिटी पैलेस के अंदर दाखिल हो गया। सिटी पैलेस के अन्दर हम पूरब की ओर से प्रवेश करते हैं। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही ठीक सामने मुबारक महल दिखाई पड़ता है। इस मुख्य द्वार को वीरेन्द्र पोल भी कहा जाता है।
Friday, September 28, 2018
जयपुर की विरासतें-पहला भाग
आज जयपुर में मेरा तीसरा दिन था। और किराये की बाइक से मैं दूसरे दिन की यात्रा करने जा रहा था। वैसे तो जयपुर और हवामहल एक दूसरे के पर्याय हैं लेकिन पहले दिन का मेरा भ्रमण आमेर,नाहरगढ़ और जयगढ़ के नाम रहा और आज मैं राजस्थान की कुछ ऐतिहासिक विरासतों जैसे हवामहल,जंतर–मंतर इत्यादि की ओर जा रहा था। मौसम ने भी मेरा साथ दिया था। कल तो इन्द्रदेव ने प्रसन्न होकर सूर्यदेव को बादलों की ओट में कर दिया था ताकि मुझे राजस्थान की तेज धूप न लगे,सड़कों को धुल दिया था और हरियाली के रंग को और गाढ़ा कर दिया था जिससे की राजस्थान भी मुझे पूरी तरह से हरा–भरा दिखे।
Friday, September 21, 2018
जयगढ़
दिन के 2 बज रहे थे। नाहरगढ़ का किला फतह होने के बाद अब जयगढ़ की बारी थी। आज इन्द्रदेव मेरे ऊपर प्रसन्न थे ही। आमेर और नाहरगढ़ के बीच उन्होंने मुझे अपने प्रेमरस से सराबोर कर दिया था और संभावना लग रही थी कि अब मुझ पर सोम–रस भी बरसाएंगे। जयगढ़ किले के बाहरी गेट के बाहर ही,मैंने बिना पर्ची के बाइक खड़ी कर दी और अन्दर प्रवेश कर गया। हेलमेट कुछ–कुछ भीग गया था तो उसे उल्टा करके बाइक के हैण्डल में लटका दिया क्योंकि धूप खिलने के आसार नजर आ रहे थे। जयपुर शहर की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों को दिखाने वाले मेरे कॉम्बो टिकट में जयगढ़ शामिल नहीं था। इसी धरती पर बसी हुई काशी नगरी,जिस तरह से इस धरती से अलग शिव के त्रिशूल पर बसी हुई मानी जाती है,संभवतः उसी तरह से यह किला भी भारतीय पुरातत्व विभाग के कॉम्बो टिकट के अधिकार क्षेत्र से बाहर था।
Friday, September 14, 2018
आमेर से नाहरगढ़
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11.30 बज रहे थे। तेज धूप में आमेर महल की चढ़ाई–उतराई ने शरीर का पानी सोख लिया था। उस जमाने के राजे–महाराजे कैसे महल में आते–जाते होंगे,सो तो वही जाने। शायद छत्र लगाने और हवा करने के लिए भी सेवक लगे रहते थे। पर अपनी किस्मत में यह सब कहाँǃ तो फिर बाहर निकल कर पहले मिल्क शेक के ठेले पर शरीर की जलापूर्ति बहाल की और फिर बाइक लेकर जयगढ़ और नाहरगढ़ के रास्ते पर निकल पड़ा।
आमेर से वापस जयपुर की ओर लगभग 2 किमी चलने पर एक त्रिमुहानी से दाहिने एक सड़क जयगढ़ व नाहरगढ़ की ओर निकलती है।
Friday, September 7, 2018
जयपुर–गुलाबी शहर में
गुलाबी इसलिए नहीं कि वहाँ गुलाबों की खेती होती है वरन गुलाबी इसलिए कि वहाँ के दर–ओ–दीवार का रंग गुलाबी है। जी हाँ,रेगिस्तान का प्रवेश द्वार गुलाबी ही तो है। और रेगिस्तान भी कितना हरा–भराǃ आश्चर्य है। क्योंकि मुझे तो हरा–भरा ही दिखाई पड़ा। अगस्त के महीने में जयपुर के अास–पास की धरती इतनी हरी–भरी थी कि मैंने सोचा भी न था। वैसे तो जेठ की भीषण गर्मी के बाद बरसात,रेगिस्तान तो क्या,पत्थर को भी नर्मदिल बना देती है। गुलाबी नगरी इस समय हरियाली से घिरी हुई थी। तो फिर राजघरानों की शान–ओ–शौकत के साथ मौसम की नजाकतों का लुत्फ उठाने मैं जयपुर की ओर निकल पड़ा।
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