इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–
नर देवी मंदिर से जब मैं बाहर निकला तो दिन के डेढ़ बज रहे थे। फिर भी गर्मी कुछ खास नहीं महसूस हो रही थी। दूर–दूर तक जंगल की छाया होने का यह असर था। जोर की भूख लग रही थी। रास्ते में खायी गयी सुबह की जलेबियों का असर समाप्त हो चुका था। लेकिन वाल्मीकि नगर के छोटे से बाजार में भाेजन की कहीं भी संभावना नहीं दिख रही थी। एक दो होटलों के बोर्ड कहीं दिखे लेकिन वे बंद थे। इस कोरोना–पीड़ित कलियुग में कौन यहाँ खाना खाने आएगा। एक दुकान पर समोसे दिखे। तो समोसे और कोल्ड ड्रिंक का लंच हुआ और फिर आगे का रास्ता। कुछ किलोमीटर तक तो दो लेन की अच्छी सड़क का साथ रहा लेकिन उसके बाद सड़क ने अपना रूप बदलना शुरू कर दिया। कहीं एक लेन,कहीं डेढ़ लेन तो कहीं पौने दो लेन की सड़क मिल रही थी। ऐसी मायावी सड़क मैंने पहले नहीं देखी थी।