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Friday, October 4, 2019

घांघरिया से हेमकुण्ड साहिब

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चौथा दिन–
कल मैं दोपहर बाद घांघरिया पहुँचा था। कुछ खास चहल–पहल नहीं दिखी। यह समय या तो नीचे गोविन्दघाट से घांघरिया आकर कमरे खोजने का था या फिर नीचे गोविन्दघाट जाने का या फिर घांघरिया की गलियाें में टहलने का। लेकिन आज सुबह के समय लोग हेमकुण्ड साहिब या फिर फूलों की घाटी के लिए निकल रहे थे। रिमझिम बारिश हो रही थी। ऐसे में फूलों की घाटी जाना ठीक नहीं था। मौसम साफ होता तो फूलों की घाटी जाना अच्छा रहता। तो अधिकांश लोग हेमकुण्ड साहिब ही जा रहे थे। मैं भी इनमें से एक था।

Friday, February 22, 2019

नलसरोवर–परदेशियों का ठिकाना

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कल नलसरोवर की बस खोजते–खोजते पाटन और मोढेरा जाना पड़ा। तो आज मैं सतर्क था। कल रात वापस आकर खाना खाने और सोने में भले ही बहुत देर हो गयी लेकिन आज मैं सुबह बहुत जल्दी उठ गया। वजह यह थी कि नलसरोवर की पहली बस सुबह 7.15 पर ही थी और गुजरात में दिसम्बर के महीने में सुबह के साढ़े छः बजे के बाद ही अँधेरा छँट रहा था। तो पौने सात बजे मैं होटल से निकल कर गीता मंदिर बस स्टेशन की ओर चल पड़ा।

Friday, January 18, 2019

थमरी कुण्ड

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खलिया टॉप ट्रेक से वापस आकर जब मैं मुख्य सड़क पर पहुँचा तो चाय की तलब लगी थी। पास ही में सड़क किनारे एक छोटा सा रेस्टोरेण्ट है। नाम है–इग्लू। यह बिल्कुल इग्लू के आकार में ही बना है। चाय पीने में 1 बज गया। अब मेरा अगल लक्ष्‍य था थमरी कुण्ड ट्रेक। मैंने ट्रेक के बारे में पूछताछ की। इस ट्रेक की जड़ तक पहुँचने के लिए मुख्य सड़क पर ही 2 किमी चलना था। सो चला। ये सीधी सड़क भी चढ़ती–उतरती हुई चलती है। शरीर की सारी ऊर्जा सोखती हुई। अभीष्ट जगह पर जब पहुँचा तो वहाँ रास्ता बताने के लिए कोई प्राणिमात्र मौजूद नहीं था।

Friday, October 26, 2018

जयपुर की विरासतें–तीसरा भाग

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कल भानगढ़ और सरिस्का नेशनल पार्क की धुँआधार यात्रा हुई। रात में खाना खाने और सोने में 11 बज गये। थकान भी काफी हुई थी तो सोकर उठने में 7 बज गये। खूब आराम से उठने और नहा–धाेकर खाना खाने में 9.30 बज गये। मेरे एक घनिष्ठ मित्र ने मुझे फोन पर बताया था कि जयपुर पहुँचकर राज मंदिर में पिक्चर न देखी तो फिर जयपुर जाने का कोई मतलब नहीं। मैंने उसी वक्त निश्चय कर लिया कि राज मंदिर सिनेमाघर को बाहर से भले ही देख लूँ,पिक्चर तो कतई नहीं देखने वाला।

Friday, August 17, 2018

अनजानी राहों पर–पोखरा (तीसरा भाग)

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दोपहर के 1 बजे हम विश्व शांति स्तूप से उतरकर वापस पोखरा शहर और फेवा लेक की ओर चल पड़े। लगभग आधे घण्टे में ही हम फेवा लेक के किनारे थे। और पोखरा की विश्व प्रसिद्ध,सपने सरीखी झील हमारी आँखों के सामने थी। बाइक खड़ी करते ही स्टैण्ड वाला पर्ची लिए सामने हाजिर हो गया। कुछ घण्टे पहले ही हम यहाँ 20 रूपए भुगत कर गए थे। सो हमने दिमाग दौड़ाया और उससे शिकायत की तो उसने बाकायदा पर्ची की जाँच की और पर्ची पर उसी दिन की तारीख देखकर हमें अपने प्रकोप से मुक्त कर दिया।

Friday, July 7, 2017

भोपाल–राजा भोज के शहर में

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24 मई को दिन में भोजपुर मन्दिर और भीमबेटका की गुफाएं देखने के बाद शाम के 7 बजे तक हम कमरे पर थे। अब समय आराम करने का था क्योंकि दिन में इतनी धूप लगी थी कि शरीर तो क्या आत्मा भी जल उठी थी। लेकिन हमारी किस्मत में आराम कहाँǃ नीरज के मन में एक कीड़ा कुलबुलाने लगा। महाकालेश्वर दर्शन की इच्छा जगी। मैंने भी आधे मन से सहमति दे दी। आधे मन से इसलिए,क्योंकि महाकालेश्वर के दर्शन मैं पहले भी कर चुका था और इस यात्रा में हमारे पास समय कम था। आज रात की ही योजना बन गई। खाना खाकर रात के 9 बजे निकल पड़े भोपाल के आई.एस.बी.टी. स्टेशन के लिए। हमारे मित्र सुरेन्द्र गुप्ता ने बताया था कि उज्जैन के लिए रात के दस बजे तक आराम से बसें मिल जाती हैं। टाउनशिप के सामने से हमने लोकल बस पकड़ी। भोपाल होशंगाबाद रोड पर स्थित औद्योगिक क्षेत्र मण्डीदीप से भोपाल के लिए लोकल बसें चलती हैं। हम ऐसी ही एक बस में चढ़े थे। अब लोकल बस में बैठे हैं और अन्जान जगह है तो बार–बार सिर उचकाकर बाहर देखना तो पड़ेगा ही कि कहाँ तक पहुँचे हैं।

Friday, May 5, 2017

मिरिक–प्रकृति की गोद में

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brajeshgovind.in
13 अप्रैल–
कल शाम तक हम दार्जिलिंग पहुँच चुके थे और दार्जिलिंग से साक्षात्कार हो चुका था। थके थे इसलिए जल्दी सो गये। दार्जिलिंग की सड़कों पर घूमने के बारे में नहीं सोच सके। इसलिए आज सीधे दार्जिलिंग से बाहर मिरिक की ओर निकल पड़े। यहाँ रूककर प्लान बनायेंगे तो बहुत समय नष्ट होगा। मिरिक घूमने के लिए किसी विशेष प्लानिंग की जरूरत नहीं है। मिरिक जाने के लिए चौक बाजार बस स्टैण्ड जाना पड़ता है। या यूँ कहें कि चौक बाजार बस स्टैण्ड ही दार्जिलिंग से बाहर निकलने के लिए मुख्य द्वार है।

Friday, March 10, 2017

चिल्का झील

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तीसरा दिन–
आज पुरी में हमारा तीसरा दिन था। आज हमने चिल्का झील जाने का प्लान बनाया था। चिल्का झील जाने के लिए पुरी से बस आपरेटर सप्ताह में तीन दिन– सोमवार,बुधवार और शुक्रवार को टूर आयोजित करते हैं। इसमें प्रति सीट किराया 220 रूपये है। बस के अतिरिक्त आटो या चारपहिया गाड़ी भी चिल्का झील के लिए बुक की जा सकती है परन्तु इनका किराया बहुत महंगा है। बस वाला विकल्प सर्वोत्तम है। अतः हमने बस में दो सीटें एक दिन पहले ही बुक कर ली थीं। चिल्का झील के लिए पर्यटकों की भीड़ भी सम्भवतः कम ही होती है क्योंकि जिस बस में हम बैठे थे वह एक तिहाई से ज्यादा खाली थी।

Friday, December 9, 2016

नैनीताल और आस–पास

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11 अक्टूबर को हम नैनीताल के आस–पास के पर्यटन–स्थलों तक पहुंचने की सोच रहे थे। कई विकल्प हमारे सामने थे– एक तो था भुवाली–रानीखेत–अल्मोड़ा,दूसरा था जिम कार्बेट तथा तीसरा था– लेक टूर यानी सातताल–भीमताल–नौकुचियाताल। समय अभी हमारे पास तीन दिन था क्योंकि हमारी वापसी 13 तारीख को थी। इसमें से एक दिन अभी हम नैनी झील के लिए रखना चाह रहे थे और आस–पास थोड़ा और घूमना चाह रहे थे और जिम कार्बेट में 1 जून से 14 नवम्बर तक मानसून की वजह से प्रवेश नहीं होता,लेकिन इस बात की जानकारी हमें उस समय नहीं थी।

Friday, December 2, 2016

सातताल

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12 अक्टूबर को हम झीलों की यात्रा पर निकल रहे थे। झीलों की यात्रा यानी नैनीताल के आस–पास स्थित झीलों का दर्शन। हमने एक छोटी गाड़ी 1500 रूपये किराये पर ले ली और निकल पड़े। किराये की बाइक भी मिल रही थी लेकिन सब कुछ जोड़–घटा कर वह महँगी पड़ रही थी। तो सबसे पहले नैनीताल से लगभग 22 किमी दूर स्थित सातताल। कहते हैं कि सातताल सात छोटी–बड़ी झीलों का समूह है लेकिन यहां के ड्राइवर⁄ट्रैवल एजेण्ट या तो इसकी जानकारी नहीं देते या खुद नहीं जानते। एक और बात भी है और वो यह कि एक बड़ी झील के आस–पास एक–दो छोटी झीलें भी हैं जिनके बारे हर कोई नहीं जानता। बाहर से आने वाले पर्यटक के लिए ऐसी जगहों पर पहुंच पाना असंभव नहीं तो काफी मुश्किल है।
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