चौथा दिन–
कल मैं दोपहर बाद घांघरिया पहुँचा था। कुछ खास चहल–पहल नहीं दिखी। यह समय या तो नीचे गोविन्दघाट से घांघरिया आकर कमरे खोजने का था या फिर नीचे गोविन्दघाट जाने का या फिर घांघरिया की गलियाें में टहलने का। लेकिन आज सुबह के समय लोग हेमकुण्ड साहिब या फिर फूलों की घाटी के लिए निकल रहे थे। रिमझिम बारिश हो रही थी। ऐसे में फूलों की घाटी जाना ठीक नहीं था। मौसम साफ होता तो फूलों की घाटी जाना अच्छा रहता। तो अधिकांश लोग हेमकुण्ड साहिब ही जा रहे थे। मैं भी इनमें से एक था।
कल मैं दोपहर बाद घांघरिया पहुँचा था। कुछ खास चहल–पहल नहीं दिखी। यह समय या तो नीचे गोविन्दघाट से घांघरिया आकर कमरे खोजने का था या फिर नीचे गोविन्दघाट जाने का या फिर घांघरिया की गलियाें में टहलने का। लेकिन आज सुबह के समय लोग हेमकुण्ड साहिब या फिर फूलों की घाटी के लिए निकल रहे थे। रिमझिम बारिश हो रही थी। ऐसे में फूलों की घाटी जाना ठीक नहीं था। मौसम साफ होता तो फूलों की घाटी जाना अच्छा रहता। तो अधिकांश लोग हेमकुण्ड साहिब ही जा रहे थे। मैं भी इनमें से एक था।