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Friday, June 22, 2018

माण्डू–सिटी ऑफ जॉय (दूसरा भाग)

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अब किले की दक्षिण दिशा में दो मुख्य इमारतें बची थीं– बाज बहादुर का महल एवं रानी रूपमती का मण्डप। माण्डव का नाम सम्भवतः इन्हीं दो इमारतों के साथ सर्वाधिक जाना जाता रहा है। रानी रूपमती का महल माण्डव की पहाड़ी की ऊँची कगार पर बना है जबकि बाजबहादुर का महल पहाड़ी की ढलान पर नीचे की ओर बना है। पहले बाज बहादुर के महल में चलते हैं। लाल पत्थरों से बनी इस इमारत का निर्माण 1508 में नासिर शाह खिलजी के द्वारा कराया गया था। इस इमारत के चारों ओर किले जैसी संरचना बनी थी जिसके अवशेष वर्तमान में भी दिखाई पड़ते हैं।

Friday, June 15, 2018

माण्डू–सिटी ऑफ जॉय (पहला भाग)

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आज मेरी मंजिल माण्डू या माण्डव थी। मेरी जानकारी में तो इसका नाम माण्डू ही था लेकिन स्थानीय रूप से इसका नाम माण्डव है। महेश्वर बस स्टैण्ड पर पता लगा कि माण्डव के लिए कोई सीधी बस नहीं है और इसके लिए धामनोद जाना पड़ेगा। जैसे ही मैं स्टैण्ड पहुँचा सुबह 8.15 पर मुझे धामनोद की बस मिल गयी। महेश्वर से धामनोद की दूरी 13 किमी और किराया 15 रूपये। अब चूँकि धामनोद,इन्दौर–महू–सेंधवा होकर महाराष्ट्र के धुले जाने वाले मुख्य मार्ग पर अवस्थित है तो इस वजह से यह एक महत्वपूर्ण जंक्शन है।
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