Showing posts with label महाराष्ट्र. Show all posts
Showing posts with label महाराष्ट्र. Show all posts

Friday, November 23, 2018

ब्रहमगिरि–गोदावरी उद्गम

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

चौथा दिन–
आज मेरा नासिक में चौथा दिन था। कल की थकान की वजह से आज उठने में देर हो गयी। कई जगहें घूमने से छूट गयी थीं। समय कम रह गया था। पाण्डवलेनी या पाण्डव गुफाएं भी मैं नहीं जा सका था। हरिहर फोर्ट भी जाने के लिए मैं उत्सुक था। वैसे ये दोनों जगहें बहुचर्चित हैं। कई बार इनका नाम सुन चुका था सो तय किया कि यहाँ बाद में चलेंगे। अभी तो वहीं चलेंगे जहाँ से नासिक और आस–पास के क्षेत्र को जीवन देने वाली माँ गोदावरी का जन्म स्थल है। गोदावरी का उद्गम अर्थात ब्रह्मगिरि।

Friday, November 16, 2018

अंजनेरी–हनुमान की जन्मस्थली

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

11 बज रहे थे और मैं अंजनेरी की चढ़ाई की ओर चल पड़ा। इस समय मैं समुद्रतल से लगभग 2500 फीट की ऊँचाई पर था। एक भेड़ चरवाहे से पता चला कि शुरू में तीन किमी का लगभग सीधा रास्ता है लेकिन उसके बाद अगले तीन किमी सीढ़ियां चढ़नी पड़ेंगी। शुरू में लगभग आधे किमी के बाद ही एक जैन मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। मूर्ति का निर्माण तो हो चुका है लेकिन मंदिर का निर्माण अभी चल रहा है। पास ही एक छोटा सा आश्रम भी है जहाँ से मंदिर निर्माण का संचालन किया जा रहा है। मुझे प्यास लगी थी सो मैंने आश्रम में पानी पिया और आगे बढ़ गया। रास्ते के दोनों तरफ गायों व बकरियों के झुण्ड के साथ चरवाहे यहाँ–वहाँ दिखायी पड़ रहे थे। पहाड़ी पर चारों तरफ बिखरी हुई हरी–भरी घासें और पेड़ अत्यन्त मनमोहक दृश्य का सृजन कर रहे थे।

Friday, November 9, 2018

त्र्यंबकेश्वर

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

पंचवटी घूमने में 11 बज गये। सूत्रों से पता चला था कि नासिक–इगतपुरी रोड पर एक नया जैन मंदिर बना है जिसकी वास्तुकला दर्शनीय है। तो सबसे पहले ऑटो के सहारे मैं नासिक के केन्द्रीय बस स्टैण्ड पहुँचा। नासिक के केन्द्रीय बस स्टैण्ड से जैन मंदिर की दूरी तो केवल 15 किमी है लेकिन कौन सी बस जाएगी,ये पता करना भी काफी कठिन काम था। इस काम में भाषा सबसे बड़ी बाधा है। किसी ने बताया कि वडीवर्हे जाने वाली बस उधर होकर ही जाएगी। आधे घण्टे तक स्टेशन परिसर में बेवकूफों की तरह भागदौड़ करने के बाद एक बस मिली।

Friday, November 2, 2018

नासिक

सितम्बर का महीना। ऊमस भरी गर्मी। घुमक्कड़ ऐसे में चल पड़ा उस स्थान की ओर,जहाँ भगवान राम ने अपनी पर्णकुटी बनाई थी अर्थात् नासिक। सोचा था,एक दिन पर्णकुटी के बगल में किसी झोपड़ी में विश्राम करूँगा। जंगल में भगवान राम के चरण जहाँ पड़े होंगे,उन स्थानों का दर्शन करूँगा। उस गुफा में मैं भी एक दिन गुजारूँगा जहाँ राम ने माँ सीता को सुरक्षित रखा था। उस जगह को भी देखने की कोशिश करूँगा जहाँ मारीच का वध हुआ था। शायद मुझे ध्यान नहीं आया कि उस समय से अब तक कई युग बीत चुके हैं। अब तक तो वहाँ वृक्षों के जंगल की जगह कंक्रीट की इमारतों का जंगल खड़ा हो गया होगा।

Friday, March 30, 2018

औरंगाबाद की सड़कों पर

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

26 दिसम्बर
आज हमारी इस यात्रा का अंतिम दिन था। अर्थात औरंगाबाद की यात्रा का अंतिम दिन,क्योंकि यात्रा का अंत तो कभी हो ही नहीं सकता। हमारी जीवन यात्रा के साथ ये छोटी–मोटी यात्राएं तो चलती ही रहेंगी आैर जीवन यात्रा में नयी–नयी कहानियां जुड़ती रहेंगी। फिर भी एक बड़े चक्र का छोटा सा भाग पूर्ण होने वाला था। औरंगाबाद से बाहर निकल कर घूमने का काम पूरा हो चुका था और अब औरंगाबाद शहर की सड़कें ही बची थीं। काम कम था और समय पर्याप्त। ऐसे में थोड़ा अधिक सोया जा सकता है। अब छोटी कक्षाओं में कभी पढ़ी गयी संस्कृत की उस सूक्ति– "दीर्घसूत्री विनश्यति" काे भूलकर हम भी सुबह के पौने सात बजे तक सोते रहे।

Friday, March 23, 2018

देवगिरि उर्फ दौलताबाद

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–


2 बजे हम दौलताबाद किले पहुँचे। दौलताबाद अपने इतिहास,महत्व और विशेषताआें की वजह से कम और मुहम्मद तुगलक के अदूरदर्शी फैसलों की वजह से अधिक जाना जाता है। दौलताबाद का किला औरंगाबाद से एलोरा जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 52 के किनारे स्थित है। मुख्य सड़क छोड़कर किले की ओर बढ़ने पर बायें हाथ टिकट काउण्टर है।किले का प्रवेश शुल्क 15 रूपये है यानी अजंता या एलोरा का आधा। वैसे प्रवेश शुल्क कम या अधिक होने से इसके महत्व में कोई अंतर नहीं आता। इसके बाद दाहिनी तरफ मुड़कर आगे बढ़ने पर बायें हाथ किले का मुख्य प्रवेश द्वार है। मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर एक लम्बा पथरीला रास्ता मिलता है।

Friday, March 16, 2018

एलोरा–धर्माें का संगम (दूसरा भाग)

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

गुफा संख्या 29 घूम लेने के बाद अब हमें गुफा संख्या 30-34 में जाना था। इसके लिए हमें पुनः तिराहे तक वापस आकर सड़क पकड़नी पड़ती। मैंने वहाँ तैनात सुरक्षा गार्ड से पूछा तो उसने शार्टकट बता दिया। चट्टानों और झाड़ियों के बीच से होकर जाने वाली पगडण्डी पर हम चलते बने। बसें भी दूर से दिख रही थीं। ऊँचे–नीचे रास्ते पर चलते हुए संगीता कुढ़ रही थी और साथ ही मुझे कोस भी रही थी। दूर पक्की सड़क पर चलती बसों को देखकर यह कुढ़न और भी बढ़ जा रही थी। वैसे यह दूरी आधा किमी से अधिक नहीं है। जल्दी ही हम भी अपनी मंजिल तक पहुँच गये। अर्थात गुफा संख्या 30-34 में।

Friday, March 9, 2018

एलोरा–धर्माें का संगम (पहला भाग)

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

25 दिसम्बर
कल देर शाम हम अजंता से लौटे थे। अच्छा और शुद्ध शाकाहारी होटल खोजने में थोड़ा समय गँवाया। औरंगाबाद सेन्ट्रल बस स्टेशन के आस–पास कुछ देर तक टहलते रहे। तो सोने में थोड़ी देर होनी ही थी। और दिन भर भागदौड़ करने के बाद रात में थोड़ी देर से सोयेंगे तो उठने में भी थोड़ी देर होनी ही थी। और देर का मतलब सुबह उठने में पौने सात बज गये। आज एलोरा की तैयारी थी। कल अजंता में थे। वैसे तो औरंगाबाद से एलोरा की दूरी अजंता की तुलना में काफी कम है लेकिन कल रविवार के दिन अजंता में मनुष्यों की भीड़ और भीड़ के सेल्‍िफयाना अंदाज ने हमें अंदर तक हिला दिया था और हम जल्दी निकलने के लिये तैयार होेने में काफी तेजी दिखा रहे थे।

Friday, March 2, 2018

अजंता–हमारी ऐतिहासिक धरोहर (दूसरा भाग)

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–


अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में औरंगाबाद से लगभग 100 किमी की दूरी पर अवस्थित हैं। अपने स्वर्णिम काल के इतिहास की परतों में गुम हाे जाने के बाद 1819 में मद्रास सेना के कुछ यूरोपीय सैनिकों ने अनजाने में ही इन गुफाओं का पता लगाया। बाद में सन 1824 में जनरल सर जेम्स अलेक्जेण्डर ने राॅयल एशियाटिक सोसायटी की पत्रिका में सर्वप्रथम अजंता गुफाओं पर लेख प्रकाशित कर इन्हें शेष विश्व की नजर में लाया।
ये गुफाएँ वाघोरा नदी की घाटी में निकटवर्ती धरातल से 76 मीटर की ऊँचाई पर घोड़े की नाल के आकार में खोदी गयीं हैं। अजंता गुफाओं की समुद्रतल से ऊँचार्इ 439 मीटर या 1440 फुट है।

Friday, February 23, 2018

अजंता–हमारी ऐतिहासिक धरोहर (पहला भाग)

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें–

24 दिसम्बर
औरंगाबाद आने का मतलब है हमारी ऐतिहासिक धरोहरों अजंता और एलोरा से मुलाकात। आज रविवार था। सोमवार के दिन अजंता की गुफाएं बन्द रहतीं हैं जबकि मंगलवार के दिन एलोरा की। और हमारे पास कुल तीन दिन ही थे। भारत जैसे विशाल देश के दूर–दराज के किसी गाँव में रहने का मतलब होता है कि देश के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँचने में ही कई दिन लग जायेंगे। हम भी जब ऐसे ही अपने गाँव से एक सप्ताह की यात्रा पर निकलते हैं तो चार या तीन दिन तो अपनी मंजिल वाली जगह तक पहुँचने और वापस घर लौटने में रास्ते में ही बीत जाते हैं। ट्रेनों की लेटलतीफी और भी बुरा हाल कर देती है। यहाँ भी वही हाल था। दो दिन तो पहुँचने में भी लग गये। दो दिन वापस जाने में लग जायेंगे। बचे तीन दिन। उसमें भी कोई जगह किसी दिन खुलती है तो कोई किसी दिन। तो आज हमने अजंता जाने का फैसला किया।
Top