सुबह के 5.15 बजे मैं लालगंज से अपने मित्र के घर से रवाना हो गया। मेरी अगली मंजिल थी–बाबा वैद्यनाथ का घर यानी देवघर। लेकिन मंजिल तक पहुँचने से पहले लम्बी यात्रा करनी थी। प्राथमिकता थी कि सुबह के ठण्डे मौसम में जितनी भी अधिक दूरी तय करनी संभव हो,तय हो जाय। उसके बाद तो धूप में जलना ही था। मुझे हाजीपुर व पटना के अलावा दोनों शहरों के बीच गंगा नदी पर बने गाँधी सेतु को भी पार करना था। सुबह के समय भी सड़कों पर काफी ट्रैफिक था जिस कारण स्पीड नहीं बन पा रही थी। गाँधी सेतु पर तो जाम ही लगा था क्योंकि एक तरफ की लेन की मरम्मत चल रही थी।
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Friday, June 7, 2019
Friday, April 26, 2019
रामेश्वरम
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सुबह के 10 बजे मदुरई से चलने के बाद हम चलते ही रहे। 2 बजे तक हम 165 किमी की दूरी तय कर भारत की मुख्य भूमि को छोड़कर,पंबन ब्रिज पर पहुँच चुके थे। चारों तरफ पानी ही पानी देखकर गाड़ी रोकी गयी। समु्द्र को हनुमान की तरह लांघता पुल रोमांच पैदा कर रहा था। वैसे पुल से गुजरते हुए यह कतई महसूस नहीं हो रहा था कि हम समुद्र के ऊपर से गुजर रहे हैं। खट्टे–मीठे अनन्नास की फांके खाते हुए इस पुल पर टहलना और फोटो खींचना कितना आनन्ददायक है,यह यहाँ पहुॅंच कर ही जाना जा सकता है। गाड़ी का ड्राइवर लाख शोर मचाये,हम तो अपनी वाली ही करेंगे।
Friday, December 14, 2018
केदारनाथ–बाबा के धाम में
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सुबह के साढ़े पाँच बजे सोकर उठा और आधे घण्टे में बाहर निकल गया। शायद सफेद चोटियों पर सूरज की पीली रोशनी पड़ रही हो। लेकिन अभी तो बाहर रास्ते के किनारे पीली लाइटें जल रही थीं। सफेद चोटियों पर कालिमा छाई हुई थी। मंदिर बिल्कुल खाली था। सामने के प्रांगण में एक स्थान पर अँगीठी जल रही थी जहाँ कुछ लोग ठण्ड से दो–दो हाथ कर रहे थे। वो भी मेरी तरह यूँ ही टहलते हुए आ गये थे। यहाँ तो कोई "बेघर" शायद जीवन संघर्ष में सफल नहीं हो सकता। मेरे हाथों में भी गलन हो रही थी क्योंकि दस्ताने नहीं थे। चेहरा और होठ सुन्न हो रहे थे। सूरज उजले पहाड़ों की ओट में था। कुछ ही मिनटों में मैं काँपने लगा। एक चाय वाले की अँगीठी के पास मैं भी खड़ा हुआ।
Friday, December 7, 2018
केदारनाथ के पथ पर
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जय केदारǃ
भीमबली से 1 किमी चलकर रामबाड़ा पहुँचा तो मंदाकिनी की विनाशलीला की याद आ गयी। एक झोपड़ी में मैगी बन रही थी। जीभ पर पानी आ गया लेकिन समय नहीं था। मैंने दुकान वाले से पूछा– "रामबाड़ा किधर है?"
भीमबली से 1 किमी चलकर रामबाड़ा पहुँचा तो मंदाकिनी की विनाशलीला की याद आ गयी। एक झोपड़ी में मैगी बन रही थी। जीभ पर पानी आ गया लेकिन समय नहीं था। मैंने दुकान वाले से पूछा– "रामबाड़ा किधर है?"
उसने हाथ से इशारा कर दिया। लेकिन उधर तो पत्थर ही पत्थर थे। समझते देर न लगी कि सबकुछ मंदाकिनी के गर्भ में समा गया। लेकिन शायद मंदाकिनी यहाँ जितनी सुंदर लग रही थी उतनी मुझे अब तक कहीं नहीं लगी थी। यह विनाश के बाद वाली मंदाकिनी है। शायद इसीलिए इतनी सुंदर है। क्योंकि विनाश के बाद ही सृजन का आरम्भ होता है और सृजन अवश्य ही सुंदर होता है।
Friday, November 30, 2018
वाराणसी से गौरीकुण्ड
इस बार की यात्रा कुछ विशेष थी। क्योंकि उद्देश्य कुछ विशेष था। उद्देश्य था बाबा केदारनाथ के दर्शनों का। अवसर था दशहरे की छुटि्टयों का फायदा उठाने का। तो माध्यम बनी एक रेलगाड़ी जिसका नाम है– हरिहर एक्सप्रेस। इसका नाम भले ही हरिहर एक्सप्रेस है लेकिन यह "हरि के द्वार" अर्थात हरिद्वार के बगल से गुजर जाती है। वहाँ से अन्दर प्रवेश करने के लिए दूसरे जतन करने पड़ते हैं।
Friday, November 9, 2018
त्र्यंबकेश्वर
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पंचवटी घूमने में 11 बज गये। सूत्रों से पता चला था कि नासिक–इगतपुरी रोड पर एक नया जैन मंदिर बना है जिसकी वास्तुकला दर्शनीय है। तो सबसे पहले ऑटो के सहारे मैं नासिक के केन्द्रीय बस स्टैण्ड पहुँचा। नासिक के केन्द्रीय बस स्टैण्ड से जैन मंदिर की दूरी तो केवल 15 किमी है लेकिन कौन सी बस जाएगी,ये पता करना भी काफी कठिन काम था। इस काम में भाषा सबसे बड़ी बाधा है। किसी ने बताया कि वडीवर्हे जाने वाली बस उधर होकर ही जाएगी। आधे घण्टे तक स्टेशन परिसर में बेवकूफों की तरह भागदौड़ करने के बाद एक बस मिली।
Friday, June 1, 2018
ओंकारेश्वर–शिव सा सुंदर
आॅटो वाले को 20 रूपये चुकाकर मैं 3.15 बजे ओंकारेश्वर में नर्मदा पुल के पहले उतर गया। मोर्टक्का से ओंकारेश्वर बस स्टैण्ड का किराया 10 रूपये है लेकिन शहर में अन्दर जाने के लिए दस रूपये और भुगतना पड़ता है। ऑटो में सवार अन्य लोग पूरी तरह दर्शनार्थी थे और इसी जगह उतरने वाले थे क्योंकि उन्हें नर्मदा में स्नान कर ओंकार जी के दर्शन करना था। ओंकार जी का दर्शन तो मु्झे भी करना था लेकिन मुझे इसके अलावा भी बहुत कुछ देखना सुनना था। इसलिए मैं भी इसी स्थान पर ऑटो से उतरा। ऑटो से उतरने से पहले ही होटल व लॉज वाले गले पड़ना शुरू हो गये थे।
Friday, March 16, 2018
एलोरा–धर्माें का संगम (दूसरा भाग)
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गुफा संख्या 29 घूम लेने के बाद अब हमें गुफा संख्या 30-34 में जाना था। इसके लिए हमें पुनः तिराहे तक वापस आकर सड़क पकड़नी पड़ती। मैंने वहाँ तैनात सुरक्षा गार्ड से पूछा तो उसने शार्टकट बता दिया। चट्टानों और झाड़ियों के बीच से होकर जाने वाली पगडण्डी पर हम चलते बने। बसें भी दूर से दिख रही थीं। ऊँचे–नीचे रास्ते पर चलते हुए संगीता कुढ़ रही थी और साथ ही मुझे कोस भी रही थी। दूर पक्की सड़क पर चलती बसों को देखकर यह कुढ़न और भी बढ़ जा रही थी। वैसे यह दूरी आधा किमी से अधिक नहीं है। जल्दी ही हम भी अपनी मंजिल तक पहुँच गये। अर्थात गुफा संख्या 30-34 में।
Friday, January 26, 2018
जागेश्वर धाम
आज मैं जागेश्वर धाम जा रहा था। रात में जल्दी सो गया था फिर भी घर से काठगोदाम तक की यात्रा और कटारमल के सूर्य मन्दिर तक की भागदौड़ में इतना थक गया था कि सुबह उठने में साढ़े पाँच गये। अल्मोड़ा के इस होटल में,जिसमें मैं ठहरा था,पानी की सप्लाई आज भी नहीं आ रही थी। शायद पानी भी दीपावली की छुट्टी पर था या फिर गुलाबी ठण्ड के आगमन की तैयारी कर रहा था। मैंने होटल मैनेजर से पूछा तो उसने बताया कि दो–दो कनेक्शन हैं और दोनाें में पानी नहीं आ रहा है। उसने यह भी जानकारी दी कि मैंने कल कटारमल जाने के लिए जहाँ से चढ़ाई शुरू की थी अर्थात कोसी,उसी कोसी से उसकी पानी की सप्लाई आती है।
Friday, August 5, 2016
ओंकारेश्वर–महाकालेश्वर
मेरा यह यात्रा कार्यक्रम कुल छः दिनों का था। 15 अक्टूबर 2009 से 20 अक्टूबर 2009 तक। मेरे मित्र ईश्वर जी भी मेरे साथ थे। हमारा रिजर्वेशन कामायनी एक्सप्रेस,1072 अप में था जो वाराणसी से लाेकमान्य तिलक टर्मिनल को जाती है। वाराणसी से इसका प्रस्थान समय शाम 4 बजे था जबकि हम सुबह 10 बजे ही वाराणसी पहुंच गये थे। सो हमने सोचा कि समय का सदुपयोग कर लिया जाय। वाराणसी में बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने से बड़ी चीज क्या हो सकती है इसलिए खाना वगैरह खाया और आराम से टहलते हुए पहुंच गये बाबा के दर पर। पर जब दर्शन की लम्बी लाइन और पण्डों की जोर जबरदस्ती देखी तो मन बिदक गया। डर यह भी था कि कहीं लाइन में बहुत ज्यादा समय लग गया तो ट्रेन छूट जायेगी। प्लान फेल हो गया। हार मानकर गंगा मैया की शरण ली। दशाश्वमेध घाट पर बैठ कर गंगा दर्शन का लाभ लिया और स्टेशन को वापस हो लिये।
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