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Friday, November 11, 2016

हरिद्वार और आस–पास

इस यात्रा के बारे में शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें–

28 मई की शाम को थके होने के कारण अगले दिन के लिए हम कोई प्रोग्राम तय नहीं कर पाये। अभी हमारे पास चार दिन थे क्योंकि हमारा वापसी का रिजर्वेशन 1 जून को था और घूमने के स्थान भी दिमाग में कई थे–हरिद्वार,ऋषिकेश,मंसा देवी–चण्डी देवी मंदिर,राजाजी नेशनल पार्क वगैरह–वगैरह। अगला दिन रविवार था,अतः भीड़–भाड़ वाली बात भी दिमाग में थी क्योंकि शनिवार और रविवार किसी भी पर्यटन स्थल के लिए वीकेण्ड मनाने का दिन होता है। 28 मई की शाम को हरिद्वार के एक रेस्टोरेण्ट में खाना खाने के बाद मैंने सबको वापस कमरे पर भेज दिया और स्वयं आइसक्रीम पैक कराने लगा। इसी बीच भयंकर आँधी–तूफान का दौर शुरू हुआ  जिसमें मैं घिर गया और घण्टे भर बाद ही कमरे पहुंच सका। इस आंधी–पानी का असर अगले दिन देखने को मिला। बिजली व्यवस्था ध्वस्त हो गयी।

Friday, October 21, 2016

हरिद्वार–यात्रा का आरम्भ

हरिद्वार कहिए या हरद्वार या और कुछ भी। हरिद्वार तो इसलिए कहा जाता है कि श्री बद्रीनारायण की यात्रा या चार धाम यात्रा का शुभारम्भ इसी स्थान से होता है और उनके हरि नाम के कारण इसको हरिद्वार कहा जाता है। शिवजी के परमधाम केदारनाथ की यात्रा भी यहीं से आरम्भ होती है।
हर की पैड़ी हरिद्वार का सबसे प्रसिद्ध स्थान है। इसके अतिरिक्त हरिद्वार में पर्यटन की दृष्टि से दक्ष प्रजापति का मन्दिर,मनसा देवी,चण्डी देवी व माया देवी के मन्दिर,भीमगोडा मन्दिर व कुण्ड,सप्तर्षि आश्रम,परमार्थ आश्रम,भारत माता मन्दिर तथा शान्ति कुंज आदि प्रमुख स्थल हैं। लेकिन हम तो इनमें से किसी को भी लक्ष्‍य बनाकर नहीं चले थे। हमारा लक्ष्‍य तो कहीं और था और वह था सुरम्य प्रकृति की गोद में,पहाड़ों की शीतल घाटियों में बसे यमुनोत्री व गंगोत्री मन्दिर। ये वे स्थान हैं जहां देवदार के जंगलों से ढके तथा बर्फीली चोटियों वाले पहाड़ उत्साही दर्शनार्थियों को मूक भाव से,इशारों ही इशारों में बुलाते रहते हैं।

Friday, August 26, 2016

हरिद्वार–मसूरी

26 मई 2010 को जी.आर्इ.सी़ प्रवक्ता की मेरी हरिद्वार में परीक्षा थी। दो मित्र और भी मिल गये जिनका भी लक्ष्‍य यही था। फिर क्या था, बन गया कार्यक्रम हरिद्वार और मसूरी की यात्रा का। अत्यधिक भीड़ होने के कारण ट्रेन में आरक्षण नहीं हो पाया और हरिहरनाथ एक्सप्रेस (मुजफ्फरपुर–अम्बाला कैण्ट) में आर.ए.सी. टिकट ही मिल पाया। हमारी ट्रेन बलिया से 24 मई को दिन में लगभग 1 बजे रवाना हुई। यह हरिद्वार होकर नहीं जाती अतः 25 मई को सुबह 7 बजे के आस–पास  हमने लक्सर में इसे छोड़ दिया। लक्सर पहुंचने के पहले ही ट्रेन में अपने क्षेत्र की तुलना में मौसम में हल्के–फुल्के अन्तर का आभास हो रहा था। चूंकि हमारी ट्रेन समय से थी अतः हमने सोच रखा था कि लक्सर से तत्काल आरक्षण द्वारा वापसी का टिकट ले लिया जाय। परन्तु लक्सर एक छोटा सा कस्बा है और इण्टरनेट द्वारा आरक्ष्‍ाण करने वाली एक ही दुकान थी जो उस दिन बन्द थी और रेलवे काउण्टर के क्लर्क की घूसखोरी की वजह से लाइन में लगे किसी भी व्यक्ति का आरक्षण नहीं हो सका। हम बेवकूफ बन कर रह गये। अन्ततः हमने हरिद्वार जाने का निश्चय किया।
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