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वेल्लोर से शाम के 7.30 बजे हम मदुरई के लिए रवाना हो गये। अब रात भर चलना था। सोच कर ही चक्कर आ रहे थे। ड्राइवर भी जुनूनी था। चल पड़े तो चल पड़े। सुबह के समय ही तिरूमला से सीधे मदुरई के लिए निकल लिए होते तो शाम तक या 8-9 बजे तक मदुरई में होते। दिनभर बस की खिड़की से तमिलनाडु का जनजीवन देखने को मिला होता और रात मदुरई के किसी होटल में बीतती। लेकिन ऐसा होना किस्मत में नहीं था। प्लान ड्राइवर का था। छोटी सी ट्रैवलर गाड़ी। पैर फैलाने की भी जगह नहीं थी तो पैरों को सूजन झेलनी ही थी।