Friday, March 10, 2017

चिल्का झील

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तीसरा दिन–
आज पुरी में हमारा तीसरा दिन था। आज हमने चिल्का झील जाने का प्लान बनाया था। चिल्का झील जाने के लिए पुरी से बस आपरेटर सप्ताह में तीन दिन– सोमवार,बुधवार और शुक्रवार को टूर आयोजित करते हैं। इसमें प्रति सीट किराया 220 रूपये है। बस के अतिरिक्त आटो या चारपहिया गाड़ी भी चिल्का झील के लिए बुक की जा सकती है परन्तु इनका किराया बहुत महंगा है। बस वाला विकल्प सर्वोत्तम है। अतः हमने बस में दो सीटें एक दिन पहले ही बुक कर ली थीं। चिल्का झील के लिए पर्यटकों की भीड़ भी सम्भवतः कम ही होती है क्योंकि जिस बस में हम बैठे थे वह एक तिहाई से ज्यादा खाली थी।
सुबह के 6.30 बजे हम चक्रतीर्थ रोड स्थित स्टैण्ड पर पहुंच गये परन्तु बस चली 7.30 बजे। इस टूर प्लान में झील के अतिरिक्त एक मन्दिर अलारनाथ का दर्शन भी शामिल था। पुरी से चिल्का झील के किनारे स्थित सतपदा नामक स्थान लगभग 50 किमी दूर है जहां हमें पहुंचना था। लेकिन हमारा पहला पड़ाव अलारनाथ मन्दिर था जो पुरी से 20 किमी दूर है। वैसे तो इस तरह के टूर में जबरदस्ती एक मन्दिर को घुसाना कुछ जमता नहीं लेकिन लेकिन मर्जी बस वालों की। इस मर्जी के पीछे भी उनकी एक थ्योरी काम करती है जिसका पता बाद में चला। इस थ्योरी के अनुसार यात्रा का आरम्भ किसी देवस्थान से ही करना चाहिए। चिल्का झील पहुंचने के लिए इसके अलावा और कोई दूसरा आसान विकल्प उपलब्ध नहीं है।

लगभग 45 मिनट बाद बस ब्रह्मगिरि नामक स्थान पहुंची जहां अलारनाथ मन्दिर है। यह एक ग्रामीण परिवेश वाला एक छोटा सा बाजार है। बस जहां रूकी वहां से अलारनाथ मन्दिर 5 मिनट का पैदल रास्ता है लेकिन गाइड ने समय की कमी बताकर आटो से जाने को कहा। फलतः सभी यात्रियों काे जाने व आने में 5–5 रूपये यानी 10 रूपये का चूना लग गया। मन्दिर जब पहुंचे तो यहां भी नजारा किसी बड़े मन्दिर जैसी व्यवस्था का था। चप्पल–जूते जमा करने का तो टिकट लगना समझ में आता है,कैमरा व मोबाइल लेकर अन्दर जाने का टिकट अलग से था। अलारनाथ मन्दिर कितना प्राचीन है ये तो मैं नहीं जानता लेकिन यह मुझे बहुत खूबसूरत लगा। और जब मैंने कैमरे से फोटो खींचना शुरू किया तो एक पंडा बीच में आ गया। वजह यह थी कि मैंने उसके कथनानुसार चढ़ावा नहीं चढ़ाया था। मैं भी अड़ गया और फोटो खींच कर ही आया। मन्दिर से लौटने के बाद सभी ने छोटी–छोटी दुकानों पर नाश्ता किया। शाकाहारी प्राणियों को एक दुकान पर 5 रूपये में बिक रहे मालपुए बहुत स्वादिष्ट लगे और हमने कुछ मालपुए आगे की यात्रा के लिए भी पैक करा लिए।

खैर,इस सबके बाद हम अपनी मुख्य यात्रा,चिल्का झील के किनारे सतपदा के लिए चल पड़े और अगले एक घण्टे के अन्दर हम चिल्का झील के किनारे थे। यहां पहुंचने के बाद बस के गाइड के कथनानुसार पहला काम करना था– भोजन की व्यवस्था। भोजन की व्यवस्था अर्थात रेस्टोरेण्ट में खाने के लिए बुकिंग कराना। क्योंकि जब झील में बोटिंग करने के बाद हम लौटेंगे तो बिना पहले से बुक कराये खाना नहीं मिलेगा। वास्तव में यह एक छोटा सा गांव है जहां पर्यटन सुविधाएं अभी पूरी तरह विकसित नहीं हैं। होटल में जब हम खाने की बुकिंग के लिए पहुंचे तो पुरानी समस्या सामने आ गयी–
"वेज थाली या ....................।"
हमने धीरे से सरकना ही उचित समझा। हम घास–पात खाने वाले प्राणी भला भोजन का स्वाद क्या जानें। यह वेज थाली भी 80 रूपये की थी। हम सरक तो लिए लेकिन भोजन की व्यवस्था तो करनी ही थी। समुद्र के किनारे की तरफ बढ़े तो एक झोपड़ी में 30 रूपये प्लेट की शाकाहारी पूड़ी–सब्जी मिल रही थी। हमने वहीं चाय पी और बोटिंग के बाद के खाने के लिए पूड़ी–सब्जी का आर्डर दे दिया। जैसे–तैसे भोजन की व्यवस्था हुई।
बोटिंग के लिए हमें गाइड के दिशानिर्देशों का पालन करना था। इसकी वजह भी थी। चिल्का झील में बोटिंग के लिए यहां के नाव वालों के कुछ अपने नियम–कानून हैं। ये नावें इंजन चालित हैं। इन इंजन चालित नावों को इनके नाविक बोट–स्टैण्ड से डाल्फिन प्वाइंट तक ले जाते हैं जो इस सफर का सबसे रोमांचक स्थान है। डाल्‍िफनों को उनके प्राकृतिक वातावरण में पानी में गोते लगाते देखना अद्भुत होता है। लेकिन ये भी किस्मत का खेल होता है। डाल्फिनों को देखने की संभावना उनके समागम काल में सर्वाधिक होती है जो कि संभवतः जाड़े का मौसम आरम्भ होने के साथ ही शुरू हो जाता है। डाल्फिनें हमारी सुविधा के हिसाब से तो डांस करेंगीं नहींǃ

स्पीड बोट की इस कुल यात्रा में 3 से 3.30 घण्टे लगते हैं। हर बोट में छः लोगों के बैठने के लिए ठीक–ठाक सीट बनी हैं। हां,अगर सवार होना चाहें तो एक बोट पर पचीसों लोग भी सवार हो सकते हैं और किसी विपरीत परिस्थिति में बोट के असंतुलित होने पर समुद्र में गोते भी लगा सकते हैं। हमारे गाइड ने बस में ही हर यात्री से उसकी रूचि और खर्च करने की इच्छा के हिसाब से सेटिंग कर दी। कुछ लोग छः के समूह में चलने को तैयार थे तो कुछ दाे या बारह के समूह में भी जाना चाहते थे। हम दो थे और हमने एक बोट पर सीट की उपलब्धता के हिसाब से छः का समूह चुनना चाहा तो चार संख्या वाले एक परिवार को मिलाकर छः का समूह बना दिया गया। हमारे समूह में हम दोनों के अलावा प0 बंगाल के रहने वाले एक मिश्रा जी का परिवार था जो बड़े हंसमुख लोग थे।
ठीक 10 बजे हम अपनी नाव पर सवार हो गये। हमारे महानाविक ने इंजन स्टार्ट किया और हमारी नाव फर्राटे के साथ झील की छाती पर हरहराती हुई चल पड़ी। कुछ दूर तक तो हमें बोट–स्टैण्ड दिखता रहा और हमें समझ आता रहा कि हम किधर से आये हैं और किधर जा रहे हैं। लेकिन जब कुछ दूर निकल गये और स्टैण्ड नजर आना बन्द हो गया तो हमारा अन्दाजा भी खत्म हो गया क्योंकि चारों तरफ केवल पानी ही पानी दिखायी दे रहा था और फिर हमने भी यह मान लिया कि धरती गोल है और लगातार चलते रहें तो एक न एक दिन उस जगह पर फिर पहुंच ही जायेंगे जहां से चले थे। ऐसी दशा में अब हमारा नाविक ही दिशा का अनुमान लगाने में सक्षम दिख रहा था।
कुछ देर बाद झील के किनारे दिखने शुरू हो गये और हमको समझ में आ गया कि हम समुद्र में नहीं बल्कि झील में हैं। दूर किनारों पर नारियल के पेड़ों के बीच बने घर बहुत ही सुन्दर दृश्य उपस्थित कर रहे थे। चिल्का झील,अगर खारे पानी और मीठे पानी में अन्तर न किया जाय,तो भारत की सबसे बड़ी झील है। इसका क्षेत्रफल 1100 वर्ग किमी है। यह झील उड़ीसा के तीन जिलों पुरी,खोर्धा व गंजाम के अन्तर्गत फैली है। इन जिलों से झील में प्रवेश करने के स्थान भी अलग–अलग हैं। पुरी का सबसे नजदीकी प्रवेश स्थान सतपदा है जहां से हमने प्रवेश किया था। इस पूरी झील को हम एक दिन में नहीं घूम सकते।

झील यात्रा का अन्तिम बिन्दु डाल्फिन प्वाइंट ही था। वहां पहुंचकर हमारे नाविक ने इशारा किया और नाव रोक दी और हमारी किस्मत अच्छी थी कि हमें दो–तीन बार डाल्‍फिन का गोता लगाना देखने को मिला। लेकिन ये सब इतनी तेजी से हुआ कि मैं कैमरा घुमाता रह गया और एक भी अच्छी फोटो नहीं खींच सका। डाल्‍फिन प्वांइट से नाववाले ने कब नाव को वापस मोड़ दिया मुझे पता ही नहीं चला। मुख्य स्टैण्ड से 10 मिनट पहले हमारी नाव एक किनारे पर रूकी जहां प्लास्टिक के टेन्ट व झोपड़ियों इत्यादि में कुछ दुकानें दिखायी पड़ रही थीं। यहां भुनी हुई मछलियां,पानी वाला नारियल वगैरह मिल रहा था। हम नारियल खरीदने में व्यस्त थे तभी नाव वाले ने दूसरी तरफ इशारा किया तो हम पैदल ही बालू में उस तरफ चल पड़े। और केवल 5 मिनट चलने के बाद एक स्वप्नलोक सा दृश्य हमारे सामने था। हां,मैं उसे स्वप्नलोक ही कहूंगा क्योंकि ऐसा स्वच्छ चमकता समुद्र,ताकतवर लहरें और स्वच्छ फेनिल किनारा हमने पुरी और चन्द्रभागा में नहीं देखा था। कुछ देर के लिए मन सम्मोहित हो गया। मुझे महसूस हुआ कि समन्दर के पानी में केवल नमक ही नहीं रोमांस भी घुला होता है।

वास्तव में चिल्का झील और बंगाल की खाड़ी के बीच एक पतला सा जलविभाजक उस स्थान पर था जो दूर से महसूस नहीं हो रहा था। और इसे पार कर जब हम समुद्र के किनारे पहुंचे तो मनुष्य की भीड़–भाड़ से दूर एक स्वच्छ किनारा दिखा जिसे देखकर हमारा मन अभिभूत हो उठा।
ठीक 1.30 बजे अर्थात 3.30 घण्टे की यात्रा के बाद हमारी नाव स्टैण्ड पर पहुंच गयी। हम जल्दी से अपने उस झोपड़ी वाले पांच सितारा होटल में पहुंचे,बेन्च पर आसन जमाया और पूड़ी सब्जी का आर्डर दिया। दो बजे तक हम अपनी बस में पहुंच गये लेकिन बाकी यात्री अभी अपनी नान–वेज थाली में व्यस्त थे। लगभग तीन बजे बस पुरी के लिए रवाना हुई और 4.30 बजे तक हम जगन्नाथ की नगरी पुरी में थे।

अलारनाथ मन्दिर का एक पड़ोसी मन्दिर क्योंकि हमारे भारत में मनुष्यों के साथ–साथ मन्दिरों और देवताओं के भी पड़ोसी होते हैं

अलारनाथ मन्दिर







झील के किनारे बोट स्टैण्ड



हमारी स्पीड–बोट के महानाविक इंजन स्टार्ट करते हुए

दूर से झील के किनारे दिखता विशाल वटवृक्ष

बोट में सीटों के हिसाब से छः लोगों का समूह, लेकिन दिखाई तो केवल पांच ही दे रहे हैं। छठा कहां गयाǃ



नावों के आस–पास मंडराते प्रवासी पक्षी

मछली पकड़ने के लिए बांस गाड़कर उसमें जाल बांधी जाती है और झील के आस–पास के निवासियों की यही खेती है

पानी के असली तैराक




ये दृश्य मुझे बहुत ही दार्शनिक लगा



धूसर किनारे पर स्वच्छ चमकते फेन ने मन को सम्मोहित कर दिया

ऐसा दृश्य देखकर तो एक बार ऐसा लगा कि समन्दर के पानी में नमक ही नहीं रोमांस भी घुला होता है





फेन ही फेन

सारा पानी एक ही बार में पी गया

झील के किनारे पर कच्छप महाराज




झील के किनारे भी बन्धा बना है

समुद्री क्षेत्रों की असली फसल


अगला भागः कोणार्क और चन्द्रभागा

सम्बन्धित यात्रा विवरण–


चिल्का झील का गूगल मैप–

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