Friday, January 27, 2023

ग्यारहवाँ दिन– मनाली

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अटल सुरंग भारत की सबसे लम्बी सुरंगों में से एक है। यह मनाली को लद्दाख में लेह एवं स्पीति में काजा से जोड़ती है। इसकी लम्बाई 9.02 किलोमीटर है। यह रोहतांग दर्रे को बाईपास करती है। यह सुरंग समुद्रतल से 3100 मीटर की ऊँचाई पर बनायी गयी है। यदि यह सुरंग नहीं होती तो मुझे रोहतांग दर्रे से होकर गुजरने का सौभाग्य मिला होता। सुरंग के उत्तरी प्रवेश द्वार की अवस्थिति बहुत सुंदर है क्योंकि यह बिल्कुल चेनाब के किनारे बना हुआ है।
अटल टनल पार करने के बाद वातावरण पूरी तरह से बदल चुका था। हरे–भरे पहाड़ और ऊँचे–ऊँचे देवदार के पेड़ मन को मोह ले रहे थे। साथ ही ब्यास नदी का साथ मिलना तो मानो सोने पे सुहागा ही था। अटल टनल के बाद मनाली 24 किलोमीटर है और मनाली पहुँचने में मुझे लगभग 6 बज गये।

Friday, January 20, 2023

दसवाँ दिन– लोसर से चन्द्रताल

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आज यात्रा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिन था। यात्रा की कठिनाई का मुझे कुछ–कुछ आभास तो था लेकिन आज की यात्रा कितनी कठिन हो सकती है,इससे मैं बिल्कुल अंजान था। सामने दिख रही छोटी–छोटी चोटियों पर जमी बर्फ और ऊपर से गुनगुनी धूप,मुझे अलौकिकता का आभास दे रही थी। अपनी यात्रा का आधा से भी अधिक भाग सफलतापूर्वक पूरा कर लेने की वजह से मैं अत्यधिक रोमांचित था। स्पीति का यह वातावरण मुझे अच्छा लग रहा था। मैं महसूस कर रहा था कि वास्तव में यहाँ की जिन्दगी बहुत ही शांतिपूर्ण है। सुबह के 6 बजे लोसर का तापमान था–माइनस 1 डिग्री।

Friday, January 13, 2023

नवाँ दिन– काजा से लोसर

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देर रात तक पियक्कड़ों के प्रवचन सुनते रहने से नींद पूरी नहीं हुई थी। ऐसा इस यात्रा में पहली बार हुआ था। सुबह सिर भारी हो गया। मुझे लगा कि मैं शायद अपने क्षेत्र के कस्बों जैसे किसी कस्बे में आ गया था। काजा इस क्षेत्र के गाँवों से काफी कुछ अलग स्वभाव का है। फिर भी चलना तो था ही। सुबह उठकर पहला काम था बाइक चेक करना। आज इसने स्टार्ट होने में थोड़े से नखरे दिखाये,शायद कल की धुलाई में प्लग वगैरह में कहीं पानी प्रवेश कर गया था। चेन को टाइट करने के साथ साथ आयलिंग भी करनी थी। सुबह के 8 बजे मैं काजा से रवाना हो गया। आज का प्रारम्भिक लक्ष्‍य की मोनेस्ट्री और किब्बर गाँव होते हुए लोसर तक पहुँचना था।

Friday, January 6, 2023

हिक्किम और कोमिक

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शहर के बाशिंदे गाँव देखने के लिए गाँवों की ओर जायें तो स्वाभाविक सा लगता है। लेकिन मेरे जैसा आदमी,जिसका जन्म ही गाँव में हुआ है और जो गाँव का निवासी है,वह भी लाहौल और स्पीति के गाँवों की खाक छान रहा था। कारण साफ है। हिमालय के गाँवों और शेष भारत के गाँवों में जमीन–आसमान का फर्क है। मैदानी भागों के गाँव जहाँ भोजन और पानी के मामले में काफी कुछ समृद्ध हैं,हिमालयी गाँव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते दिखायी पड़ते हैं। और लाहौल–स्पीति के गाँव तो दुर्धर्ष परिस्थितियों में भी अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं। यह मनुष्य की अपराजेय जिजीविषा का शानदार उदाहरण है।
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