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अब तक की मेरी यात्रा कुछ इस तरह चल रही थी कि सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर बिना चाय–नाश्ते के बाइक की सवारी शुरू हो जा रही थी तो मैंने इसी परम्परा को आज भी जारी रखा। पेट में सिर्फ पानी ही था। आसमान में भी पानी और रास्तों पर भी पानी। ये पानी कहाँ तक साथ निभायेगा,कहना मुश्किल था। और इस पानी के खेल में मैं टापरी में तेल (पेट्रोल) लेना भूल गया। बारिश के बीच मैं चल तो चुका था लेकिन 10–12 किलोमीटर आगे करचम में एक चाय की दुकान में रूकना पड़ा। यहाँ से एक दिन के लिए मुझे सतलज से अनुमति लेनी थी और बास्पा के साथ चलना था। करचम में बास्पा और सतलज हमेशा के लिए एक हो जाती हैं।