Friday, November 25, 2022

चौथा दिन– टापरी से सांगला

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अब तक की मेरी यात्रा कुछ इस तरह चल रही थी कि सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर बिना चाय–नाश्ते के बाइक की सवारी शुरू हो जा रही थी तो मैंने इसी परम्परा को आज भी जारी रखा। पेट में सिर्फ पानी ही था। आसमान में भी पानी और रास्तों पर भी पानी। ये पानी कहाँ तक साथ निभायेगा,कहना मुश्किल था। और इस पानी के खेल में मैं टापरी में तेल (पेट्रोल) लेना भूल गया। बारिश के बीच मैं चल तो चुका था लेकिन 10–12 किलोमीटर आगे करचम में एक चाय की दुकान में रूकना पड़ा। यहाँ से एक दिन के लिए मुझे सतलज से अनुमति लेनी थी और बास्पा के साथ चलना था। करचम में बास्पा और सतलज हमेशा के लिए एक हो जाती हैं।

Friday, November 18, 2022

तीसरा दिन– शिमला से टापरी

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यात्रा का सिद्धान्त है– चरैवेति। उपनिषद के इस सूत्र वाक्य को सार्थक करते हुए मुझे भी चलना ही था। बारिश आये या बाढ़,यात्रा तो करनी ही थी। जब यात्रा को उद्देश्य बनाकर यात्री घर से निकल चुका है तो यात्रा तो होनी ही है। अगर मौसम की बाधाओं के चलते मैं वापस लौटता तो मेरी आत्मा उसी तरह मुझे धिक्कारती,जिस तरह राहुल सांकृत्यायन अपने लेख ʺअथातो घुमक्कड़ जिज्ञासाʺ में एशियाई कूप–मण्डूकता को धिक्कारते हैं। सही भी है,अपनी घुमक्कड़ी के बल पर ही यूरोपियनों ने अमेरिका और आस्ट्रेलिया पर कब्जा कर लिया और हम भारतीय पीछे रह गये। खैर,मेरी यात्रा की उस जमाने की यात्राओं से कोई तुलना नहीं। मैं तो बस दस–बारह दिनों के लिए किसी अन्जानी जगह पर शांतिपूर्वक समय बिताने और उस जगह से परिचित होने के लिए निकला था।

Friday, November 11, 2022

दूसरा दिन– अम्बाला से शिमला

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अगले दिन सुबह जब ट्रेन अम्बाला पहुँची तो मैं आराम से ट्रेन से उतरा। चूँकि ट्रेन अम्बाला तक ही जाती है इसलिए इस बात की चिन्ता तो कतई नहीं थी कि ये बैरन रेल मेरी बाइक को लेकर आगे चली जाएगी। लगेज वाली बोगी में मेरे अलावा एक और बाइक सवार थी जो बलिया से ही ट्रेन में सवार हुई थी। मेरी ʺअंतिम इच्छाʺ के अनुरूप मेरी बाइक को सिंगल स्टैण्ड पर ही खड़ा किया गया था जबकि साथ वाली बाइक डबल पर खड़ी थी। चूँकि मेरी सीट आगे की बोगी में थी तो मुझे पीछे लगेज वाली बोगी तक पहुँचने में कुछ समय लगा। लगेज वाली बोगी के पास कुछ गतिविधियाँ हो रही थीं जिन्हें मैं दूर से ही देखते हुए आ रहा था। सिंगल स्टैण्ड पर खड़ी मेरी बाइक बायें झुकते हुए,डबल स्टैण्ड पर खड़ी बाइक से बड़े ही जोशोखरोश के साथ शरीर रगड़ रही थी। उस बाइक के साथ दो–तीन लोग थे। लगेज का इंजार्च अकेला वर्दीवाला कर्मचारी था।

Friday, November 4, 2022

स्पीति वैलीः यात्रा का आरम्भ

अपने आदिम इतिहास में मानव प्रकृति का पूजक रहा है। प्रकृति के विभिन्न स्वरूप उसकी छोटी सी सत्ता से कहीं अधिक शक्तिशाली थे। इसलिए उसने नियतिवाद को स्वीकार किया। आदिम मनुष्य प्रकृति का सहचर था,प्रेमी था। उसने नदियाें में,पहाड़ों में,आकाश में,सूरज में,चन्द्रमा में,वृक्षों में देवत्व का आरोपण किया। जो शक्तिशाली था,सुन्दर था,जीवन देता था– देवतुल्य था। मुझे भी यह देवत्व आकर्षित करता है,भाता है। हिमालय को नगराज की उपाधि दी गयी। कितना शक्तिशाली है यहǃ इस शक्ति का अंशमात्र इसने सदानीरा नदियों को दे दिया। इन नदियों ने अपनी अंशमात्र शक्ति प्रदान कर मानव सभ्यताओं को जन्म दिया। पर शायद इस नगराज से कुछ भेदभाव भी हो गया।
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