Friday, December 9, 2022

छठां दिन– नाको से ढंखर

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नाको का मौसम अच्छा था तो मैं सुबह जल्दी निकलने के प्रयास में था। तैयार होकर बाहर निकलने की कोशिश की तो होटल का मुख्य दरवाजा बाहर से बन्द मिला। होटल वाले का कहीं अता–पता नहीं था। एक दो बार इधर–उधर की युक्ति लगाने और सोच–विचार करने में 10 मिनट गुजर गये। ऐसी परिस्थिति में कैसी मनोदशा होती है,यह वही समझ सकता है जो ऐसी दशा से गुजरा हो। आप कमरे से बाहर निकलना चाहते हों और दरवाजा बाहर से बंद हो। मुझे घबराहट सी होने लगी। अचानक होटल वाले का नम्बर दीवार पर लिखा दिख गया। मैं नम्बर डायल करने वाला ही था कि बिचारा खुद कहीं से प्रकट हो गया।

Friday, December 2, 2022

पाँचवां दिन– सांगला से नाको

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अगले दिन सुबह के समय सांगला में भी रिमझिम बारिश होती रही। मु्झे इस बारिश और अपनी किस्मत पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन कोई चारा नहीं था। सुबह के आठ बजकर 10 मिनट पर बारिश बन्द होते ही मैं सांगला से रवाना हो गया। बारिश की वजह से रास्ता और भी खराब हो गया था।
करचम में बास्पा अपने अंतिम पड़ाव में,अपना स्वत्व सतलज को सौंप देती है। वैसे तो अपने अंतिम स्थल पर नदी बिल्कुल धीमी हो जाती है लेकिन करचम में बने बाँध ने बास्पा को और भी धीमा कर दिया है। तो मैंने भी कराहती हुई बास्पा से विदा ली और एक बार फिर सतलज के साथ हो लिया।
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